महल के सामने पत्थरबाजी, सड़कों पर लड़ाई... आखिर महाराणा प्रताप के वंशज क्यों खुलेआम झगड़ रहे हैं?

महाराणा प्रताप जिन्होंने मुगलों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी. भारत के शीर्ष वीर योद्धा और महाराजा के तौर पर इन्हें आज भी याद किया जाता है. महाराणा प्रताप मेवाड़ राजवंश के राजा थे. एक बार फिर से मेवाड़ राजवंश चर्चा में हैं. इसकी वजह राजगद्दी को लेकर महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच की लड़ाई है.

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विश्वराज सिंह और लक्ष्यराज सिंह विश्वराज सिंह और लक्ष्यराज सिंह

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:08 PM IST

राजपूतों का इतिहास ऐसी कई लड़ाईयों से रक्तरंजित रहा है. जब किसी राजवंश के दो भाई ही आपस में गद्दी के लिए लड़ पड़े हों. मौजूदा समय में महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच भी ऐसी ही एक लड़ाई शुरू हो गई है. इसमें दो भाई गद्दी पर अपना-अपना दावा कर रहे हैं. ऐसे में जानते हैं कि आखिर गद्दी को लेकर लड़ाई की वजह क्या है? और मेवाड़ पर दावा करने वाले महाराणा प्रताप के वंशज कौन-कौन हैं? 

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सड़क पर आया महाराणा प्रताप के वंशजों का विवाद
उदयपुर में मेवाड़ राजवंश के राजा के तौर पर विश्वराज सिंह मेवाड़ की ताजपोशी सोमवार को की गई. इसके बाद विश्वराज सिंह के छोटे चाचा अरविंद सिंह और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह ने इस ताजपोशी को गैरकानूनी करार दिया है. इसके बाद से दोनों भाईयों का विवाद सड़क पर आ गया है.

कितना पुराना है राजगद्दी का विवाद 
इस पूरे विवाद को समझने के लिए हमें इस राजघराने के इतिहास में जाना होगा. तब ही पूरे विवाद और इसकी वजह को समझा जा सकता है. मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ किला मेवाड़ राजवंश का मुख्य ठिकाना है. इस किले के लिए मुगलों और महाराणा प्रताप के बीच कई जंग हुए. आज इस किले की खातिर दो भाई आमने सामने हैं. ये दो भाई हैं विश्वराज सिंह और लक्ष्य राज सिंह. 

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महेंद्र सिंह 

बड़े भाई महेंद्र सिंह के पुत्र हैं विश्वराज सिंह
विश्वराज सिंह के पिता का नाम महेंद्र सिंह हैं और लक्ष्यराज सिंह के पिता का नाम अरविंद सिंह मेवाड़ है. महेंद्र सिंह अरविंद सिंह के बड़े भाई थे. बता दें कि इन दोनों के पिता का नाम भगवत सिंह था. भगवत सिंह को ही आधिकारिक तौर पर अंतिम महाराणा माना जाता है. क्योंकि मेवाड़ घराने की परंपरा के तहत इन्हें महाराणा घोषित किया गया था. 

विश्वराज सिंह 

एक ट्रस्ट के कारण है गद्दी को लेकर विवाद 
आजादी के बाद जब राजशाही खत्म हो गई, तो राजघराने की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए भगवत सिंह ने एक ट्रस्ट बनाया. इसका नाम था 'महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन'. इसी ट्रस्ट के जरिए मेवाड़ राजघराना चलाया जाने लगा. भगवत सिंह ने इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह को दे दी. वहीं बड़े बेटे महेंद्र सिंह को इस ट्रस्ट से दूर रखा गया. 

अरविंद सिंह. 

ट्रस्ट के माध्यम से ही चलता है मेवाड़ राजघराना
इस बात को लेकर कई बार महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह में विवाद हुआ है. अरविंद सिंह चूंकि ट्रस्ट चलाते हैं, इसलिए उनके बाद उनका बेटा लक्ष्यराज सिंह पर इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी आ गई. चूंकि, इसी ट्रस्ट के जरिए राजघराने का संचालन हो रहा है. इसलिए अरविंद सिंह का दावा है कि उनका बेटा लक्ष्यराज सिंह ही मेवाड़ राजवंश की गद्दी का असली हकदार है. 

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लक्ष्यराज सिंह .

छोटे भाई को मिली थी ट्रस्ट की जिम्मेदारी
इधर, महेंद्र सिंह जो भगवत सिंह के बड़े बेटे थे. इस नाते राजघराने की गद्दी पर हमेशा से अपना दावा करते रहें और अब उनका बेटा विश्वराज सिंह ने भी खुद को महाराणा घोषित कर लिया है. आसपास के राजघरानों से समर्थन लेकर 25 नवंबर को विश्वराज सिंह ने खुद महाराणा घोषित करते हुए अपना राजतिलक किया. इस दौरान वो सारी परंपराएं निभाई गईं, जो महाराणा की ताजपोशी के दौरान होता है. इसी साल 10 नवंबर को महेंद्र सिंह का निधन हुआ है. 

बड़े भाई के बेटे होने के नाते गद्दी पर किया दावा 
इसके बाद से ही लक्ष्यराज सिंह और उनके पिता अरविंद सिंह आग-बबूला हैं और इस पूरी ताजपोशी को अवैध बताया है. इनका कहना है कि जब उनके पिता और अंतिम महाराणा भगवत सिंह ने खुद अरविंद सिंह को राजघराने की जिम्मेदारी सौंपी है तो महेंद्र सिंह के पुत्र विश्वराज सिंह कैसे खुद को महाराणा घोषित कर सकते हैं. भगवत सिंह को उनके पिता भूपाल सिंह ने महाराणा घोषित किया था.

मेवाड़ राजघराने का वंश-वृक्ष

खुद को क्यों बताते हैं भगवान श्रीराम का वंशज
बता दें कि विश्वराज सिंह का महाराणा प्रताप के वंशज के रूप में मेवाड़ के 77वें महाराणा के रूप में  राजतिलक हुआ है. वहीं लक्ष्यराज सिंह खुद को मेवाड़ वंश का असली उत्तराधिकारी बताते हैं. महाराणा प्रताप खुद मेवाड़ घराने के 54वें महाराणा थे. मेवाड़ राजवंश की शुरुआत गुहिल या गुहादित्य से शुरू हुई थी. इससे पहले इस वंश के 156 राजा हुए थे. बताया जाता है कि मेवाड़ राजवंश ही पहले रघुकुल था. राजा रघु और भगवान श्रीराम को भी इसी वंश का बताया गया है. 

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समय-समय पर राजवंश और कुल का नाम बदलता गया
मेवाड़ के वंशवृक्ष के अनुसार आदित्य नारायण को इस कुल का प्रथम राजा माना गया है. राजा दिलीप और राजा दशरथ भी इसी कुल से आते हैं. राजा रघु से पहले इस वंश का नाम इक्ष्वाकु कुल था. राजा इक्ष्वाकु इस कुल के 7वें राजा थे. उनसे पहले राजा मनु थे.  और उनसे भी पहले राजा विवस्वान हुए, जिस वजह से इक्ष्वाकु से पहले ये कुल सूर्यवंश के नाम से जाना जाता था. इस तरह मेवाड़ राजघराना खुद को भगवान श्रीराम का वंशज मानता है. 

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