यहां किराए पर अमेरिका ने लिया है सीक्रेट अड्डा... रूस-चीन के हमले का सबसे पहले मिलेगा अलर्ट

Kwajalein For US Army: क्या आप जानते हैं अमेरिका एक जगह पर रहने के लिए किराया देता है और उस जगह से चीन और रूस नजर रखता है. तो जानते हैं उस जगह के बारे में...

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क्वाजालीन मार्शल द्वीपों का एक हिस्सा है. (Photo: Reuters) क्वाजालीन मार्शल द्वीपों का एक हिस्सा है. (Photo: Reuters)

मोहित पारीक

  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:44 PM IST

अमेरिका से करीब 4000 किलोमीटर, चीन से करीब 5000 किलोमीटर और रूस से करीब 5500 किलोमीटर दूर एक जगह है, जहां कई द्वीप हैं. उस जगह को कहा जाता है मार्शल द्वीप. इन द्वीपों में दो द्वीप क्वाजालीन और एबे भी हैं, जो पूरे 20 किलोमीटर में भी फैले हुए नहीं है. लेकिन, कहा जाता है कि अमेरिका का आज जो खतरनाक सिक्योरिटी सिस्टम है, उसके पीछे इन छोटे-छोटे द्वीप का अहम रोल है.

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यहां अमेरिका करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है, यहां तक कि इस जगह के नेताओं को करोड़ों रुपये किराया भी दे रहा है. अब सवाल है कि आखिर यहां ऐसा है क्या और क्यों ये छोटे से द्वीप अमेरिका के लिए अहम हैं.

वैसे, सिर्फ अमेरिका ही नहीं... इस जगह पर चीन की भी नजर है. चीन भी यहां के लोगों को मोटा पैसा देकर या फिर सुविधाएं देकर यहां कब्जा करना चाहता है. मगर अभी तक चीन की बात बनी नहीं है और अमेरिकी सेना अभी मोटा पैसा खर्च करके इस जगह का इस्तेमाल कर रही है. ऐसे में आपको बताते हैं कि ये जगह कहां है, अमेरिका यहां क्या करता है और यहां के लोगों की क्या कहानी है...

है कहां ये क्वाजालीन?

ये भले ही अमेरिका, चीन और रूस से हजारों किलोमीटर दूर है, लेकिन लोकेशन के हिसाब से ये देश तीनों देशों के लिए अहम है. आप नीचे दी गई फोटो से समझ सकते हैं....

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क्या है इन द्वीपों की कहानी?

ये द्वीप प्रशांत महासागर में हैं, जहां करीब 10 हजार लोग रहते हैं. क्वाजालीन में सिर्फ 16 स्क्वायर किलोमीटर ही लैंड एरिया है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की ओर से इस जगह का इस्तेमाल सैन्य अड्डे के रूप में किया जाता है और चीनी या रूसी मिसाइल हमले के खिलाफ एक सुरक्षा कवच का काम करता है. रिपोर्ट के अनुसार, यह बेस अमेरिका की सुरक्षा चक्र में अहम भूमिका निभाता है.

यहीं पर अमेरिका की कई मिसाइलों का परीक्षण किया जाता है. अमेरिका पर चीनी या रूसी मिसाइल हमले की स्थिति में यहां से सबसे पहले पता किया जा सकता है और ये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में काम करता है.

बता दें कि क्वाजालीन अमेरिकी सेना का हाई-टेक बेस है, जबकि एबे वह जगह है जहां ज्यादातर लोकल लोग रहते हैं. अमेरिकी सेना वहां सिर्फ इतना करती है कि एबे के लोग क्वाजालीन बेस पर मजदूरी और सर्विस के लिए जाएं, लेकिन आर्मी का सीधा कोई बड़ा ठिकाना एबे पर नहीं है.

अमेरिका देता है किराया

बता दें कि क्वाजालीन बेस पर 1,300 अमेरिकी सैनिक और कुछ खास लोग एसी घर, ऊंचे ताड़ के पेड़, सार्वजनिक स्विमिंग पूल, एक कंट्री क्लब, नौ-होल वाला गोल्फ कोर्स और एक बॉलिंग एली का आनंद लेते हैं. इसके साथ ही यहां एक अस्पताल और एक पशु चिकित्सालय भी है. अमेरिकी इस द्वीप को 'लगभग स्वर्ग' कहते हैं.

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रॉयटर्स की रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट में रक्षा रणनीति की उप निदेशक और परमाणु मुद्दों पर पेंटागन की पूर्व सलाहकार रहीं कोर्टनी स्टीवर्ट में कहती हैं कि ये अमेरिकी सेना के सबसे अहम ठिकानों में से एक है. रिपोर्ट में लिखा गया है कि अमेरिकी बजट दस्तावेजों से पता चलता है कि सेना 2026 वित्तीय साल में अकेले क्वाजालीन अभियानों पर कम से कम 458 मिलियन डॉलर खर्च करने की योजना बना रही है.

2025 के मार्शल बजट दस्तावेजों के अनुसार, क्वाजालीन के उपयोग के बदले में, अमेरिका द्वीप के पारंपरिक नेताओं को सालाना लगभग 26 मिलियन डॉलर का किराया देता है, जिसका कुछ हिस्सा एबे के अन्य निवासियों के साथ साझा किया जाता है. अमेरिका एबे के स्थानीय अधिकारियों को हर साल लगभग 17 मिलियन डॉलर का वित्त पोषण भी प्रदान करता है.

चीन भी चाहता है अपना अधिकार

प्रशांत महासागर के इन द्वीप पर अमेरिका के साथ साथ चीन भी अपनी पैठ बना रहा है. हालांकि, अभी तक एबे द्वीपसमूह पर चीन की कोई उपस्थिति नहीं है. कहा जाता है कि पिछले साल एक क्षेत्रीय सम्मेलन में, प्रशांत महासागर में चीन के एक सहयोगी देश के एक अधिकारी ने उनसे बीजिंग की ओर से एक प्रस्ताव रखा. साथ ही चीन एक बड़ा अमाउंट देकर यहां घुसने की कोशिश कर रही है. बातचीत की शुरुआत 10 करोड़ डॉलर से है.

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बहुत बुरे हालात में हैं यहां के लोग

रॉयटर्स की रिपोर्ट में सामने आया है कि यहां हालात बेहद खराब है. यहां डायबिटीज का प्रकोप है, आसपास के पानी में मछलियां दूषित हैं और यहां के लोगों की लाइफ बहुत कम है. 2017 की एक रिपोर्ट में पाया गया था कि एबे के आसपास की मछलियों में आर्सेनिक और भारी रसायनों का स्तर इतना अधिक था कि उन्हें खाने से काफी बीमारियां पैदा हो रही थीं. हालात इतने खराब है कि कुछ लोगों के हालात तो ऐसे हैं कि यहां पैसे की कमी के कारण उन्होंने खाना छोड़ दिया है.

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