scorecardresearch
 

अब ट्रंप के टैरिफ का क्या होगा? अमेरिकी कोर्ट ने व्यापारिक रणनीति पर खींच दी लकीर, जानिए फैसले में क्या कहा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फेडरल अपील कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है. अदालत ने साफ कहा कि राष्ट्रपति को असीमित शक्तियां नहीं दी जा सकतीं. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब ट्रंप की व्यापार नीतियों ने अमेरिकी कारोबारियों, ग्लोबल मार्केट और उपभोक्ताओं में असमंजस और महंगाई की आशंका बढ़ा दी है.

Advertisement
X
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ पर अदालत ने फटकार लगाई. (File Photo- AP)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ पर अदालत ने फटकार लगाई. (File Photo- AP)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी को बड़ा झटका लगा है. फेडरल अपील कोर्ट ने उन टैरिफ (आयात शुल्क) को खारिज कर दिया जिन्हें ट्रंप ने 'नेशनल इमरजेंसी' घोषित कर कई देशों पर थोप दिया था. कोर्ट ने साफ कहा कि राष्ट्रपति को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं. कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब ट्रंप बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि वे कांग्रेस (सदन) की मंजूरी के बिना भी विदेशी सामानों पर टैक्स लगा सकते हैं.

दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि वे कांग्रेस को दरकिनार कर दुनिया भर के देशों पर भारी-भरकम टैरिफ (आयात शुल्क) थोप सकते हैं. 2 अप्रैल को ट्रंप ने 'लिबरेशन डे' बताते हुए लगभग सभी ट्रेड पार्टनर्स पर 10% का बेसलाइन टैरिफ लगाया था. जिन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा ज्यादा था, उन पर 50% तक के रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए गए.

बाद में उन्होंने 90 दिनों के लिए इन टैरिफ को निलंबित कर बातचीत का मौका दिया. जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने समझौते कर लिया, जबकि कुछ देशों पर भारी टैरिफ जारी रहा. उदाहरण के तौर पर लाओस पर 40% और अल्जीरिया पर 30% टैरिफ लगाया गया.

ट्रंप ने 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का हवाला दिया था और लंबे समय से चल रहे व्यापार घाटे को 'राष्ट्रीय आपातकाल' घोषित किया था. फरवरी में उन्होंने कनाडा, मैक्सिको और चीन पर भी यही कानून लगाकर टैरिफ थोप दिए थे और कहा था कि अवैध इमिग्रेशन और ड्रग्स की तस्करी रोकने में ये देश नाकाम हैं. जबकि अमेरिकी संविधान के अनुसार, टैक्स और टैरिफ लगाने की मूल शक्ति कांग्रेस के पास है. लेकिन धीरे-धीरे यह शक्ति राष्ट्रपति को भी दी जाती रही है. ट्रंप ने इसका अधिकतम इस्तेमाल किया.

Advertisement

किन टैरिफ पर असर नहीं?

यह पूरा मामला उन टैरिफ से जुड़ा है जो ट्रंप ने 'राष्ट्रीय आपातकाल' घोषित करके लगाया था. लेकिन स्टील, एल्युमिनियम और ऑटो पर सुरक्षा कारणों से लगाए गए शुल्क और चीन पर लगाए गए शुरुआती टैरिफ इसमें शामिल नहीं हैं. कारोबारी जगत पहले से ही अनिश्चितता में है और इस फैसले से ट्रंप की दबाव बनाने की रणनीति कमजोर हो सकती है.

ट्रंप ने तर्क दिया कि लंबे समय से चल रहे ट्रेड डेफिसिट को वे 'राष्ट्रीय आपातकाल' मानते हैं और इसी आधार पर उन्होंने टैरिफ लगाए. विशेषज्ञों के मुताबिक अब विदेशी सरकारें अमेरिकी मांगों को टाल सकती हैं या पुराने समझौतों पर फिर से बातचीत की मांग कर सकती हैं.

कोर्ट ने क्या कहा?

फेडरल सर्किट की अपील अदालत ने 7-4 के बहुमत से दिए फैसले में माना कि ट्रंप ने 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) की आड़ लेकर अपनी सीमा से बाहर कदम उठाया. कोर्ट ने अधिकांश टैरिफ को गैरकानूनी करार दिया. कोर्ट का कहना था कि राष्ट्रपति को आपातकालीन शक्तियां प्राप्त तो हैं, लेकिन इनमें टैरिफ या टैक्स लगाने का अधिकार नहीं है. हालांकि कोर्ट ने तुरंत टैरिफ खत्म करने का आदेश नहीं दिया, जिससे ट्रंप प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट तक अपील करने का मौका मिल गया है. कोर्ट ने टैरिफ को 14 अक्टूबर तक यथावत रखने की अनुमति दी है. संघीय अपीलीय अदालत ने फैसले में लिखा कि यह संभावना नहीं लगती कि कांग्रेस का इरादा राष्ट्रपति को असीमित अधिकार देने का था ताकि वे टैरिफ लगा सकें.

Advertisement

अदालत ने क्यों रोका?

ट्रंप प्रशासन ने दलील दी थी कि 1970 के दशक में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को भी इसी तरह आपातकालीन स्थिति में टैरिफ लगाने की छूट दी गई थी. लेकिन न्यूयॉर्क की ट्रेड कोर्ट ने मई में इसे खारिज करते हुए कहा कि ट्रंप के 'लिबरेशन डे टैरिफ' कानून के तहत दी गई शक्तियों से बाहर हैं. शुक्रवार को फेडरल अपील कोर्ट ने भी यही कहा कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति को 'असीमित अधिकार' देने का इरादा कभी नहीं जताया था. हालांकि चार जजों ने असहमति जताई और कहा कि 1977 का कानून असंवैधानिक नहीं है, जिससे ट्रंप के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील का रास्ता खुला रह गया.

आगे क्या असर पड़ेगा?

The Associated Press की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर टैरिफ पूरी तरह रद्द हो जाते हैं तो अमेरिकी ट्रेजरी को अरबों डॉलर का घाटा झेलना पड़ सकता है. अरबों डॉलर वापस करने पड़ सकते हैं. जुलाई तक टैरिफ से सरकार को 159 अरब डॉलर की कमाई हो चुकी थी, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी थी. व्यापार रणनीति पर भी असर होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि अब कोर्ट के फैसले से ट्रंप की आगे टैरिफ लगाने की क्षमता कमजोर हो सकती है. इससे विदेशी सरकारें अमेरिकी दबाव के खिलाफ ज्यादा सख्ती से खड़ी हो सकती हैं. अमेरिकी दबाव को टाल सकती हैं या पुराने समझौतों पर पुनर्विचार की मांग कर सकती हैं. इससे ट्रंप की 'नेगोशिएशन पावर' कमजोर हो सकती है. 

Advertisement

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने सोशल मीडिया पर नाराजगी जताई और कहा, अगर यह फैसला कायम रहा तो यह अमेरिका को तबाह कर देगा. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है. राष्ट्रपति ट्रंप ने अदालत के आदेश को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि सभी टैरिफ आगे भी लागू रहेंगे. उन्होंने कोर्ट के फैसले को गलत और पक्षपाती बताया. उन्होंने कहा, अगर इसे ऐसे ही रहने दिया तो ये फैसला अमेरिका को तबाह कर देगा.

क्या हैं ट्रंप के पास दूसरे विकल्प?

1974 का ट्रेड एक्ट: इसके तहत व्यापार घाटे से निपटने के लिए सीमित शक्ति है. कानून में शर्त है कि टैरिफ 15% से ज्यादा नहीं हो सकते और सिर्फ 150 दिनों तक ही लगाए जा सकते हैं, वह भी उन्हीं देशों पर जिनके साथ अमेरिका का बड़ा व्यापार घाटा है.
1962 का ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट (सेक्शन 232): विदेशी स्टील, एल्युमिनियम और ऑटो पर टैरिफ लगाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए वाणिज्य विभाग की जांच जरूरी है और यह राष्ट्रपति के अपने विवेकाधिकार से सीधे लागू नहीं किए जा सकते.

फिलहाल, अपील कोर्ट के फैसले ने ट्रंप की मनमाने 'टैरिफ पॉलिसी' पर रोक लगा दी है. अब अंतिम फैसला अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से ही तय होगा कि ट्रंप को भविष्य में विदेशी सामानों पर टैक्स लगाने की कितनी छूट मिलेगी.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement