उत्तर भारत में पड़ रही कड़ाके की ठंड का असर अब धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी में भी साफ दिखाई देने लगा है. ठंड का प्रकोप इस कदर बढ़ गया है कि वाराणसी देश के 10 सबसे ठंडे शहरों में शामिल हो चुका है. हालात यह हैं कि यहां का न्यूनतम तापमान शिमला और मनाली जैसे पहाड़ी इलाकों से भी नीचे दर्ज किया गया है. इस भीषण ठंड से न सिर्फ आम जनजीवन प्रभावित है, बल्कि धार्मिक आस्थाओं में भी इसका असर देखने को मिल रहा है.
काशी में ठंड का असर अब मंदिरों तक पहुंच गया है. यहां देवी-देवताओं की मूर्तियों को ठंड से बचाने के लिए ऊनी वस्त्र, कंबल और रजाई ओढ़ाई जा रही है. कई मंदिरों में तो भगवान को ठंड से राहत देने के लिए ब्लोवर तक लगाए गए हैं. मंदिरों में यह दृश्य इन दिनों आम हो गया है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ भी उमड़ रही है.
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मंदिरों में दिखी एक जैसी तस्वीर
काशी के अधिकांश मंदिरों में इन दिनों एक जैसी तस्वीर देखने को मिल रही है. मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को गर्म ऊनी कपड़ों से ढक दिया गया है. कहीं रजाई-कंबल ओढ़ाए गए हैं तो कहीं पास में ब्लोवर चलते नजर आ रहे हैं. भक्तों का मानना है कि जिस तरह इंसानों को ठंड, गर्मी, भूख और प्यास का अहसास होता है, उसी तरह भगवान को भी इन सबका अनुभव होता है.
इसी आस्था और भावना के चलते भक्त भगवान को ठंड से बचाने के लिए यह व्यवस्था करते हैं. उनका कहना है कि भगवान हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं और उनकी सेवा करना ही सच्ची भक्ति है. यही वजह है कि ठंड बढ़ते ही मंदिरों में विशेष इंतजाम किए जाते हैं.
प्रमुख मंदिरों में बढ़े इंतजाम
वाराणसी के गोलघर इलाके का प्राचीन सिद्धीदात्री मंदिर हो या लोहटिया इलाके का राम जानकी मंदिर और वहीं स्थित प्रसिद्ध बड़ा गणेश मंदिर-सभी प्रमुख मंदिरों में ठंड से बचाव के उपाय किए गए हैं. यहां देवी-देवताओं की मूर्तियों को न सिर्फ ऊनी वस्त्र पहनाए गए हैं, बल्कि रजाई और कंबल भी ओढ़ाए गए हैं.
मंदिर परिसर में आने वाले श्रद्धालु इन दृश्यों को देखकर भावुक हो रहे हैं. उनका कहना है कि यह काशी की परंपरा और आस्था का प्रतीक है, जहां भगवान की सेवा इंसान की तरह की जाती है.
पुजारियों और श्रद्धालुओं की मान्यता
राम जानकी मंदिर के महंत और पुजारी देवेंद्र नाथ चौबे और बड़ा गणेश मंदिर के पुजारी प्रदीप त्रिपाठी का कहना है कि वाराणसी में ठंड बेहद कड़ी पड़ रही है. जिस तरह इंसानों को ठंड सताती है, उसी तरह मान्यता है कि भगवान को भी ठंड से बचाया जाना चाहिए. यह आस्थावानों की भावना है, जो हर साल ठंड के मौसम में दिखाई देती है.
उन्होंने बताया कि बैकुंठ चतुर्दशी से लेकर बसंत पंचमी तक भगवान को ऊनी वस्त्र पहनाए जाते हैं. इसके साथ ही भोग-प्रसाद में भी गर्म व्यंजन चढ़ाए जाते हैं. स्थानीय श्रद्धालुओं और काशी आए तीर्थयात्रियों का भी यही कहना है कि जैसे इंसान को सर्दी-गर्मी का अहसास होता है, वैसे ही भगवान को भी होता है. इसी भावना से भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान की सेवा करते हैं.