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ट्रंप ने टैरिफ से चार महीनों में ही कमा लिए खरबों डॉलर! अंधाधुंध कमाई को लेकर क्यों चेता रहे एक्सपर्ट्स?

अमेरिका का ट्रंप प्रशासन टैरिफ से भारी कमाई कर रहा है. टैरिफ लगने के बाद से अमेरिकी राजस्व में इससे डेढ़ खरब डॉलर का धन जुटाया गया है. लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि अल्पकालिक लाभ तो ठीक है लेकिन इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दूरगामी नुकसान हो सकता है.

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ट्रंप प्रशासन को टैरिफ से भारी कमाई हुई है (Photo- Gemini AI)
ट्रंप प्रशासन को टैरिफ से भारी कमाई हुई है (Photo- Gemini AI)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर के देशों पर टैरिफ लगाकर भारी कमाई की है. व्हाइट हाउस का कहना है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में टैरिफ कलेक्शन ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया है. व्हाइट हाउस ने बताया कि 29 जुलाई, 2025 तक टैरिफ से वसूला गया पैसा 150 अरब डॉलर से अधिक हो गया. 

टैरिफ कलेक्शन में बढ़ोतरी की वजह से 10 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि जून में अमेरिका का बजट सरप्लस में जा रहा है. अकेले जुलाई के महीने में अमेरिका ने 28 अरब डॉलर कस्टम ड्यूटी जमा किया जो अब तक का एक महीने का सबसे बड़ा कलेक्शन है.

ट्रंप प्रशासन ने 2 अप्रैल को घोषणा की थी कि अमेरिका दुनिया के लगभग सभी देशों पर टैरिफ लगाने जा रहा है. इस घोषणा के तहत बताया गया कि 10 प्रतिशत का बेस टैरिफ 5 अप्रैल से सभी देशों पर लागू हो जाएगा और व्यापार घाटे के आधार पर तय अतिरिक्त टैरिफ अगस्त महीने से लागू होगा. 

इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने लगभग सभी आयातित वस्तुओं पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया था. ट्रंप के टैरिफ से पहले चार महीनों में 100 अरब डॉलर से ज्यादा की आय हुई, जो पिछले साल इसी अवधि में वसूले गए टैरिफ से तीन गुना ज्यादा है. इससे अमेरिकी राजस्व में भारी बढ़ोतरी हुई है.

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अमेरिका के ट्रेजरी अधिकारियों का अनुमान है कि टैरिफ से ट्रंप सरकार को हर साल 300 अरब डॉलर से अधिक की आय हो सकती है. वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने फॉक्स बिजनेस से बात करते हुए कहा कि टैरिफ से अमेरिका को हर महीने 50 अरब डॉलर तक का फायदा हो सकता है.

क्या है टैरिफ जिससे राजस्व में अरबों जुटा रहा ट्रंप प्रशासन?

 

टैरिफ विदेशों से खरीदी वस्तुओं पर लगाया जाने वाला एक टैक्स है, जिसका भुगतान अमेरिका में प्रोडक्ट खरीदने वाली कंपनियां करती हैं. टैरिफ अमेरिकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा एंट्री प्वॉइंट्स पर वसूलती है और फिर इसे ट्रेजरी विभाग के जनरल फंड में ट्रांसफर कर दिया जाता है. इसके बाद कांग्रेस यानी अमेरिकी संसद तय करती है कि पैसे को कैसे खर्च किया जाना है.

टैरिफ का मकसद घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना और सरकारी राजस्व में बढ़ोतरी करना है लेकिन टैरिफ की वजह से आम लोगों के लिए कीमतें बढ़ जाती हैं. चूंकि टैरिफ का भार आयातकों पर पड़ता है इसलिए वो आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ाकर उसका कुछ भार आम लोगों पर भी डाल देते हैं. इससे महंगाई बढ़ती है.

टैरिफ के पैसे का क्या करेगा ट्रंप प्रशासन?

ट्रंप प्रशासन का कहना है कि टैरिफ के पैसे बहुत सी जगहों पर इस्तेमाल किए जाएंगे जिनमें शामिल हैं-

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-चालू वित्त वर्ष में सरकार को 1.3 खरब डॉलर का फेडरल घाटा होना है जिसके एक हिस्से का भुगतान टैरिफ के पैसे से किया जाएगा.

-अमेरिकी सरकार नागरिकों को टैरिफ रिबेट चेक जारी कर सकती है यानी टैरिफ से होने वाली परेशानी कम करने के लिए अमेरिकियों को नकद राशि दे सकती है. टैरिफ रिबेट बिल आ चुका है हालांकि, इसके कानून बनने की राह में कई बाधाएं हैं.

-ट्रंप के 'One Big Beautiful Bill Act' के पारित हो जाने के बाद अनुमान है कि अगले दशक में सरकार पर अनुमानित 3.4 खरब डॉलर का कर्ज बढ़ेगा. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, रिपब्लिकन पार्टी को उम्मीद है कि टैरिफ से इस कर्ज की भरपाई करने में मदद मिलेगी.

टैरिफ से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को क्या खतरे हैं?

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च आयात टैक्स से कच्चे माल की लागत में बढ़ोतरी होगी और अमेरिकी निर्यातकों पर असर हो सकता है. साथ ही अमेरिका के ट्रेड पार्टनर्स भी जवाबी प्रतिक्रिया दे सकते हैं.

उदाहरण के लिए, ट्रंप के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, 370 अरब डॉलर के चीनी सामानों पर टैरिफ लगा दिया गया था. जवाब में चीन ने भी अमेरिका के प्रमुख कृषि निर्यातों पर टैरिफ लगा दिया जिससे अमेरिकी किसानों को 2018-19 में 27 अरब डॉलर की बिक्री का नुकसान हुआ. इसे देखते हुए ट्रंप प्रशासन को कृषि क्षेत्र को 28 अरब डॉलर की राहत राशि देनी पड़ी थी.

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यूएसए टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2024 तक भी अमेरिका का कृषि क्षेत्र चीन के टैरिफ की मार से पूरी तरह उबर नहीं पाया है.

इस बार तनाव केवल अमेरिका और चीन के बीच ही नहीं, बल्कि कई देशों के बीच का है क्योंकि भारत समेत कई प्रमुख साझेदारों के साथ अमेरिका ट्रेड डील नहीं कर पाया है. इसके साथ ही अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है जिसे लेकर दोनों देशों में तनाव चल रहा है.

टैरिफ को लेकर चेता रहे एक्सपर्ट्स

अमेरिका ने पिछली बार इस पैमाने पर टैरिफ महामंदी के दौरान 1930 के स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट के तहत लगाए थे. उस दौरान अमेरिका के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जवाबी कार्रवाई हुई और वैश्विक व्यापार में कमी आई थी.

यूएसए टुडे से बात करते हुए अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि टैरिफ सरकारी खजाने में बड़ी रकम तो ला सकते हैं, लेकिन आर्थिक विकास को धीमा भी कर सकते हैं, सप्लाई चेन में रुकावट डाल सकते हैं और आयात पर निर्भर उद्योगों पर दबाव डाल सकते हैं.

पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स (PIIE) के शोध से पता चलता है कि सैद्धांतिक रूप से देखें तो, टैरिफ एक दशक में खरबों डॉलर जुटा सकते हैं, लेकिन आर्थिक मंदी और दूसरे देशों की जवाबी कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए यह फायदा तेजी से घट जाएगा. उदाहरण के लिए, टैरिफ में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी से 3.9 खरब डॉलर का लाभ हो सकता है, लेकिन अगर दूसरे देश जवाबी कार्रवाई करते हैं तो यह लाभ केवल 1.5 खरब डॉलर ही होगा.

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इसके अलावा, टैरिफ से जुटाया गया राजस्व अभी भी अमेरिकी कर्ज की पूरी भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं है. अमेरिका का कुल कर्ज 36 खरब डॉलर से ऊपर पहुंच गया है. सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस वजह से अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि बढ़ते ब्याज भुगतान इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य डेवलपमेंट प्रोग्राम्स में निवेश को कम कर रहे हैं.

रिपब्लिकन टैरिफ को राजस्व घाटे को पाटने और घरेलू मैन्यूफेक्चरिंग को मजबूत करने का एक जरिया मानते हैं. ट्रंप का तर्क है कि ये व्यापार वार्ताओं में सौदेबाजी का एक जरिया भी हो सकते हैं. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि टैरिफ एक साथ इन सभी लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते हैं और कम समय के फायदे के साथ-साथ लंबे समय की आर्थिक लागत भी आ सकती है. 

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