शहीद इसलिए कि सोमवार सुबह ऑफिस जाते देखिये शक्ल पर वो शहीदाना एक्सप्रेशन होते हैं कि लगता है देश के लिए फांसी के तख्त पर चढ़ने जा रहे हों, पर अभी बात सोमवार की नही वीकेंड की. वीकेंड वो वक्त होता है जब कामकाजी आदमी में अचानक वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाता है, देश-दुनिया से विरक्ति और काम-काज मोहमाया लगने लगता है, हालांकि वैराग्य स्थाई भाव न होकर संचारी भाव होता है जो सोम के वार के साथ ही विलुप्त हो जाता है.
इसके बाद भी अगर हिम्मत बचे तो पता चलता है इस बीच अचानक बच्चे कूदी लगा-लगाकर बड़े हो गए हैं, पता ये भी चलता है कि आपका सबसे बड़ा दुश्मन आपने घर में पाल रखा है ये वही होता है जो रविवार की सुबह बेवजह उठा देता है, वैसे भी वीकेंड पर दुनिया दुश्मन लगती है, जिन्दगी भर कोई एक गिलास पानी को न पूछे पर रविवार की सुबह आधे घंटे ज्यादा सोना चाहिए, सारे ब्रह्मांड के चर-अचर, स्थूल-सूक्ष्म अवयवों को आपसे काम निकल आता है, माहौल यूं बना दिया जाता है कि अब अगर एक क्षण भी आप और सोए तो धरती घूमना बंद कर देगी और ग्रह-नक्षत्र आपके छज्जे पर आ गिरेंगे.
छुट्टी के दिन सो पाना भी इतना आसान नही होता, कई बार तो इसलिए कि सोते-सोते पीठ दुखने लगती है, और कई बार तो इस खटके के चलते सोया नही जाता कि ज्यादा सो लो तो लगता है औकात से ज्यादा खर्च कर रहे हैं.
जो बात थी कि दुनिया आपको दुश्मन लगती है वो साबित भी होती है, हफ्ते भर आप गुरुदत्त की एक फिल्म या न्यूज चैनल पर कोई स्पेशल रिपोर्ट देखने को तरस जाइये क्योंकि किसी का 'जोधा-अकबर' या 'निन्जा हट्टोरी' चल रहा होता है. लेकिन वीकेंड पर जब रिमोट हाथ आएगा तो फिल्म के नाम पर 'जिगर कलेजा' और समाचार में कॉमेडी शोज की झलकियां देखने को ही मिलेंगी.
वीकेंड पर भले ही दुनिया आपके पीछे पड़ जाए, टीवी चैनल वाले पुरानी रंजिश निकालें, शिकायतों और मांग का सिलसिला न थमे, शहीदों को चाहिए कि इन सब बाधाओं को भी अपने आराम की आग में झोंक दें और लाख पीठ दुखे या बदन अकड़े बारह के पहले बिस्तर न छोड़ें.