मनीष कश्यप के बाद पवन सिंह... क्यों पीके की पार्टी के अलावा कोई और विकल्प नहीं दिख रहा सिंगर को?

बिहार के चुनावी साल में यूट्यूबर मनीष कश्यप के बाद अब पावर स्टार पवन सिंह के भी जन सुराज पार्टी में शामिल होने की चर्चा जोरों पर है. पवन सिंह को क्यों पीेके की पार्टी के अलावा कोई और विकल्प नहीं दिख रहा?

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प्रशांत किशोर, पवन सिंह प्रशांत किशोर, पवन सिंह

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST

चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप ने इसी महीने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) छोड़ने का ऐलान किया था. इस ऐलान के कुछ ही दिन बाद भोजपुरी के पावर स्टार पवन सिंह के साथ उनकी मुलाकात हुई थी. अब मनीष कश्यप का जन सुराज में शामिल होना करीब-करीब तय बताया जा रहा है.

कयास यह भी हैं कि मनीष कश्यप के साथ ही पवन सिंह भी जल्द ही चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर उर्फ पीके की पार्टी जन सुराज का दामन थाम सकते हैं. इस तरह की चर्चाओं का आधार क्या है और क्यों कहा जा रहा है कि पवन सिंह को पीके की पार्टी के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा.

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जन सुराज के औपचारिक ऐलान के पहले से है चर्चा

पवन सिंह के जन सुराज में शामिल होने की चर्चाओं को हवा भले ही मनीष कश्यप की एंट्री की बात सामने आने के बाद मिली हो, लेकिन इसकी जड़ें जन सुराज के राजनीतिक दल बनने के औपचारिक ऐलान के भी पहले से हैं. पिछले साल लोकसभा चुनाव नतीजे आने के करीब तीन महीने बाद पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह ने प्रशांत किशोर से मुलाकात की थी. ज्योति की मुलाकात के करीब हफ्तेभर बाद ही पवन सिंह की पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा के साथ तस्वीर सामने आई थी.

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पवन सिंह और आनंद मिश्रा, दोनों ने निर्दलीय लड़ा था 2024 का आम चुनाव (फाइल फोटो)

पवन सिंह की आनंद मिश्रा से मुलाकात के बाद कयास यहां तक लगाए जा रहे थे कि उनके जन सुराजी बनने का ऐलान 2 अक्तूबर को गांधी मैदान में पार्टी की औपचारिक घोषणा के लिए आयोजित कार्यक्रम में की जा सकती है. वीआरएस लेकर राजनीति में आए आनंद मिश्रा जन सुराज की युवा इकाई के अध्यक्ष थे और अभी पिछले ही महीने इस पद से इस्तीफा दिया था. आनंद मिश्रा के जन सुराज के युवा अध्यक्ष रहते पवन सिंह की पार्टी में एंट्री नहीं हुई. अब चुनाव करीब हैं तो उनके जन सुराज में शामिल होने की चर्चा जोरों पर है.

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पवन के लिए पीके की पार्टी ही विकल्प क्यों?

पवन सिंह का अपना फैन बेस है. उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़कर 2 लाख 74 हजार 723 वोट लाकर अपनी पावर भी दिखाई. पवन जिस शाहाबाद इलाके से आते हैं, उस इलाके पर बीजेपी से लेकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) तक, हर दल का फोकस है. फिर पवन के लिए पीके की पार्टी को ही विकल्प क्यों बताया जा रहा है? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.

1- पवन के लिए बीजेपी के दरवाजे बंद?

पवन सिंह वर्षों तक बीजेपी में सक्रिय रहे. पार्टी ने उन्हें प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनाकर सम्मान भी दिया, लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में दोनों की ट्यूनिंग बिगड़ गई. बीजेपी ने पवन को पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से टिकट दिया था. पवन ने इस सीट से लड़ने से मना कर दिया और बिहार की किसी सीट से चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया.

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पवन अपने गृह जिले भोजपुर से सटी काराकाट सीट से निर्दलीय ही मैदान में उतर गए. यह सीट एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के हिस्से में थी. उपेंद्र कुशवाहा खुद इस सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे. पवन सिंह के भी आ जाने से उपेंद्र कुशवाहा तीसरे नंबर पर खिसक गए. पवन सिंह को वापस लेकर बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा और कोइरी मतदाताओं की नाराजगी का खतरा मोल लेना नहीं चाहेगी.

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पवन सिंह काराकाट सीट पर निर्दलीय लड़कर दिखाई थी पावर (फाइल फोटोः पीटीआई)

2- पावर स्टार के लिए पीके, जन सुराज के लिए पवन फिट

पावर स्टार पवन सिंह को नए सियासी ठौर की तलाश है. वहीं, जन सुराज के लिए पीके को मजबूत वोट बेस वाले लोकप्रिय चेहरों की. पवन सिंह जन सुराज और पीके की पॉलिटिक्स के खांचे में फिट बैठते हैं. वहीं, पीके और जन सुराज की नई तरह की राजनीति और युवाओं की बात पवन को भी सूट करती है. पवन 2024 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी सियासत में लगातार एक्टिव रहे हैं. यह बात भी जन सुराज को अपने मुफीद लगती है.

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3- हर हाल में लड़ने, पीछे नहीं हटने का कर चुके हैं ऐलान

पवन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले ही चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया था. पवन को बीजेपी ने बिहार की किसी सीट से टिकट नहीं दिया, तो वह काराकाट सीट से निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर पड़े. इस बार भी वह पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. पवन ने मार्च में ही यह ऐलान कर दिया था. बिहार चुनाव लड़ने के सवाल पर पवन सिंह ने कहा था कि लड़ेंगे न भैया, जब जब राजनीति में कदम रख दिया है, तो पीछे नहीं हटेंगे. वह यह भी कह चुके हैं कि काराकाट नहीं छोड़ेंगे.  

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4- निर्दल से दल भला, नया भी सही 

पवन सिंह ने लोकसभा चुनाव में काराकाट से निर्दलीय लड़कर बहुत ही कम समय में पौने तीन लाख वोट लाकर अपनी पावर दिखा दी थी. पवन न सिर्फ दूसरे स्थान पर रहे, बल्कि उपेंद्र कुशवाहा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. पवन सिंह और उनके करीबियों को यह टीस है कि अगर किसी दल का साथ होता तो परिणाम दूसरे भी हो सकते थे. पवन सिंह के समर्थकों को भी लग रहा है कि विधानसभा चुनाव में निर्दल लड़ने से नया ही सही, दल भला है. पवन सिंह के अपने वोट में अगर थोड़ा-बहुत वोट भी एक्स्ट्रा जु़ड़ता है, तो चुनावी जीत की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.

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