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भारत की पहली वैक्सीन का दिल्ली में ह्यूमन ट्रायल, दी गई पहली डोज

aajtak.in
  • 24 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 5:38 PM IST
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दुनिया भर में जारी वैक्सीन के ट्रायल के बीच भारत से भी अच्छी खबरें आने लगी हैं. भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन COVAXIN का ह्यूमन ट्रायल दिल्ली के एम्स में भी शुरू हो गया है. इस वैक्सीन की पहली डोज 30 साल के एक व्यक्ति को दी गई है. इस व्यक्ति को अगले कुछ घंटों के लिए अस्पताल की निगरानी में रखा जाएगा.

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दिल्ली के एम्स अस्पताल में 100 वॉलंटियर्स पर कोवैक्सीन का ट्रायल होना है, इनमें से पहले 50 लोगों को वैक्सीन दी जाएगी. कोवैक्सीन के ट्रायल के लिए 375 वॉलंटियर्स को चुना गया है. इनमें से 100 लोगों पर दिल्ली के एम्स में जबकि बाकियों का ट्रायल देश के दूसरे सेंटर्स पर किया जाएगा.

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एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया के अनुसार, फेज-1 में 18 से 55 साल के बीच उम्र वाले 100 स्वस्थ वॉलंटियर्स पर ट्रायल किया जाएगा जबकि फेज-2 में 12 से 65 उम्र के लोगों पर ट्रायल किया जाएगा. आपको बता दें कि एम्स पटना में भी कोवैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल जारी है. कोवैक्सीन दवा को हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने ICMR के साथ मिलकर बनाया है.

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कैसे बनती है वैक्सीन?


लोगों के खून में व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र का हिस्सा होते हैं. बिना शरीर को नुकसान पहुंचाए वैक्सीन के जरिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं. जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया को पहचान लेता है तो शरीर इससे लड़ना सीख जाता है. इसके बाद अगर इंसान असल में उस वायरस या बैक्टीरिया का सामना करता है तो उसे जानकारी होती है कि वो संक्रमण से कैसे निपटे. दशकों से वायरस से निपटने के लिए जो टीके बने उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है. मीजल्स, मम्प्स और रूबेला का टीका बनाने के लिए ऐसे कमजोर वायरस का इस्तेमाल होता है जो संक्रमण नहीं कर सकते.

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क्या है क्लिनिकल ट्रायल?


क्लिनिकल ट्रायल में लोगों पर प्रायोगिक वैक्सीन का टेस्ट किया जाता है, ताकि ये पता लगाया जा सके कि ये वैक्सीन कितनी सुरक्षित और असरदार है. आमतौर पर इस तरह की प्रक्रिया में दस साल लग जाते हैं. लेकिन कोरोना वायरस वैक्सीन के मामले में नियामक संस्थाएं पहले और दूसरे ट्रायल को जोड़कर उसे जल्दी करने की अनुमति दे रही हैं.

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तीसरा चरण पहले के दो चरणों के निगेटिव रिजल्ट पर निर्भर करता है. कम निगेटिव परिणाम मतलब तीसरे चरण में कम लोग ही जाएंगे और ज्यादा निगेटिव का मतलब ज्यादा लोगों को इलाज की जरूरत होगी.

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क्लिनिकल ट्रायल में लोग अपनी इच्छा से आते हैं. इनमें ड्रग्स, सर्जिकल प्रक्रिया, रेडियोलॉजिकल प्रक्रिया, डिवाइसेज, बिहेवियरल ट्रीटमेंट और रोगनिरोधक इलाज भी शामिल होते हैं. क्लिनिकल ट्रायल बहुत सावधानी के साथ पूरे किए जाते हैं. इस ट्रायल में बच्चों समेत किसी भी उम्र के लोग शामिल हो सकते हैं.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इस समय 150 वैक्सीन अपने विभिन्न चरण के ट्रायल में हैं लेकिन इसमें से लगभग 10 वैक्सीन ही अभी एडवांस स्टेज पर पहुंच सकी हैं. भारत की कोवैक्सीन इनसे अभी काफी पीछे है.

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