भारतीय क्रिकेट में वर्कलोड मैनेजमेंट को लेकर चल रही चर्चा अब एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है. कोलकाता टेस्ट के दौरान शुभमन गिल की अचानक हुई गर्दन की चोट ने न सिर्फ टीम इंडिया की तैयारियों को झटका दिया, बल्कि इस पुराने सवाल को फिर से जीवित कर दिया- क्या भारत के ऑल-फॉर्मेट सितारों पर वाकई ज्यादा बोझ पड़ रहा है?
शुभमन गिल पिछले दो महीनों से लगातार क्रिकेट खेले जा रहे हैं. एशिया कप से लेकर घरेलू साउथ अफ्रीका सीरीज तक... वह टीम इंडिया के स्थायी सदस्य बने रहे. जहां कई खिलाड़ियों को रोटेशन का फायदा मिला, वहीं 25 साल के गिल को हर फॉर्मेट में खेलने के लिए मैदान में उतरना पड़ा. ODI के कप्तान और T20 के उपकप्तान के रूप में उन पर जिम्मेदारियों का दबाव पहले से ज्यादा है. इसी बीच, ईडन गार्डन्स टेस्ट के दौरान उन्हें गर्दन की जकड़न (नेक्स स्पैज्म)की समस्या हुई और वह सीरीज के निर्णायक दूसरे टेस्ट से बाहर हो गए.
यह चोट जैसे ही सामने आई, वर्कलोड मैनेजमेंट की बहस फिर से उभर आई. लेकिन टीम इंडिया के मुख्य कोच गौतम गंभीर के शब्दों ने इस बहस को बिल्कुल अलग दिशा दे दी.
जियोस्टार के क्रिकेट एक्सपर्ट आकाश चोपड़ा ने खुलासा किया कि गंभीर ने उनसे बातचीत में कहा, 'अगर वर्कलोड मैनेजमेंट चाहिए तो IPL छोड़ दो. अगर कप्तानी का दबाव ज्यादा है, तो मत करो कप्तानी. लेकिन इंडिया के लिए खेलते वक्त फिटनेस और मानसिक थकान जैसी बातें बहाने नहीं हो सकतीं.'
गंभीर का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय क्रिकेट में वर्कलोड मैनेजमेंट को धीरे-धीरे एक ‘नॉर्मल’ माना जाने लगा है. पिछले कुछ वर्षों में कई शीर्ष खिलाड़ियों को टेस्ट, ODI और T20 के बीच आराम देते देखा गया है.
लेकिन गंभीर का तर्क स्पष्ट है- भारत के लिए जब भी मौका मिले, खिलाड़ी को पूरी प्रतिबद्धता के साथ उतरना चाहिए. अगर किसी को आराम चाहिए, तो पहले IPL जैसे लीग टूर्नामेंट में अपनी भागीदारी पर विचार करना चाहिए.
आकाश चोपड़ा ने भी गंभीर की सोच का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि एक बल्लेबाज के लिए फॉर्म बेहद कीमती है. जब आप रन बना रहे होते हैं, तब आप ज्यादा से ज्यादा खेलना चाहते हैं. फॉर्म कब चला जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं होती. इसलिए जब तक फिटनेस की कोई ठोस समस्या न हो और मानसिक थकान न हो, खिलाड़ी को मैदान में ही रहना चाहिए.'
हालांकि गिल के मामले में अब चिंता यह है कि उन्हें कम से कम 10 दिन आराम की जरूरत है. BCCI ने अभी अंतिम फैसला नहीं बताया है, लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि वे 30 नवंबर से शुरू होने वाली साउथ अफ्रीका के खिलाफ ODI सीरीज तक फिट हो जाएंगे. इसके बाद T20I सीरीज भी खेली जानी है, जहां गिल की भूमिका और भी अहम होगी.
गिल की चोट ने एक बात तो साफ कर दी. भारतीय क्रिकेट को यह तय करना ही होगा कि वह किस मॉडल को अपनाएगा. IPL की आर्थिक और ब्रांड वैल्यू को प्राथमिकता देकर खिलाड़ियों से लगातार क्रिकेट खेले जाने की उम्मीद या गंभीर जैसे दृष्टिकोण के साथ राष्ट्रीय टीम को सबसे ऊपर रखकर वर्कलोड का कठोर मूल्यांकन?
यह बहस अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि गिल की चोट ने इसे और गहरा कर दिया है.