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फ्रांसीसी PM के इस्तीफे से बढ़ीं मैक्रों की मुश्किलें, लेकोर्नू ने 27 दिन में ही छोड़ी कुर्सी

फ्रांस के नए प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने पद से इस्तीफा दे दिया है. वो 27 दिन पहले ही राष्ट्रपति बने थे और पद छोड़ने से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने अपनी कैबिनेट की लिस्ट जारी की थी. लेकोर्नू के इस्तीफे से राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

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फ्रांस के प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने इस्तीफा दे दिया है (Photo: Reuters)
फ्रांस के प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू ने इस्तीफा दे दिया है (Photo: Reuters)

फ्रांस के नए प्रधानमंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू और उनकी सरकार ने सोमवार को इस्तीफा दे दिया. यह घोषणा उन्होंने अपने कैबिनेट की लिस्ट जारी करने के कुछ ही घंटे बाद की. लेकोर्नू के इस्तीफे के साथ ही उनकी सरकार आधुनिक फ्रांसीसी इतिहास के सबसे कम समय तक चलने वाली सरकार बन गई. लेकोर्नू 27 दिन पहले ही प्रधानमंत्री बने थे और उनके इस्तीफे के साथ ही फ्रांस का राजनीतिक संकट और गहरा गया है.

लेकोर्नू का अचानक इस्तीफा ऐसे वक्त में आया जब लेकोर्नू के सहयोगियों और विपक्षी दलों, दोनों ने ही नई सरकार को गिराने की धमकी दी थी.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, लेकोर्नू ने कहा कि ऐसे माहौल में वे अपना काम नहीं कर सकते. इस घोषणा के बाद शेयर बाजार और यूरो की कीमतों में तेजी से गिरावट देखी गई.

विपक्ष ने मांगा मैक्रों का इस्तीफा

प्रधानमंत्री के इस्तीफे के साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. विपक्षी दलों ने तुरंत राष्ट्रपति मैक्रों से इस्तीफा देने या संसद के चुनाव जल्द कराने की मांग की. उनका कहना है कि वर्तमान संकट से निकलने का यही एकमात्र रास्ता है.

लेकोर्नू, जो दो साल में मैक्रों के पांचवें प्रधानमंत्री थे, केवल 27 दिन ही पद पर रहे. उनकी सरकार सिर्फ 14 घंटे चली, जो फ्रांसीसी संसद में गहरे मतभेदों का सबूत है. फ्रांस यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जिसकी वित्तीय स्थिति डांवांडोल चल रही है और इसकी वजह से सरकार भारी दबाव में है.

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2022 में मैक्रों दोबारा राष्ट्रपति बने थे. और तब से ही फ्रांस की राजनीति लगातार अस्थिर रही है क्योंकि किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. पिछले साल मैक्रों के समय से पहले चुनाव कराने के फैसले ने संसद में और अधिक मतभेद पैदा किया था.

अब मैक्रों के सामने तीन विकल्प हैं- फिर से जल्द चुनाव कराना, खुद इस्तीफा देना या किसी और प्रधानमंत्री को नियुक्त करना. हालांकि, मैक्रों ने बार-बार यह साफ किया है कि वे इस्तीफा नहीं देंगे और न ही चुनाव कराएंगे. अब तक उन्होंने लेकोर्नू के इस्तीफे पर सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी है.

फ्रांस की बीएफएम टीवी ने राष्ट्रपति मैक्रों की एक फुटेज दिखाई, जिसमें वे सीन नदी के किनारे अकेले टहलते नजर आ रहे थे.

विपक्ष बोला- खत्म करो नाटक

विपक्ष के कई नेताओं ने मैक्रों से जल्द चुनाव कराने या इस्तीफा देने की मांग की. धुर-दक्षिणपंथी मरीन ले पेन ने कहा, 'यह मजाक बहुत लंबा खिंच गया है, अब ये नाटक खत्म होना चाहिए.' 

वामपंथी पार्टी फ्रांस अनबाउड की मैथिल्ड पानो ने कहा, 'काउंटडाउन शुरू हो गया है, मैक्रों को जाना ही होगा.' डेविड लिसनार्ड, जो कंजरवेटिव रिपब्लिकन पार्टी से हैं, ने भी राष्ट्रपति से पद छोड़ने की अपील की.

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रिपब्लिकन पार्टी प्रमुख और पूर्व गृह मंत्री ब्रूनो रिटेलो ने कहा कि अब फैसला मैक्रों के हाथ में है. उन्होंने टीवी चैनल TF1 से कहा, 'अगर गतिरोध बना रहता है तो हमें फिर से चुनाव कराने होंगे, लेकिन उससे पहले भी कई रास्ते हैं.' 

लेकोर्नू ने कहा कि विपक्षी नेताओं के 'अहंकार' और उनकी अपनी पार्टियों के भीतर बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण समझौते की कोई संभावना नहीं बची थी और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

नए कैबिनेट को लेकर हुआ विरोध और पीएम ने दिया इस्तीफा

लेकोर्नू ने रविवार को कई हफ्तों की राजनीतिक बैठकों के बाद अपने मंत्रियों की सूची जारी की थी. सोमवार दोपहर नई सरकार की पहली बैठक होनी थी, लेकिन इससे पहले ही विरोध शुरू हो गया.

कई दलों ने कहा कि कैबिनेट 'धुर-दक्षिणपंथी' मंत्रियों से भरी पड़ी है तो कुछ ने कहा कि कैबिनेट में पर्याप्त दक्षिणपंथी नहीं हैं. विरोध से परेशान लेकोर्नू ने राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंप दिया, जिसे मैक्रों ने स्वीकार कर लिया.

1958 में स्थापित फ्रांस के फिफ्थ रिपब्लिक सिस्टम के बाद से देश ने शायद ही कभी इतना गहरा राजनीतिक संकट देखा हो. यह सिस्टम स्थिर शासन के लिए बनाई गई थी, जिसमें राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियां दी गईं लेकिन अब वही सिस्टम अस्थिरता की शिकार हो रहा है.

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2017 में सत्ता में आने के बाद से मैक्रों फ्रांस में काफी लोकप्रिय हुए लेकिन 2022 में दोबारा चुने जाने के बाद से ही वो मुश्किलों का सामना कर रहे हैं क्योंकि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. फ्रांस की राजनीति में गठबंधन की परंपरा नहीं रही है और यही अब उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है. 

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