नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा देने के बाद पहली बार सार्वजनिक मंच पर नजर आए. वे शनिवार को पार्टी के छात्र संगठन राष्ट्रीय युवा संघ के कार्यक्रम में भक्तपुर पहुंचे. भारी प्रदर्शनों के बाद ओली ने 9 सितंबर को प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था. इसके बाद से वे जनता के बीच नहीं आ रहे थे. केपी शर्मा ओली ने आगे कहा, "मौजूदा सरकार को 'Gen-Z सरकार' कहा जाता है, जो न तो संवैधानिक प्रावधानों के तहत बनी है, न ही जनता के वोट से. यह तोड़फोड़ और आगजनी के जरिए बनी है."
शुरुआत में केपी ओली को नेपाल आर्मी की सुरक्षा में रखा गया और बाद में एक अस्थायी घर में शिफ्ट किया गया. अब पार्टी की बैठक के बाद वे दोबारा सामने आए हैं. माना जा रहा है कि उनकी यह मौजूदगी युवाओं से जुड़ने और राजनीतिक पकड़ बनाए रखने की कोशिश है.
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नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा, "अगले दिन, 9 सितंबर को, एक दिन पहले हुई घटना के बाद मैंने सुबह करीब 11 बजे इस्तीफा दे दिया. पहले दिन अवांछित घटनाएं हुई थीं और मेरी कोशिश थी कि इसे और न बढ़ाया जाए लेकिन जब मुझे लगा कि अब मेरे हाथ में कुछ नहीं है, तो मैंने पद छोड़ दिया. इसके बाद आगजनी, तोड़फोड़ और लूटपाट की घटनाएं शुरू हो गईं."
ओली को देना पड़ा इस्तीफा
Gen-Z हिंसा और दबाव के चलते ओली को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा था. प्रदर्शन और आगजनी के बीच उन्हें पीएम हाउस से बेलिकॉप्टर के जरिए रेस्क्यू किया गया था. उनकी जगह पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया. हालांकि, ओली का कहना है कि उन्होंने पुलिस को गोली चलाने का आदेश नहीं दिया था, लेकिन जनता का गुस्सा उनकी सरकार पर फूटा.
भ्रष्टाचार के खिलाफ Gen-Z की क्रांति
आंदोलन को अब "जनरेशन-ज़ेड क्रांति" कहा जा रहा है. लोग इसकी तुलना 2006 के जन आंदोलन से कर रहे हैं, जिसने राजा ज्ञानेंद्र की सत्ता खत्म कर नेपाल को गणराज्य बनाया था. फिलहाल संसद भंग हो चुकी है और मार्च 2026 में चुनाव होने वाले हैं लेकिन काठमांडू और बाकी बड़े शहरों में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं.
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Gen-Z प्रोटेस्ट में 74 लोगों की मौत हुई
ऐसे हालात में ओली की वापसी को राजनीतिक विश्लेषक उनकी प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश मान रहे हैं. पारदर्शिता, भ्रष्टाचार खत्म करने और सोशल मीडिया बैन वापस लेने की मांग को लेकर शुरू हुए इस आंदोलन ने देखते-देखते उग्र रूप ले लिया था. उस दिन ही 21 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश छात्र थे. अगले दिन 39 और मौतें दर्ज हुईं, जिनमें 15 लोग गंभीर रूप से जलने से मारे गए. इसके बाद अगले दस दिनों में 14 और लोगों की मौत हुई. अब तक कुल 74 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है.