अमेरिका की सुपर पावर की छवि में पिछले दशकों में जो भी खरोंच लगे, चीन के उभार की वजह से उसका जो दबदबा कम हुआ था, इसकी भरपाई के लिए राष्ट्रपति ट्रंप सख्ती से एक नीति का पालन कर रहे हैं. वैश्विक मंच पर अमेरिकी दबदबे की वापसी के लिए ट्रंप आक्रामक रणनीति अपनाते दिखाई दे रहे हैं. पहले उन्होंने अर्थव्यवस्था यानी कि टैरिफ को 'हथियार' बनाया. और दुनिया में अमेरिकी व्यापार की परिभाषा ही बदल दी. इसके जरिये ट्रंप ने अरबों डॉलर कमाए.
ट्रंप 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर चलकर अमेरिका के नंबर वन पोजिशन को मजबूत कर रही रहे थे. इस बीच उन्होंने क्रिश्चयन पहचान को हवा दी. ट्रंप ने खुद को दुनिया भर में ईसाइयों के नेता और रक्षक के रूप में पेश करते हुए नाइजीरिया समेत अफ्रीका के कुछ देशों में हो रहे ईसाइयों की हत्या के मुद्दे को उठाया और कहा कि दुनिया भर में हो रहे महान ईसाइयों की हत्याओं को रोकने के लिए वे अब तैयार हैं. इस बयान के साथ ही ट्रंप ने खुद को क्रिश्चयन समुदाय का नेता घोषित कर दिया है.
अमेरिका के राष्ट्रपति का एक और बयान जो चर्चा में है वो है दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश, परमाणु संपन्न देश और तमाम तरह के अत्याधुनिक हथियारों से लैस होने के बावजूद ट्रंप का परमाणु बमों के लिए भूख की चाहत. ट्रंप ने अमेरिकी एजेंसियों को 33 साल के अंतराल के बाद एक बार फिर से एटम बमों की टेस्टिंग करने को कहा है.
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह रुख “अमेरिका फर्स्ट” की पुरानी नीति का ही एक नया मगर अधिक आक्रामक संस्करण है.
टैरिफ की कमाई से भरा खजाना
ट्रंप ने जनवरी 2025 में सत्ता संभालते ही अमेरिका की आर्थिक व्यवस्था को उलट-पुलट कर रख दिया. उनके निशाने पर भारत समेत कई देशों के साथ होने वाला व्यापार घाटा था. ट्रंप ने 2 अप्रैल को 'लिबरेशन डे' घोषित किया और सभी देशों पर 10% शुल्क लगाया.
व्हाइट हाउस के अनुसार यह ट्रेड डेफिसिट को खत्म करने का इमरजेंसी कदम था. ट्रंप दावा करते हैं कि 7.6 ट्रिलियन डॉलर के विदेशी निवेश आकर्षित हो चुके हैं.
ट्रंप ने अमेरिकी उद्योगों को 'वापस घर लाने' का नारा दिया और वैश्वीकरण की जगह 'मेड इन अमेरिका' पर जोर दिया. इससे अमेरिकी बाजारों में एक दौर के लिए मजबूती तो दिखी, लेकिन इससे ग्लोबल सप्लाई चेन पर गहरा असर पड़ा. भारत भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ट्रंप की नीतियों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 'अल्पकालिक लाभ' तो दिया, परंतु लंबे समय के लिहाज से देखें तो अमेरिका ने एक विश्वसनीय सहयोगी की भूमिका को खो दिया. इससे अविश्वास और अस्थिरता दोनों ही पनपे.
ट्रंप ने अर्थव्यवस्था को भू-राजनीतिक हथियार में बदल दिया. लेकिन इस नीति ने सहयोगियों के बीच अविश्वास और वैश्विक व्यापार संतुलन में अस्थिरता पैदा की.
लेकिन ट्रंप को लगता है कि अमेरिका की धमक कायम करने के लिए टैरिफ और ट्रेड अहम हथियार हैं.
ईसाइयत की चिंता
बतौर राष्ट्रपति दूसरी पारी में ट्रंप ने धर्म और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को पहले से कहीं अधिक ताकत से उठाया. जिस अमेरिका को पश्चिमी विचारक कथित रूप से उदार मानवीय मूल्यों का केंद्र बताते हैं वहां ट्रंप ने 'क्रिश्चियन मूल्यों' की रक्षा को देशभक्ति का प्रतीक बताया और प्रवासियों तथा उदारवादी नीतियों पर खुला हमला बोला.
अमेरिका में सांस्कृतिक पहचान को लेकर ट्रंप सक्रिय रहे. इससे रिपब्लिकन वोट बैंक में उनकी लोकप्रियता बढ़ी. विदेश नीति में भी उन्होंने इन विचारों को शामिल कर अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में धार्मिक पहचान के मुद्दों को अमेरिका की सामरिक योजना के साथ जोड़ा.
ट्रंप ने नाइजीरिया में कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकियों के हाथों गरीब ईसाइयों की क्रूरता पूर्वक हत्या के मुद्दे को उठाया.
"The United States cannot stand by while such atrocities are happening in Nigeria, and numerous other Countries. We stand ready, willing, and able to save our Great Christian population around the World!" - PRESIDENT DONALD J. TRUMP pic.twitter.com/jvWcJmUPJ7
— The White House (@WhiteHouse) October 31, 2025
ट्रंप ने कहा कि यदि नाइजीरियाई सरकार ईसाइयों की हत्या जारी रखने देती है, तो अमेरिका तुरंत सभी सहायता बंद कर देगा और इस देश में
जाकर इस्लामिक आतंकवादियों को पूरी तरह खत्म कर देगा. उन्होंने पेंटागन को संभावित 'तेज' सैन्य योजना बनाने का आदेश दिया.
राष्ट्रपति ने ईसाइयों को 'महान' बताया और कहा कि वे उन्हें मरते हुए नहीं देख सकते हैं. ट्रंप का यह कदम रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज़ द्वारा नाइजीरिया में "ईसाई सामूहिक हत्या" के दावों के बाद आया है.
इस तरह से ट्रंप ने वेटिकन सिटी, जो ईसाई आस्था का केंद्र है, के रोल में खुद को रखा है. निश्चित रूप से वे इसके जरिये अमेरिका और खुद का प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं.
न्यूजवीक ने अपने ओपिनियन में कहा है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देकर ग्लोबल साउथ में अमेरिकी प्रभाव बढ़ाएगा. लेकिन ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट जैसे संस्थान मानते हैं कि इससे आतंकवाद विरोधी अभियान कमजोर हो रहा है.
अगर ट्रंप ईसाइयों की रक्षा के नाम पर नाइजीरिया में सैन्य कार्रवाई करते हैं तो ये अमेरिकी विदेश नीति के डोमेन का बड़ा विस्तार होगा.
नए सिरे से न्यूक्लियर होने की चाहत
अमेरिका दुनिया का एकमात्र देश है जिसने एक दूसरे देश पर परमाणु बम का इस्तेमाल किया है. इस लिहाज से अमेरिका के पास परमाणु बम के प्रैक्टिकल इस्तेमाल का सबसे ज्यादा तजुर्बा है. बावजूद ट्रंप की परमाणु हथियारों की भूख शांत नहीं हुई है. हाल ही में ट्रंप ने यह कहकर सबको चौंका दिया अमेरिका भी परमाणु परीक्षण करने जा रहा है.
30 अक्टूबर को ट्रुथ सोशल पर ट्रंप ने घोषणा की कि रूस-चीन टेस्ट कर रहे, हम भी शुरू करेंगे. ट्रंप ने सोमवार को कहा कि रूस, चीन परमाणु बमों की टेस्टिंग करते हैं लेकिन वे दुनिया को बताते हैं, इसलिए हम भी परमाणु परीक्षण करेंगे.
ट्रंप की परमाणु बमों की ये भूख दुनिया को हथियारों की एक अंतहीन रेस की ओर ले जा सकती है.
अमेरिका के न्यूक्लियर हेडकाउंट और हथियारों के तकनीकी एडवांसमेंट के लिए ट्रंप ने भारी निवेश की योजना बनाई है. इस कदम का मकसद न केवल रूस और चीन को चुनौती देना है, बल्कि अमेरिका की वर्चस्व स्थिति को कायम रखना भी है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी यह संकेत दिया है कि अमेरिका की नयी न्यूक्लियर नीति अधिक आक्रामक और डिटरेक्टिव होगी, जिससे वैश्विक सुरक्षा समीकरणों में अमेरिका का दबदबा बना रहे.
ट्रंप दुनिया भर में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका के प्रतिरोध और शक्ति प्रदर्शन क्षमता को दिखाना चाहते हैं. ट्रंप ने कहा कि आपको अपने आयुध भंडारों की विश्वसनीयता की पुष्टि करनी चाहिए, अन्यथा आपको वास्तव में पता नहीं चलेगा कि वे काम करते हैं या नहीं. दरअसल ट्रंप किसी भी आपात स्थिति में पीछे नहीं रहना चाहते हैं.
रूस द्वारा हाल ही में किए गए अनोखे न्यूक्लियर डिलीवरी सिस्टम ने ट्रंप की चिंता बढ़ा दी है. इसमें परमाणु ऊर्जा से चलने वाली बुरेवेस्टनिक क्रूज मिसाइल और पोसाइडन अंडरवाटर ड्रोन शामिल हैं, जो अमेरिकी तटों पर हमला कर सकते हैं.
दरअसल ट्रंप की यह कोशिश उनके "पीस थ्रू स्ट्रेंथ" नीति के अनुरूप है, जो विरोधियों का मुकाबला करने के लिए आक्रामक रुख अपनाने से जुड़ा है.