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SIR के फाइनल राउंड में अखिलेश ने उतारे '44 दिग्गज', क्या स्लॉग ओवर में बचा पाएंगे गेम?

उत्तर प्रदेश में चल रही एसआईआर की प्रक्रिया पर नजर बनाए रखने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने 44 नेताओं को लगाया है. सपा ने इन नेताओं को अलग-अलग जिले की जिम्मेदारी सौंपी है. देखना है कि एसआईआर प्रक्रिया के अंतिम दौर में सपा अपने नेताओं को उतारकर क्या सियासी दुर्ग बचा पाएगी?

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एसआईआर प्रक्रिया पर नजर रखेंगे सपा के 44 दिग्गज नेता (Photo-X)
एसआईआर प्रक्रिया पर नजर रखेंगे सपा के 44 दिग्गज नेता (Photo-X)

क्रिकेट के खेल में सबसे रोमांचक पल स्लॉग ओवर का होता है. स्लॉग ओवर मतलब पारी का आखिरी पल, जब बल्लेबाज ज्यादा से ज्यादा रन बनाने की कोशिश करता है, तो गेंदबाज रन रोकने और ज्यादा से ज्यादा विकेट गिराने की कवायद में रहता है. कुछ ऐसे ही उत्तर प्रदेश में चल रही एसआईआर प्रक्रिया के अंतिम दौर में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने 44 दिग्गज नेताओं को निगरानी करने के लिए उतार दिया है. 

उत्तर प्रदेश समेत देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का काम इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है. इन राज्यों में एसआईआर में फार्म भरने की अंतिम तारीख चार दिसंबर है. एसआईआर प्रक्रिया में अब सिर्फ 6 दिन ही बचे हैं. ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को अपना एसआईआर फार्म भरकर बीएलओ को सौंप दिया है. 

अखिलेश यादव ने अपना एसआईआर फार्म जमा करने के दूसरे दिन शुक्रवार को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को जिलेवार प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है. सपा के नेता अपने-अपने जिलों में एसआईआर प्रक्रिया पर सिर्फ निगरानी ही नहीं रखेंगे बल्कि मतदाओं के नाम भी जुड़वाने का भी काम करेंगे. इस तरह एसआईआर प्रक्रिया का आखिरी पड़ाव में सपा के ये नेता कितना काम कर पाएंगे? 

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एसआईआर के मैदान में सपा 44 दिग्गज 
सपा की ओर से 44 राष्ट्रीय पदाधिकारियों को हर जिले में एसआईआर की निगरानी करने और समर्थक मतदाताओं के नाम सूची में शामिल कराने की जिम्मेदारी दी गई है. कई नेताओं को दो-दो जिलों का प्रभार दिया गया है. पार्टी की ओर से जारी सूची के मुताबिक पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बलराम यादव को आजमगढ़, शिवपाल यादव को इटावा और बदायूं, विशम्भर प्रसाद निषाद को बांदा और फतेहपुर, अवधेश प्रसाद को अयोध्या, इन्द्रजीत सरोज को प्रयागराज और कौशांबी की जिम्मेदारी दी गई है. 

राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन को आगरा और हाथरस, सांसद लालजी वर्मा को अंबेडकरनगर, राम अचल राजभर को वाराणसी, हरेन्द्र मलिक को मुजफ्फरनगर और सहारनपुर और नीरज पाल को बागपत में एसआईआर के लिए प्रभारी बनाया गया है. राष्ट्रीय सचिवों में कमाल अख्तर को मुरादाबाद और संभल, डॉ. मधु गुप्ता को लखनऊ जिला, ओमप्रकाश सिंह को गाजीपुर, राजीव राय को मऊ और बलिया और अभिषेक मिश्रा को लखनऊ महानगर का प्रभारी बनाया गया है. 

सपा नेता भी बनाएगें गहन रिपोर्ट
सपा प्रमुख ने अपने जिन दिग्गज नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है, उन सभी निर्देश दिए गए हैं कि वह अपने-अपने प्रभार वाले जिलों में तत्काल विधानसभावार भ्रमण करते हुए बीएलए की सूची और बूथ प्रभारियों की सूची की समीक्षा करें. साथ ही कहा गया है कि इस बात पर भी विशेष फोकस करें कि एसआईआर के लिए बूथवार कितने प्रपत्र बंट गए हैं, कितने जमा हुए और कितने अपलोड हो गए. साथ ही समीक्षा के बाद रिपोर्ट पार्टी मुख्यालय को भी उपलब्ध कराए.

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दलित-OBC को वोट बचाने का प्लान
सपा सांसद राजीव राय ने आजतक को बताया कि SIR के जरिए पिछड़े दलितों का वोट काटने की साजिश हो रही है. मुझे मऊ और बलिया की जिम्मेदारी मिली है और कल जब मैंने खुद पता किया तो पता लगा कि मऊ की सदर विधान सभा से लगभग 20 हजार नामों को डिलीट कर दिया गया है और किसी का बूथ संख्या तक नहीं दिया गया जिससे कि वेरिफाई भी न हो पाए. 

उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि अखिलेश यादव निर्देश पर हम पीडीए प्रहरी के नज़रिए से सभी सबूतों को इक्कठा कर साजिशों को चुनाव आयोग के सामने आए और जिनके नाम हट गए हैं कि उनके नाम वापस जोड़े जाए और किसी के नाम न काटे जाएं. 4 दिसंबर तक फार्म जमा करने की तारीख है, लेकिन उसके बाद उस पर आपत्ति दर्ज करने और उसे सुधारने का काम होगा. इसीलिए सपा ने अपने नेताओं को लगाया है. 

अखिलेश यादव चल रहे बड़ा दांव

अखिलेश यादव और डिंपल यादव की तरफ से यह बयान भी आया है कि SIR को बढ़ा देना चाहिए. क्योंकि अभी उत्तर प्रदेश का चुनाव होने काफी समय शेष है. इस तरह सपा ने एसआईआर प्रक्रिया का विरोध करने के बजाय उस पर निगरानी रखने की स्टैटेजी बनाई है ताकि समय रहते अपने वोटबैंक को बचाए रखा जा सके. 

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सपा अब बड़ा मुद्दा बनने की वही क्षमता मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के विरोध में नजर आ रही है. पार्टी रणनीति के तहत स्थानीय स्तर पर अपने मतदाताओं के नामों की मतदाता सूची में बनाए रखने की कोशिश है.

पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को एसआइआर के दौरान काटे जाने वाले एक-एक नाम का रिकार्ड रखने को कहा गया है, जिससे गलत कार्रवाई होने की सूरत में उदाहरण और सबूतों के साथ मुद्दे के मजबूत किया जा सके. सपा की रणनीति कितनी कामयाब होगी यह तो वर्ष 2027 में ही सामने आएगा. 

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