जब-जब भारत के खेल इतिहास का जिक्र होता है, सबसे पहले नाम आता है मेजर ध्यानचंद का. वो खिलाड़ी जिसने अपनी हॉकी स्टिक से गेंद को ऐसे साधा मानो जादू कर रहा हो. तीन ओलंपिक में लगातार स्वर्ण, 570 गोलों का अद्भुत रिकॉर्ड, दुनिया का सम्मान… लेकिन अफसोस! जिस शख्स ने भारत का नाम वैश्विक खेल नक्शे पर चमकाया, वही आज तक अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से वंचित है.
उनके नाम पर देश का सबसे बड़ा खेल पुरस्कार है, उनका जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है, स्टेडियम उनके नाम से जाने जाते हैं… लेकिन सवाल अब भी वही है, हॉकी के इस जादूगर को भारत रत्न देने में इतनी देर क्यों?
आंदोलन, अपीलें और अनदेखी
हॉकी इंडिया के अध्यक्ष और तीन बार के ओलंपियन दिलीप टिर्की ने 2016 में जंतर-मंतर पर आंदोलन किया, संसद में आवाज उठाई, सैकड़ों सांसदों ने समर्थन किया, सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने भी अपनी कला से गुहार लगाई, लेकिन सब बेकार गया.
दिलीप टिर्की की पीड़ा साफ है , 'जब देश का सबसे बड़ा खेल पुरस्कार उनके नाम पर हो सकता है, नेशनल स्टेडियम उनका नाम धारण कर सकता है, तो फिर भारत रत्न क्यों नहीं?'
A legacy that continues to inspire. 🇮🇳
— Olympic Khel (@OlympicKhel) August 29, 2025
Remembering Major Dhyan Chand, the wizard who made the sport his own. 🏑✨#NSD2025 pic.twitter.com/Idy7sUm5fG
स्वर्णिम इतिहास, भूला हुआ योगदान
ध्यानचंद ने लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजिलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को स्वर्ण पदक दिलाकर पहली बार भारत का नाम विश्व खेलों के नक्शे पर चमकाया. 185 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 570 गोल का रिकॉर्ड आज भी उनके नाम है. वे सिर्फ खिलाड़ी नहीं थे, बल्कि हॉकी के जादूगर थे.
... परिवार की व्यथा
उनके बेटे और 1975 वर्ल्ड कप विजेता टीम के अहम सदस्य अशोक ध्यानचंद कहते हैं, 'पिताजी ने कभी प्रचार नहीं किया, यह उनकी सबसे बड़ी महानता थी. उनके निधन को 46 साल हो गए, लेकिन उनका नाम आज भी गूंजता है. यही असली विरासत है.'
लेकिन दिल दुखाता है जब वे बताते हैं कि हालात इतने कठिन थे कि परिवार ने गैस एजेंसी के लिए आवेदन करना चाहा, मगर ध्यानचंद ने दस्तखत करने से मना कर दिया. उनका कहना था, 'मैंने क्या किया, यह देखना सरकार का काम है. हम किसी से भीख नहीं मांगेंगे.'
सचिन को मिला, ध्यानचंद क्यों नहीं?
1956 में ध्यानचंद को पद्मभूषण से नवाजा गया था, लेकिन भारत रत्न बार-बार टलता रहा. 2013 में सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिला और वे अब तक इसे पाने वाले इकलौते खिलाड़ी हैं. सवाल उठता है- क्या ध्यानचंद का योगदान सचिन से कम था?
उम्मीद बनाम उदासी
पिछले 10 वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी , पंडित मदन मोहन मालवीय , प्रणब मुखर्जी , भूपेन हजारिका, नानाजी देशमुख, कर्पूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, पीवी नरसिंहराव, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिया गया. लेकिन ध्यानचंद का नाम हर बार फाइलों और सिफारिशों में दबकर रह गया.
आज सवाल सिर्फ यह नहीं है कि ध्यानचंद को भारत रत्न क्यों नहीं मिला, बल्कि यह भी है कि देश अपने असली नायकों को कब तक भूलता रहेगा? हॉकी का जादूगर जिसने भारत को ओलंपिक की ऊंचाइयों पर पहुंचाया, क्या वह भारत रत्न के हकदार नहीं? बरसों से जारी यह इंतजार अब भी अधूरा है… और शायद यही भारत खेल जगत की सबसे बड़ी विडंबना है.