भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में बढ़ती हिंसा और लोगों के दमन पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान द्वारा एक बार फिर कश्मीर मुद्दा उठाए जाने के बाद भारत ने अपने 'राइट टू रिप्लाई' का उपयोग किया. संयुक्त राष्ट्र में भारत ने सख्त शब्दों में कहा कि पाकिस्तान अपने अवैध कब्जे वाले इलाकों में हो रहे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों को तुरंत रोके.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरीश परवथनेनी ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर के लोग भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक ढांचे के अनुरूप अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हैं... लेकिन ये अधिकार पाकिस्तान के लिए अब भी एक अजनबी अवधारणा हैं.' उन्होंने दोहराया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है- यह न पहले बदला था, न अब बदलेगा, और न ही कभी बदलेगा.
PoK में बनी बगावत की स्थिति
हरीश परवथनेनी ने कहा कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर में सेना के माध्यम से जनता का दमन कर रहा है. उन्होंने कहा कि पीओके की जनता अब पाकिस्तानी सैन्य उत्पीड़न और संसाधनों के अवैध दोहन के खिलाफ खुले विद्रोह पर उतर आई है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरीश परवथनेनी ने कहा, 'पाकिस्तान अपने अवैध कब्जे वाले क्षेत्रों में जारी गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों को रोके, जहां जनता उसकी सैन्य बर्बरता और शोषण के खिलाफ सड़कों पर उतर आई है.'
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PAK आर्मी की गोली से 12 मौतें
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अक्टूबर की शुरुआत में नागरिक सुविधाओं और सरकारी उपेक्षा के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन कुछ ही दिनों में सैन्य ज्यादतियों के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन में बदल गया. प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों में 12 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए. करीब दस दिनों तक चले इस आंदोलन ने इस्लामाबाद की पकड़ को हिला दिया, जिसके बाद पाकिस्तान सरकार को प्रदर्शनकारियों से समझौता करना पड़ा.
संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि पाकिस्तान की लोकतंत्र व्यवस्था सेना के प्रभाव में बंधक बनी हुई है. उन्होंने कहा कि देश ने 33 साल तक सैन्य शासन झेला है, और आज तक कोई भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है.
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संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत
हरीश परवथनेनी ने अपने वक्तव्य के अंत में कहा कि संयुक्त राष्ट्र को 'वास्तविक और व्यापक सुधारों' की जरूरत है ताकि वह 2025 की चुनौतियों का सामना कर सके. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की पुरानी संरचना, जो 1945 की भू-राजनीतिक परिस्थितियों पर आधारित है, अब मौजूदा वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं है. उन्होंने सदस्य देशों को चेताया कि वे संयुक्त राष्ट्र को 'विभाजनकारी राजनीति और संकीर्ण हितों के मंच' के रूप में इस्तेमाल न करें.