48 स्टोन क्रशर को तुरंत करें बंद... बिजली कनेक्शन काटे, अवैध खनन के खिलाफ उत्तराखंड HC का आदेश

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मातृ सदन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हरिद्वार में गंगा किनारे चल रहे 48 स्टोन क्रशर को तत्काल प्रभाव से बंद करने और उनके बिजली कनेक्शन काटने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन से अपने आदेश का अक्षरशः पालन करने का निर्देश दिया है और एक हफ्ते के अंदर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया है.

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उत्तराखंड हाई कोर्ट (Photo: ITG) उत्तराखंड हाई कोर्ट (Photo: ITG)

लीला सिंह बिष्ट

  • हरिद्वार,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:46 AM IST

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को हरिद्वार क्षेत्र में चल रहे 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल प्रभाव से बंद करने का ऐतिहासिक आदेश दिया और अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह तुरंत उनके बिजली और पानी के कनेक्शन काट दें. साथ ही अदालत ने इस संबंध में एक हफ्ते के अंदर मामले पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा है.

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न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हरिद्वार स्थित मातृ सदन नामक संगठन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने पहले के निर्देशों का पालन न करने की वजह से ये आदेश पारित किया है.

2022 में दायर की थी याचिका

अवैध खनन को लेकर साल 2022 में मातृ सदन एक जनहित याचिका दायर की थी. उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि रायवाला से भोगपुर तक गंगा के किनारे खुलेआम अवैध खनन चल रहा है, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) पहले ही इन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं.

उन्होंने ये भी कहा कि कुंभ मेला इलाके में भी नियमों का उल्लंघन कर अवैध खनन किया जा रहा है.याचिका में ये भी कहा गया है कि केंद्र सरकार के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने इस संबंध में बार-बार दिशानिर्देश जारी किए हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया गया है और पत्थर तोड़ने वाली मशीनें चलती रहती हैं, जिससे नदी के लिए खतरा पैदा हो रहा है.

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दोबारा किसके आदेश शुरू हुए क्रशर?

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण सवाल भी उभरकर सामने आया है, जिसमें कहा गया कि अगर पहले 5 किलोमीटर क्षेत्र में स्थित स्टोन क्रशर बंद कर दिए गए थे तो उन्हें दोबारा किसके आदेश पर खोला गया?

इसके जवाब में कहा गया कि ये स्टोन क्रशर राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता की सलाह पर खोला गया था, जबकि कानून सचिव की सलाह इसके अलग है ये खुलासा चौंकाने वाला है.

खनन से मिलता है रोजगार: सरकार

सरकार की ओर से ये तर्क दिया गया कि खनन से रोजगार मिलता है और बालू जमा होने से खेत डूब सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अवैज्ञानिक और अनियंत्रित खनन गंगा की धारा को प्रभावित करता है, जिससे भूजल स्तर गिरता है, मानसून में बाढ़ की स्थिति बनती है और किसानों की फसलें नष्ट होती हैं. यही नहीं, ध्वनि और वायु प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है.

कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत NMCG और CPCB द्वारा दिए गए निर्देश आज भी प्रभाव में हैं और इनका उल्लंघन न केवल न्यायालय की अवमानना है, बल्कि जनविश्वास के साथ धोखा भी है.

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इसलिए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया गया कि वह 24 अगस्त 2017 को जारी किए गए उस आदेश का अक्षरशः पालन करे, जिसके तहत 48 स्टोन क्रशरों को बंद किया गया था. साथ ही, इन क्रशरों की बिजली और पानी की आपूर्ति तत्काल बंद की जाए और इसकी ज़िम्मेदारी ज़िला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, हरिद्वार की व्यक्तिगत रूप से तय की गई है.

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