भारतीय मूल की अमेरिकी राजनयिक महवश सिद्दीकी ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम पर गंभीर सवाल उठाते हुए अमेरिका से इसकी तत्काल समीक्षा तक इसे रोकने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया है कि इस कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी और रिश्वत का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके जरिए अयोग्य भारतीय आवेदक सिस्टम का फायदा उठाकर अमेरिका में प्रवेश कर रहे हैं.
एंटी-इमिग्रेंट थिंक टैंक सेंटर फॉर इमिग्रेंट स्टडीज के लिए लिखे लेख में महवश सिद्दीकी ने चेन्नई स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास में जूनियर अधिकारी के तौर पर अपने अनुभव का हवाला दिया. उन्होंने दावा किया कि 20 से 45 साल की उम्र के कई भारतीय नागरिक एच-1बी वीजा को अमेरिका में आने का आसान रास्ता मानते हैं और फर्जी या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए दस्तावेजों के जरिए प्रवेश पाते हैं. इससे योग्य अमेरिकी आईटी और एसटीईएम प्रोफेशनल्स को नुकसान हो रहा है.
'भ्रष्ट एचआर अधिकारी करते हैं अयोग्य उम्मीदवारों की मदद'
सिद्दीकी के मुताबिक, कई एच-1बी आवेदक कंप्यूटर साइंस की डिग्री का दावा करते हैं, लेकिन उनके पास न तो पढ़ाई का रिकॉर्ड होता है और न ही प्रोग्रामिंग स्किल. ऐसे उम्मीदवार अक्सर बेसिक कोडिंग टेस्ट में भी फेल हो जाते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि भारत और अमेरिका दोनों जगहों पर भ्रष्ट एचआर अधिकारी फर्जी नियुक्ति पत्रों के जरिए ऐसे अयोग्य उम्मीदवारों को जांच से बचाने में मदद करते हैं.
'रिश्वत से भारतीय आवेदकों को मिल रहा फायदा'
उन्होंने दावा किया कि समस्या सिर्फ आईटी सेक्टर तक सीमित नहीं है. कुछ भारतीय मेडिकल ग्रेजुएट्स, जो रिश्वत या आरक्षण के जरिए मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाते हैं, जे-1 वीजा पर अमेरिका के रेजिडेंसी प्रोग्राम में शामिल हो जाते हैं और बाद में डॉक्टर के तौर पर काम करते हैं, जबकि उनकी योग्यता अमेरिकी डॉक्टरों से कम होती है. महवश सिद्दीकी ने दावा किया कि रिश्वत और धोखाधड़ी को सामाजिक रूप से स्वीकार किए जाने की वजह से भारतीय आवेदकों को एक तरह का फायदा मिल जाता है.