भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसकी अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल घटक दल बिहार चुनाव की तैयारी में जुटे हैं. बीजेपी और एनडीए का फोकस बिहार के भोजपुरी बेल्ट पर है, जो 2020 के विधानसभा चुनाव और 2024 के आम चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन के लिए कमजोर कड़ी साबित हुआ था. एनडीए ने अपने कमजोर किले को दुरुस्त करने की कवायद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उतार दिया है.
पीएम मोदी काराकाट और सीवान में रैलियां कर चुके हैं, 18 जुलाई को मोतिहारी से भी बिहार को हजारों करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात देने वाले हैं. लेकिन बिहार के भोजपुरी बेल्ट के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर गहरा जुड़ाव रखने वाले वाराणसी से बलिया तक, पूर्वी उत्तर प्रदेश में छिड़ी जातीय जंग चुनावी राज्य में सत्ताधारी गठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है.
वाराणसी में राजभर बनाम राजपूत
वाराणसी के चौबेपुर थाना क्षेत्र के छितौना गांव में संजय सिंह और भोला राजभर, दो परिवारों की लड़ाई ने जातीय संघर्ष का रंग ले लिया है. संजय सिंह बीजेपी के बूथ अध्यक्ष भी बताए जा रहे हैं, जिनके पक्ष में करणी सेना और अन्य क्षत्रिय संगठन लामबंद हो गए हैं. भोला राजभर के पक्ष में भी यूपी सरकार के मंत्री अनिल राजभर, ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और समाजवादी पार्टी के रामअचल राजभर समेत राजभर बिरादरी के तमाम नेता और संगठन आ गए हैं.
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यूपी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर के पुत्र और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के महासचिव अरविंद राजभर के छितौना मार्च के दौरान करणी सेना और एक जाति विशेष के लिए गालियां, अपशब्दों का उपयोग करते हुए नारेबाजी का वीडियो सामने आया था. यह वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए दो लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था, जिसमें राजपूत बिरादरी से आने वाले राजेश सिंह राजपूत का नाम भी है. इस केस के बाद क्षत्रिय संगठनों का आक्रोश और भड़का.
क्षत्रिय संगठन प्रशासन की तमाम कवायदों और बंदिशों के बावजूद 15 जुलाई को छितौना जाने के लिए सड़कों पर उतर आए और उनकी पुलिस के साथ तीखी नोकझोंक भी हुई. जिस व्यक्ति पर केस ने क्षत्रिय आक्रोश को और हवा दी, उसके परिवार की जड़ें भी बिहार से जुड़ी हुई हैं. साल 2017 में यूपी की सत्ता पर बीजेपी के काबिज होने से पहले हिंदू युवा वाहिनी की वाराणसी महानगर इकाई के उपाध्यक्ष रहे राजेश सिंह राजपूत का परिवार मूल रूप से बिहार के कैमूर जिले का रहने वाला है.
बलिया में राजपूत और वैश्य की लड़ाई
वाराणसी में राजभर बनाम राजपूत की लड़ाई थी ही, बलिया में भी रसड़ा के चेयरमैन और श्रीनाथ मठ के महंत के बीच हुए विवाद ने राजपूत बनाम वैश्य की शक्ल ले ली है. श्रीनाथ मठ पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार और अन्य इलाकों में रहने वाले सेंगर राजपूतों की आस्था का बड़ा केंद्र है.
मठ के महंत कौशलेंद्र गिरि और नगर पंचायत अध्यक्ष विनय शंकर जायसवाल के बीच पिछले दिनों एक आध्यात्मिक आयोजन को लेकर मारपीट हो गई थी. महंत ने चेयरमैन विनयशंकर जायसवाल के खिलाफ केस भी दर्ज कराया था, जिसमें उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. चेयरमैन बीजेपी से जुड़े हैं और वह जिस वैश्य बिरादरी से आते हैं, वह भी बीजेपी का कोर वोटर मानी जाती है.
पूर्वी यूपी की जातीय जंग का बिहार इफेक्ट कैसे
अब सवाल है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की जातीय जंग का बिहार इफेक्ट कैसे? दरअसल, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी बेल्ट के बीच न सिर्फ भाषायी, सामाजिक और सांस्कृतिक समानता है, बल्कि इन इलाकों के बीच रोटी-बेटी का संबंध है. वाराणसी में कैमूर, रोहतास, भोजपुर समेत बिहार के भोजपुरी भाषी जिलों के लोगों की भी बड़ी आबादी है.
वहीं, बिहार के बक्सर में यूपी के गाजीपुर और बलिया जिले के सीमावर्ती इलाकों के लोग भी अच्छी-खासी तादाद में रहते हैं. दोनों के राजनीतिक संबंध कितने गहरे हैं, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि यूपी सरकार के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह का परिवार मूल रूप से बक्सर का रहने वाला है और उनकी सियासी कर्मभूमि बलिया रहा.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 1989 में अपनी गृह सीट बलिया के साथ ही बिहार के महाराजगंज से भी लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते. पिछले साल लोकसभा चुनाव नतीजों में भी दोनों राज्यों के भोजपुरी बेल्ट की सियासी ट्यूनिंग देखने को मिली थी. तब बीजेपी बिहार के साथ सीमा साझा करने वाले बलिया, गाजीपुर और चंदौली लोकसभा सीट हार गई थी.
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बलिया की सीमा से सटे बिहार के आरा और बक्सर के साथ ही भोजपुरी बेल्ट की सासाराम, शाहाबाद और औरंगाबाद लोकसभा सीट पर भी बीजेपी को मात मिली थी. ये ऐसी सीटें हैं, जिन्हें बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता था.
2020 चुनाव में भी नीचे रहा था बीजेपी का ग्राफ
बिहार के भोजपुरी बेल्ट में बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले एनडीए का ग्राफ 2020 के चुनाव में भी नीचे रहा था. भोजपुरी भाषी 10 जिलों की 73 विधानसभा सीटों में से एनडीए 27 ही जीत सका था और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले महागठबंधन ने 45 सीटें जीती थीं. रोहतास, कैमूर, बक्सर और औरंगाबाद जैसे जिलों में बीजेपी शून्य पर सिमट गई थी.
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साल 2020 के बिहार चुनाव और 2024 के संसदीय चुनाव नतीजों से सबक लेकर बीजेपी चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले ही भोजपुरी बेल्ट में एक्टिव हो गई है, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर गहरा जुड़ाव रखने वाले पूर्वी यूपी में अपनी कोर वोटर जातियों राजपूत और वैश्य के साथ राजभर का ट्राएंगल कॉन्फ्लिक्ट बिहार चुनाव में पार्टी की चुनौती बढ़ा सकता है.
बिकेश तिवारी