भारत में हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर एक बड़ी समस्या बन चुका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)की नई रिपोर्ट 'ग्लोबल रिपोर्ट ऑन हाइपरटेंशन 2025' के मुताबिक, देश में 21 करोड़ से ज्यादा वयस्क (30 से 79 साल के) इस बीमारी से जूझ रहे हैं. यह देश की 30% से ज्यादा आबादी है.
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समस्या इसलिए खतरनाक है क्योंकि हाई बीपी दिल और दिमाग पर अतिरिक्त दबाव डालता है. अगर समय पर कंट्रोल न हो, तो हार्ट अटैक, स्ट्रोक, किडनी फेलियर, आंखों की समस्या या डिमेंशिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

2024 में वैश्विक स्तर पर 140 करोड़ लोग हाई बीपी से पीड़ित थे. यह दुनिया की 34% आबादी है. लेकिन चिंता की बात, हर 5 में से सिर्फ 1 व्यक्ति ही दवा या जीवनशैली बदलाव से इसे कंट्रोल कर पाता है.
WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस कहते हैं कि हर घंटे 1 000 से ज्यादा लोग हाई बीपी से जुड़ी दिल-दिमाग की बीमारियों से मर रहे हैं. ये मौतें रोकी जा सकती हैं. सही नीतियां, निवेश और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं लाखों जिंदगियां बचा सकती हैं.
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डॉ. टॉम फ्राइडन कहते हैं कि सस्ती और सुरक्षित दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन करोड़ों लोगों तक नहीं पहुंच पा रही. इस कमी को दूर करने से लाखों जानें बचेंगी. अरबों डॉलर की बचत होगी. अगर समय रहते कदम न उठाए, तो 2011-2025 के बीच गरीब-मध्यम आय वाले देशों को 3.7 ट्रिलियन डॉलर (जीडीपी का 2%) का नुकसान होगा.

कुछ देशों ने कमाल कर दिखाया...
भारत ने इस समस्या पर काबू पाने में सफलता पाई है. 2018-2019 से सरकारी क्लीनिकों में मुफ्त जेनेरिक दवाएं दी जा रही हैं. दवाओं की कीमत पर सीमा लगाई गई. निजी दुकानों से 80% सस्ती दवाएं सरकारी स्टोर्स पर मिलती हैं.
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