'हिंदू-मुसलमान के बीच लड़ाई चाहते हैं लोग', गदर के डायरेक्टर बोले- फिल्में देती हैं शांति का संदेश

पहलगाम हमले पर बात करते हुए अनिल कहते हैं कि क्या मतलब है नाम पूछकर मारने का? और मारने की जरूरत ही क्यों पड़ी? क्या आप चाहते हो कि हिंदू-मुसलमान के बीच लड़ाई हो? ये सब उनकी राजनीतिक चाल है, अपने मकसद पूरे करने के लिए. अगर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के आम लोग एक बार सोचें कि हमें इंसानियत के रास्ते पर चलना है, तो रिश्ते सुधर सकते हैं.

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अनिल शर्मा ने भारत-पाक रिलेशन पर की बात अनिल शर्मा ने भारत-पाक रिलेशन पर की बात

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 10:42 PM IST

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने बॉलीवुड को भी शॉक दिया है. डायरेक्टर अनिल शर्मा का कहना है कि हर किसी की सहन शक्ति की एक सीमा होती है, भारत ने कभी हमले की पहल नहीं की है. बल्कि हमारे यहां कि तो फिल्में भी शांति का संदेश देती हैं. बॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में बनी हैं जो अलग-अलग तरह से ये बताती हैं कि दोनों देशों के बीच भी तालमेल हो सकता है. 

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इसका उदाहरण देते हुए अनिल शर्मा ने अपनी डायरेक्ट की फिल्म गदर के साथ यश चोपड़ा की वीर जारा, जेपी दत्ता की बॉर्डर और उरी तक की बात की. 

फिल्में देती हैं शांति की सीख

अनिल शर्मा ने कहा- हर किसी ने अपने-अपने तरीके से इंडिया और पाकिस्तान के झगड़े को दिखाया है. यशजी ने अपना नजरिया दिखाया, 'बॉर्डर' फिल्म ने इसे एक अलग अंदाज में पेश किया. जब हमने 'गदर' बनाई, तो हमारा मकसद ये बताना था कि 'मोहब्बत ही सब कुछ होती है. पार्टिशन के वक्त 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान गई थी, जो दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी. 
'हमने खुद से सवाल पूछा कि जब दोनों तरफ के लोग एक जैसे थे, तो दो देश बनाने की जरूरत ही क्या थी? उस वक्त भारत में रह रहे ज्यादातर मुसलमानों की जड़ें भी कहीं न कहीं हिंदुओं से जुड़ी थीं. भाईचारे की भावना थी. उस समय ये भी कहा गया था कि पाकिस्तान में रह रहे हिंदू वहीं रहेंगे और भारत में रह रहे मुसलमान वहीं रहेंगे. फिर ऐसा क्या हुआ कि, जैसा हमने 'गदर' में भी दिखाया, हिंदुओं को पाकिस्तान छोड़ने के फरमान आने लगे? ये सब सत्ता और धर्म के खेल का नतीजा था, जो इंसानियत को मारता है. हमने 'गदर' में यही दिखाने की कोशिश की, कि इंसानियत का रास्ता सबसे बड़ा होता है.'

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अनिल शर्मा ने TOI से बातचीत में आगे कहा कि 'उरी' जैसी फिल्मों में भावनाएं 'वीर-जारा' जैसी फिल्मों से बिल्कुल अलग हैं. अगर कोई हमारे घर में घुस कर हमें मारेगा, जैसे कुछ दिन पहले पहलगाम में हुआ, तो हम भी जाकर उन्हें मारेंगे. जनता के अंदर गुस्सा है, 'उरी' ने यही दिखाया था. मैंने भी काफी पहले अपनी फिल्म 'तहलका' में यही दिखाया था.

'अगर रिश्ते सुधारने हैं तो इंसानियत का सोचो'

पहलगाम हमले पर बात करते हुए अनिल कहते हैं कि क्या मतलब है नाम पूछकर मारने का? और मारने की जरूरत ही क्यों पड़ी? क्या आप चाहते हो कि हिंदू-मुसलमान के बीच लड़ाई हो? ये सब उनकी राजनीतिक चाल है, अपने मकसद पूरे करने के लिए. अगर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के आम लोग एक बार सोचें कि हमें इंसानियत के रास्ते पर चलना है, तो रिश्ते सुधर सकते हैं. नेता तो राजनीति करते रहेंगे. जब तक हम जिंदा हैं, हमें प्यार और शांति फैलानी चाहिए.

'हमारी फिल्मों ने हमेशा भारत-पाक रिश्तों के उतार-चढ़ाव को दिखाया है. यशजी ने 'वीर जारा' में इंडो-पाक मुद्दे को बहुत खूबसूरती से दिखाया. उन्होंने विभाजन को झेला था, इसलिए उनका नजरिया बहुत गहरा था और 'वीर जारा' में वो बहुत शानदार तरीके से झलकता है. फिल्म ने दिल से ये याद दिलाया कि  'आप मोहब्बत के रास्ते चलिए.'

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अनिल आगे कहते हैं कि हमारी फिल्में पूरी तरह से सच दिखाती हैं. हमने कभी पाकिस्तान के आम लोगों को बुरा नहीं दिखाया. 'गदर 1' और 'गदर 2' में भी कई पाकिस्तानी किरदार सच्चे और समझदारी वाले थे. हम जनता को हमेशा पॉजिटिव दिखाने की कोशिश करते हैं. जनता को कभी नेगेटिव नहीं दिखाते. नेगेटिव दिखाते हैं तो उन नेताओं को, जो सच में गलत करते हैं. मैं मानता हूं कि हर देश के आम लोग दिल से अच्छे होते हैं. जनता को बस रोटी चाहिए होती है खाने को.

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