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संघर्ष से विश्व चैम्पियन बनने तक... BCCI के वो फैसले, जिन्होंने बदल दी महिला क्रिकेट की तकदीर

भारतीय महिला क्रिकेट का विश्व चैम्पियन बनना, दरअसल बीसीसीआई के 'देर से आए दुरुस्त आए' वाले संकल्प और हमारी बेटियों के 'कभी हार न मानने वाले' जज्बे का ऐसा जादुई संगम है, जिसने इतिहास को फिर से लिख दिया.

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2006 में बीसीसीआई के अधीन आने के बाद महिला क्रिकेट को बेहतर संसाधन और समान मैच फीस मिली. (Photo: AP)
2006 में बीसीसीआई के अधीन आने के बाद महिला क्रिकेट को बेहतर संसाधन और समान मैच फीस मिली. (Photo: AP)

"सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते..."

रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां भारतीय महिला क्रिकेट टीम पर फिट बैठती हैं. ये वो महिला टीम है जिसने वर्षों तक सीमित संसाधनों के बीच कठिनाई का सामना किया और वर्षों की उपेक्षा को चीरकर 2025 में नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में इतिहास रच दिया. 

कहानी सिर्फ एक ट्रॉफी जीतने की नहीं है बल्कि यह कहानी है उस लंबे इंतजार की, उस अनदेखे संघर्ष की, जिसे भारतीय महिला क्रिकेट ने जिया. चैम्पियन बनना यह उस युग का अंत है जहां प्रतिभा को संसाधनों की कमी से जूझना पड़ता था. नहीं तो एक दौर वो भी था जब क्रिकेट का मतलब सिर्फ पुरुषों का खेल होता था.

जब पूरे टूर्नामेंट के लिए हर खिलाड़ी को मिले सिर्फ 8000 रुपये
 
दरअसल, खेल को ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए केवल खिलाड़ी काफी नहीं होता है बल्कि एक मजबूत व्यवस्था की भी जरूरत होती है. 2006 से पहले तक महिला क्रिकेट का संचालन भारतीय महिला क्रिकेट संघ (WCAI) करती थी. संसाधन सीमित थे और सुविधाएं औसत से भी नीचे. समय बदला और महिला क्रिकेट की तकदीर भी. 2006 में जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने महिला क्रिकेट को अपने अधीन लिया, तभी असली बदलाव की कहानी शुरू हुई.

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कल्पना कीजिए उस दौर की, जिसका खुलासा खुद पूर्व कप्तान मिताली राज ने किया था.  'द लल्लनटॉप' के साथ एक इंटरव्यू में, उन्होंने अपने शुरुआती दिनों की उस सच्चाई को बयां किया जिसका सामना उन्हें करना पड़ा था. उन्होंने बताया कि 2005 में महिला वर्ल्ड कप का फाइनल था, तब टीम की हर खिलाड़ी को पूरे टूर्नामेंट के लिए सिर्फ 8 हजार रुपये मिले थे. यानी हर मैच के लिए महज 1000 रुपए.

मिताली ने बताया, 'हमारे पास तब कोई एनुअल कॉन्ट्रैक्ट नहीं था. बीसीसीआई में आने से पहले हमें न मैच फीस मिलती थी, न कोई आर्थिक सुरक्षा.' उन्होंने याद करते हुए कहा कि कैसे खिलाड़ी कभी सामान्य ट्रेन के डिब्बों में यात्रा करते थे और बुनियादी सुविधाओं के बिना खेलते थे.

BCCI के वो फैसले जो बने मील का पत्थर

भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अक्टूबर 2022 का महीना एक स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत लेकर आया, जब बीसीसीआई (BCCI) ने अपनी 15वीं शीर्ष परिषद की बैठक में एक ऐतिहासिक फैसला लिया कि अब पुरुष और महिला क्रिकेटरों को समान मैच फीस मिलेगी. 

यह सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं था बल्कि बराबरी के सपने को हकीकत में बदलने का साहसिक कदम था. इस नीति के बाद महिला क्रिकेटरों को टेस्ट मैच के लिए 15 लाख रुपये, वनडे के लिए 6 लाख रुपये और टी20 के लिए 3 लाख रुपये मिलने लगे, बिल्कुल उनके पुरुष समकक्षों के बराबर.

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विश्व कप जीत के बाद बोर्ड की ओर से 51 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि की घोषणा ने यह साबित कर दिया कि बीसीसीआई महिला क्रिकेट को भविष्य के लिए एक केंद्रीय स्तंभ मानता है. बीसीसीआई सचिव जय शाह ने जीत के बाद कहा कि टीम की सफलता में 'बढ़ते निवेश, पुरुष क्रिकेटरों के साथ वेतन समानता और WPL के स्पॉटलाइट में निखरे बड़े मैच के स्वभाव की महती भूमिका है.'

यह सिर्फ वेतन और लीग्स की बात नहीं थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, जय शाह के पांच साल के कार्यकाल में महिलाओं के क्रिकेट में निवेश कई गुना बढ़ा, जिसमें ग्रासरूट स्तर पर सुधार करना, अंडर-19 टूर्नामेंट्स, विशेष कोचिंग सुविधाएं और खिलाड़ियों के लिए बेहतर यात्रा व आवास व्यवस्थाएं शामिल रहीं.

जब भारत ने 2023 में पहला अंडर-19 महिला टी-20 वर्ल्ड कप जीता, तब शाह ने टीम और स्टाफ के लिए 5 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की जो यह महिलाओं के क्रिकेट में गंभीर निवेश और मान्यता का स्पष्ट संकेत था.

महिला प्रीमियर लीग (WPL) ने बदल दी तस्वीर

2023 में IPL की तर्ज पर महिला प्रीमियर लीग (WPL) भारतीय खिलाड़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. इस लीग ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय सितारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रतिस्पर्धा करने, आत्मविश्वास विकसित करने और दबाव को झेलने की कला सिखाई.
 
यह लीग घरेलू प्रतिभाओं के लिए एक ऐसी पाइपलाइन भी बनी, जिसने टीम इंडिया को विश्व कप में सिर्फ 11 नहीं, बल्कि 20-25 मजबूत खिलाड़ियों का एक पूल दिया. यह एक ऐसा पावरहाउस बन गया, जिसने विश्व चैम्पियन बनने के लिए जरूरी मानसिक मजबूती प्रदान की. उसकी झलक विश्व कप फाइनल में साफ दिखी.

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बीसीसीआई का अहम रोल

भारतीय महिला टीम की विश्व चैम्पियन बनने की कहानी में बीसीसीआई का रोल एक ऐसे मार्गदर्शक का रहा, जिसने संघर्ष के शुरुआती दिनों में आधार दिया, फिर नीतियों से सम्मान दिया, WPL से मंच दिया और अंत में वित्तीय मदद से विश्वास दिया. मिताली राज कहती हैं, 'आज की लड़कियों को देखकर अच्छा लगता है कि उन्हें वो सब मिल रहा है जो हमारे दौर में सिर्फ सपना था. हमने संघर्ष किया ताकि अगली पीढ़ी मुस्कुराकर खेल सके.'
 
बेटियों की यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी उठाने की नहीं, बल्कि उस लंबे संघर्ष और उम्मीदों की जीत है, जो कभी दिल्ली की लोकल ट्रेनों और पुराने हॉस्टलों में शुरू हुई थी. जहां कभी महिला खिलाड़ी अपने पैसों से किट खरीदती थीं, वहीं आज वो बिजनेस क्लास में सफर करती हैं. क्योंकि अब उनका खेल, उनका समय और उनकी मेहनत बराबरी के हकदार हैं.

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