उत्तर प्रदेश में कानपुर में खुद को पुलिस अधिकारी बताकर लोगों को डराने और पैसे ऐंठने वाले एक संगठित साइबर ठग गिरोह का पर्दाफाश हुआ है. श्रावस्ती जिले के रहने वाले प्रमोद कुमार को मिली एक धमकी भरी कॉल ने पूरे मामले की परतें खोल दीं. कॉल करने वाले ने खुद को “कानपुर से डीसीपी क्राइम” बताते हुए कहा कि प्रमोद के मोबाइल डेटा की जांच में आपत्तिजनक वीडियो देखने की पुष्टि हुई है और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका है.
प्रमोद कुमार को कॉल आई. दूसरी ओर से कॉलर ने कहा- 'मैं कानपुर से डीसीपी क्राइम बोल रहा हूं. पुलिस ने तुम्हारे मोबाइल डेटा की जांच की है. रिकॉर्ड में गंदे वीडियो देखने की पुष्टि हुई है. मामला दर्ज हो चुका है और टीम तुम्हारे घर रवाना है. अगर गिरफ्तारी से बचना है तो तुरंत पैसे ट्रांसफर करो.'घबराए प्रमोद ने शुरुआत में बातों को सच मान लिया, लेकिन बाद में सच्चाई सामने आने पर उन्होंने पुलिस से शिकायत की. हालांकि तब तक वे अपने पैसे गंवा चुके थे.
शिकायत के बाद खुला पूरा खेल
मामले की सूचना मिलने पर कानपुर साइबर क्राइम पुलिस ने 17 दिसंबर को मुकदमा दर्ज किया. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि एक संगठित गिरोह पुलिस अधिकारी बनकर लोगों को फोन कर रहा था. क्राइम ब्रांच की टीम ने कार्रवाई करते हुए दो सगे भाइयों सहित कुल पांच आरोपियों को दबोच लिया. आरोपी कानपुर देहात के जंगल और खेतों को ठिकाना बनाकर ठगी कर रहे थे. सभी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया है.
डर दिखाकर वसूले गए 46 हजार रुपए
डीसीपी क्राइम अतुल श्रीवास्तव ने बताया कि प्रमोद को आया फोन पूरी तरह से साजिश का हिस्सा था. कॉलर ने उसे पोर्न वीडियो देखने का दोषी बताते हुए जेल भेजने की बात कही. डर के कारण प्रमोद ने माफी मांगी. ठगों ने कहा कि यदि कार्रवाई रुकवानी है तो 50 हजार रुपए देने होंगे. प्रमोद ने रकम कम होने की बात कही, जिसके बाद ठगों ने उपलब्ध राशि भेजने को कहा. इसके बाद प्रमोद ने यूपीआई के जरिए 46 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए.
परिचित की सलाह से टूटा भ्रम
कुछ समय बाद प्रमोद ने यह घटना अपने एक जानकार को बताई. उसने समझाया कि यह पूरी तरह साइबर ठगी है. इसके बाद प्रमोद ने कानपुर साइबर क्राइम थाने पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने तहरीर के आधार पर केस दर्ज कर जांच शुरू की.
भाषा से हुआ शक, फिर फंसा गिरोह
जांच में सामने आया कि आरोपी अब तक करीब सात लोगों को इसी तरीके से निशाना बना चुके थे. कॉल करने वालों की बोली और लहजा पूरी तरह कानपुरिया था, जिससे पुलिस को सुराग मिला. इसके बाद टीम ने कानपुर देहात के गजनेर क्षेत्र से मन्नहापुर निवासी सगे भाई सुरेश और दिनेश, दुर्गापुरवा-नारायणपुर निवासी पंकज सिंह और बर्रा-2 इलाके के अमन विश्वकर्मा व विनय सोनकर को गिरफ्तार कर लिया.
सायरन की आवाज से बढ़ाते थे डर
डीसीपी क्राइम के अनुसार आरोपी खेतों और जंगल में अलग-अलग जगह बैठकर कॉल करते थे. एक आरोपी अधिकारी बनकर बात करता था, जबकि दूसरा मोबाइल में पहले से सेव ऑडियो क्लिप के जरिए पुलिस सायरन और वाहनों के हॉर्न की आवाज चलाता था. इससे पीड़ित को लगता था कि पुलिस वास्तव में उसके घर पहुंच चुकी है. इसके बाद आरोपी क्यूआर कोड, यूपीआई आईडी या ऑनलाइन ट्रांसफर के माध्यम से पैसे मंगवा लेते थे.
पढ़ाई का इस्तेमाल बना हथियार
पुलिस के मुताबिक पंकज सिंह गिरोह में सबसे ज्यादा शिक्षित है और बीए पास है. अमन और विनय इंटर तक पढ़े हैं, जबकि सुरेश आठवीं पास है. आरोपी अखबारों और सोशल मीडिया पर जारी पुलिस गश्ती और अधिकारियों की तैनाती की जानकारी पढ़ते थे. इसी आधार पर वे खुद को कानपुर पुलिस कमिश्नरेट का अफसर बताकर कॉल करते थे. डीसीपी अतुल श्रीवास्तव ने बताया कि आरोपियों ने उनके नाम का दुरुपयोग कर भी कई लोगों से ठगी की. तकनीकी डाटा के विश्लेषण के बाद गिरोह तक पहुंचा गया है. अभी कुछ आरोपी फरार हैं, जिनकी तलाश जारी है.
ऐसे फंसाते थे शिकार
पहले पीड़ित को फोन कर अश्लील वीडियो देखने का आरोप लगाया जाता था. फिर गिरफ्तारी की बात कहकर डराया जाता था. इसके बाद कथित डीसीपी से बात कराने के नाम पर पैसे ट्रांसफर कराए जाते थे.