आज़ादी का 79वां साल 15 अगस्त की तारीख आते ही, हर भारतीय के मन में देशभक्ति का जज़्बा जाग उठता है. यह सिर्फ एक छुट्टी का दिन नहीं, बल्कि उन लाखों शहीदों को याद करने का दिन है, जिन्होंने अपनी जान देकर हमें यह आज़ादी दिलाई. पर क्या हमने कभी सोचा है कि हमारे देश का इतिहास सिर्फ किताबों में ही नहीं, बल्कि उन हवाओं में है, दीवारों पर है, दरवाज़ों की ख़ामोशी में है और सबसे ज़्यादा उन ऐतिहासिक इमारतों में है, जो आज भी सीना ताने खड़ी हैं.
भारत वो देश है, जहां पत्थर सिर्फ पत्थर नहीं होते, वो इतिहास के गवाह होते हैं. रानी की वाव की सीढ़ियों से नीचे उतरिए, ऐसा लगेगा जैसे समय की गहराइयों में जा रहे हैं. कोणार्क मंदिर के पहिए सिर्फ सजावट नहीं हैं, वो वक्त को मापते हैं और और विक्टोरिया मेमोरियल की दीवारें आज भी ब्रिटिश दौर की कहानियां सुनाती हैं. इस बार जब घूमने की प्लानिंग करें तो लिस्ट में सिर्फ हिल स्टेशन या बीच मत डालिए. उसमें ऐतिहासिक जगहें भी जोड़िए, क्योंकि इन जगहों को नहीं देखा तो समझिए असली भारत देखना छूट गया.
यह भी पढ़ें: कभी टूरिस्टों से आबाद रहता था धराली, सैलाब ने एक झटके में कर दिया तबाह
राजस्थान की राजधानी जयपुर की पहचान है हवा महल. इसे 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था, जो भगवान कृष्ण के भक्त थे. यही वजह है कि इसकी बनावट भगवान कृष्ण के मुकुट जैसी रखी गई. हवा महल की सबसे खास बात इसकी 953 खिड़कियां हैं. ये इतनी बारीक और जालीदार हैं कि रानियां पर्दे की परंपरा निभाते हुए भी आसानी से बाहर की दुनिया देख सकती थीं, बिना किसी की नजर में आए. यह पांच मंजिला इमारत बिना किसी नींव के खड़ी की गई है. लेकिन इसकी पिरामिडनुमा बनावट इतनी सटीक है कि यह आज भी मजबूती से खड़ी है, जैसे वक्त को थामे हुए हो.

भोपाल से करीब 50 किलोमीटर दूर, मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में बसा है सांची. ये सिर्फ एक ऐतिहासिक जगह नहीं, बल्कि बौद्ध दर्शन का जीता-जागता प्रतीक है. यहां मौजूद सांची स्तूप को तीसरी सदी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने बनवाया था. इसके अलावा इस स्तूप का विशाल गुंबद धम्मचक्र यानी जीवन, मृत्यु और मोक्ष के चक्र का प्रतीक है. इतना ही ही नहीं चारों दिशाओं में बने तोरण द्वारों पर बुद्ध की जातक कथाएं खुदी हैं हर मूर्ति, हर शिल्प बुद्ध के जीवन का कोई संदेश लिए खड़ा है. आप अशोक स्तंभ और चार सिंह वाला भारत का राष्ट्रीय प्रतीक भी देखने को मिलेगा.

ओडिशा के समुद्र किनारे खड़ा कोणार्क मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, ये समय, कला और विज्ञान का अद्भुत संगम है. 13वीं सदी में गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने इसे बनवाया था. हालांकि पौराणिक कथाएं कहती हैं कि इस मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के पुत्र संबा ने सूर्य देवता की उपासना के लिए करवाया था. माना जाता है कि इसके भव्य निर्माण में करीब 1200 कारीगरों लगे थे. इसके अलावा मंदिर की दीवारों पर सूर्य उपासना से जुड़ी मूर्तियां आज भी वैसी की वैसी हैं, जीवंत और बेहद बारीक. सबसे खास बात यह है कि मंदिर के आधार पर बने 12 विशाल पहिए, जो असल में सन डायल यानी धूपघड़ी हैं. हर पहिया दिन के अलग-अलग समय को दिखाता है.

गुजरात के पाटन में स्थित रानी की वाव, कोई आम बावड़ी नहीं है. ये एक मंदिर जैसी बावड़ी है, जिसे 11वीं सदी में रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव की याद में बनवाया था. करीब 24 मीटर गहरी इस बावड़ी में सात स्तर हैं. जैसे-जैसे आप नीचे उतरते हैं, लगता है जैसे किसी मंदिर की आत्मा में प्रवेश कर रहे हों.,इस बावड़ी की दीवारों और खंभों पर की गई नक्काशी देखने लायक है. यहां अप्सराओं, योगिनियों और भगवान विष्णु के दस रूपों की सुंदर मूर्तियां बनी हैं. सबसे नीचे एक खास मूर्ति है भगवान विष्णु की, जो हजार नागों के फन पर लेटे हैं और पानी के पास ध्यान में बैठे दिखते हैं. रानी की वाव सिर्फ पानी जमा करने की जगह नहीं, बल्कि यह भक्ति, कला और विज्ञान का सुंदर मेल है. इसी कारण इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है.

कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल एक ऐसा स्मारक है जो गुलामी की याद भी दिलाता है और ब्रिटिश दौर की भव्य कला भी दिखाता है. इसकी कल्पना लॉर्ड कर्जन ने 1901 में महारानी विक्टोरिया की याद में की थी. इसका डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट विलियम एमर्सन ने तैयार किया और 1921 में यह बनकर तैयार हुआ. सफेद संगमरमर की ये इमारत एक महल जैसी लगती है. अंदर गैलरी, पेंटिंग्स और हथियार हैं. सबसे खास है इसकी छत पर लगी कांसे की विक्ट्री प्रतिमा, जो हवा के साथ घूमती है. यह स्मारक इतिहास, कला और सत्ता की कहानी एक साथ सुनाता है.

यह भी पढ़ें: 15 अगस्त के लॉन्ग वीकेंड पर हाउसफुल हुए हॉलिडे स्पॉट, भीड़ से दूर घूमने के लिए बेस्ट हैं ये डेस्टिनेशन