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तारिक रहमान के बांग्लादेश आते ही छात्रों की पार्टी में फूट, NCP के टॉप लीडर का इस्तीफा

बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के छात्र नेता मीर अरशादुला हक ने पार्टी की विफलताओं का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान के प्रति अपना समर्थन भी जताया है. मीर अरशादुला हक ने पार्टी के वादों को पूरा न करने और गलत रास्ते पर चलने का आरोप लगाया है.

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मीर अरशादुल हक एनसीपी में कई अहम जिम्मेदारियों में रहे हैं (File Photo)
मीर अरशादुल हक एनसीपी में कई अहम जिम्मेदारियों में रहे हैं (File Photo)

बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के छात्र नेता मीर अरशादुल हक ने पद से इस्तीफा दे दिया है. वो पार्टी की केंद्रीय समिति के संयुक्त सचिव थे. इस्तीफे के पीछे की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी पिछले साल जुलाई में हुए जन आंदोलन के वादों को पूरा करने में विफल रही है. साथ ही उन्होंने बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान के प्रति अपना समर्थन भी जताया है.

मीर अरशादुल हक एनसीपी में कई अहम जिम्मेदारियों में रहे हैं. वो केंद्रीय संयुक्त सचिव, कार्यकारी परिषद के सदस्य, मीडिया सेल और अनुशासन समिति के सदस्य, पर्यावरण सेल के प्रमुख और कुमिल्ला सिटी के मुख्य समन्वयक थे.

आगामी संसदीय चुनाव में उन्हें चट्टोग्राम-16 सीट से पार्टी का टिकट भी मिला था. वो ढाका यूनिवर्सिटी जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (डूजा) के पूर्व उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं.

छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं अरशादुल हक

अपने छात्र जीवन के दौरान मीर अरशादुल हक कैंपस पत्रकारिता के साथ-साथ विभिन्न आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों से जुड़े रहे. जुलाई आंदोलन के बाद वो सबसे पहले जातीय नागरिक समिति से जुड़े. बाद में जब शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाले युवा छात्र नेताओं ने एनसीपी का गठन किया, तो वो भी इससे जुड़ गए.

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गुरुवार सुबह, जब 17 सालों के बाद तारिक रहमान लंदन से वापस लौटे, उसी दिन मीर अरशादुल हक ने फेसबुक पोस्ट के जरिए एनसीपी से अपने इस्तीफे की घोषणा की. 'एक विशेष घोषणा' शीर्षक से लिखी पोस्ट में उन्होंने कहा, 'मैं नेशनल सिटिजन पार्टी से इस्तीफा देता हूं. मैं एनसीपी की ओर से चटगांव-16 (बांसखाली) सीट से चुनाव नहीं लड़ूंगा. मैं यह घोषणा एक विशेष दिन पर कर रहा हूं, जिस दिन बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान 17 साल के निर्वासन के बाद देश लौटे हैं. स्वागत है.'

एनसीपी को लेकर अपनी निराशा जाहिर करते हुए उन्होंने लिखा, 'एनसीपी की यात्रा जुलाई जन आंदोलन की आकांक्षाओं और एक नई राजनीतिक व्यवस्था के वादे के साथ शुरू हुई थी. लेकिन पार्टी के गठन के बाद बीते 10 महीनों के अपने अनुभव के आधार पर मेरे लिए यह साफ हो गया है कि यह पार्टी और इसके नेतृत्व उस वादे को पूरी तरह निभाने में असफल रहे हैं.'

उन्होंने आगे लिखा, 'जिन सपनों और संभावनाओं ने मुझे एनसीपी की ओर आकर्षित किया था, वे अब नहीं बचे हैं. मेरा मानना है कि पार्टी और इसके अधिकांश नेता गलत रास्ते पर चल पड़े हैं. मैं इस गलत रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकता. इसी वक्त से एनसीपी के साथ मेरे सभी राजनीतिक संबंध समाप्त होते हैं. हालांकि व्यक्तिगत संबंध बने रहेंगे. मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं.'

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'तारिक ही बांग्लादेश का सही से नेतृत्व कर सकते हैं'

अरशादुल हक ने कहा कि इस समय बांग्लादेश के लिए सबसे बड़ी जरूरत लोकतंत्र की तरफ बढ़ना और स्थिरता की स्थापना है.

उन्होंने लिखा, 'देश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए मुझे लगता है कि तारिक रहमान के नेतृत्व में बीएनपी गठबंधन का बहुमत की सरकार बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. जुलाई आंदोलन और उसके बाद तारिक रहमान की गतिविधियों व बयानों की समीक्षा करने पर मेरा व्यक्तिगत आकलन है कि वर्तमान समय में वही ऐसे नेता हैं जो देश का सही तरीके से नेतृत्व कर सकते हैं.'

उन्होंने आगे लिखा, 'जब अन्य दल धर्म और लोकलुभावन राजनीति को अपना मुख्य एजेंडा बनाकर चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, तब तारिक रहमान स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण सहित आम लोगों के दैनिक जीवन से जुड़े मुद्दों पर बात कर रहे हैं. वो सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, संस्कृति और रोजगार जैसे क्षेत्रों के लिए ठोस और व्यावहारिक समाधान भी सामने रख रहे हैं. यही स्मार्ट सोच मुझे आकर्षित करती है.'

उन्होंने लिखा कि युवाओं को किसी भी प्रकार की लोकलुभावन राजनीति या दिखावे से प्रभावित होने के बजाय देश के हित, भविष्य और कल्याण पर ध्यान देना चाहिए.

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मीर अरशादुल हक के इस्तीफे पर एनसीपी की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि पार्टी के एक सूत्र ने बताया कि एनसीपी बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी समझौते को लेकर बातचीत कर रही है. पार्टी का एक धड़ा इस कदम के पक्ष में है, जबकि दूसरा इसके खिलाफ. मीर अरशादुल हक उन नेताओं में शामिल हैं जो जमात के साथ गठजोड़ के विरोधी रहे हैं.

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