मुंबई: हिरासत में मौत के मामले में कोर्ट ने 2 पुलिसकर्मियों को ठहराया दोषी, कहा- अमानवीय यातना गंभीर चिंता का विषय

मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने अल्ताफ कादिर शेख की हिरासत में मौत के मामले में सब इंस्पेक्टर संजय खेडेकर और हेड कांस्टेबल रघुनाथ कोलेकर को दोषी ठहराया. अदालत ने दोनों पुलिसकर्मियों को 7 साल की सुधारात्मक सजा सुनाई, लेकिन हाईकोर्ट में अपील के चलते सजा 7 नवंबर 2025 तक स्थगित कर 50000 रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी गई.

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अल्ताफ़ कादिर शेख की हिरासत में मौत हो गई थी (Photo: Representational) अल्ताफ़ कादिर शेख की हिरासत में मौत हो गई थी (Photo: Representational)

विद्या

  • मुंबई,
  • 08 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 9:04 PM IST

मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 2 पुलिसकर्मियों को हिरासत में मौत के मामले में दोषी ठहराया है. अदालत ने कहा कि भारत में अमानवीय यातना की घटनाएं कानून की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाती हैं. कोर्ट ने सब इंस्पेक्टर संजय सुदाम खेडेकर और हेड कांस्टेबल रघुनाथ विठोबा कोलेकर को दोषी ठहराया है. दोनों पर 29 वर्षीय अल्ताफ कादिर शेख को 2009 में अवैध रूप से हिरासत में लेकर यातना देने और उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार होने का आरोप है.

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पीड़ित अल्ताफ कादिर शेख को पुलिसकर्मियों ने उसके घर से उठाया था. विशेष सीबीआई कोर्ट के जस्टिस ए.वी. गुजराती ने कहा कि पुलिस को किसी भी मामले में किसी व्यक्ति से पूछताछ करने का पूरा अधिकार है, लेकिन यह उनका कर्तव्य भी है कि वे इसकी जानकारी स्टेशन डायरी में दर्ज करें. कोर्ट ने कहा कि अगर वे आरोपी को हिरासत में लेना चाहते थे, तो उनके पास कानूनी तौर पर ऐसा करने का अधिकार था, लेकिन रिकॉर्ड से साफ है कि न तो स्टेशन डायरी में और न ही किसी अन्य दस्तावेज़ में उसके लाए जाने की कोई प्रविष्टि की गई थी. कोर्ट ने कहा कि अल्ताफ़ को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था.

पुलिस के अनुसार अल्ताफ़ ड्राइवर का काम करता था, और उसके खिलाफ कई चोरी के मामले दर्ज थे. 2008 में मुंबई पुलिस ने उसे जालना भी निर्वासित किया था. 11 सितंबर 2009 को सुबह 4 बजे रमज़ान के दौरान एक मामले में पूछताछ के लिए पुलिस ने उसे घर से उठाया. हालांकि, सुबह लगभग 9 बजे वह हिरासत कक्ष में सोता हुआ मिला और फिर उठा नहीं. उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उसके शरीर पर कई चोटें पाई गईं थीं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने चोटों का कारण नहीं बताया था.

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इन मामलों में कई कानूनी कार्रवाई हुई, और इसके बाद जांच सीबीआई को सौंप दी गई. केंद्रीय एजेंसी अदालत में यह साबित करने में सफल रही कि मुकदमे का सामना कर रहे दो पुलिसकर्मी वास्तव में अल्ताफ़ को उसके घर से लाए थे, साथ में एक अन्य पुलिस अधिकारी सयाजी बापूराव थोम्बरे भी थे, जिनकी जांच के दौरान अल्ताफ की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद अल्ताफ़ के खिलाफ मामला समाप्त कर दिया गया.

सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक सुनील गोंजाल्विस ने अदालत में कहा कि आरोपियों ने गलत तरीके से बंधक बनाने और हिरासत में यातना देने जैसा गंभीर अपराध किया है. पुलिस अधिकारी होने के नाते, उन्हें जनता की सुरक्षा का ध्यान रखना था, लेकिन उन्होंने अल्ताफ को अवैध रूप से डिटेक्शन रूम में रखकर प्रताड़ित किया और उसे चोटें पहुंचाईं. उन्होंने आरोपियों के लिए कड़ी सजा की मांग की.न्यायाधीश ने इस बात से सहमति जताई और कहा कि आरोपी किसी भी तरह की नरमी के हकदार नहीं हैं. अदालत ने दोनों पुलिसकर्मियों को 7 साल की सुधारात्मक सजा सुनाई.

हालांकि, पुलिसकर्मियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की, जिस पर अदालत ने उनकी सजा 7 नवंबर 2025 तक स्थगित कर दी. साथ ही अदालत ने दोनों आरोपियों को 50000 रुपये के निजी मुचलके पर ज़मानत पर रिहा करने का निर्देश दिया.

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