भारत में बुजुर्गों की सेवा सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, औलादों के लिए ये अवसर किसी आशीर्वाद से कम नहीं होता. यहां मां-बाप को भगवान का दर्जा दिया जाता है और उनका ख्याल रखना हमारी परंपरा में रचा-बसा है. लेकिन आज जब जिंदगी स्पीड मोड पर चल रही है. बच्चे बाहर पढ़ने-कमाने जा रहे हैं और वक्त लगातार हाथ से फिसल रहा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब सिर्फ भावनाएं काफी हैं या उनकी मदद के लिए हर वक्त कोई न कोई साथ में जरूर होना चाहिए? भले ही रोबोट बूढ़े हो चुके माता-पिता को औलाद या नाती-पोते जैसी केयर और भावनाएं नहीं दे सकते लेकिन मदद तो कर ही सकते हैं. शायद अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी बुजुर्गों की समस्याओं को सोच-समझकर E-BAR यानी Elderly Bodily Assistance Robot बनाया होगा. इसे एक 'स्मार्ट डिवाइस' कहना कम होगा, यह एक ऐसा सहारा है जो अकेले रह रहे बुजुर्गों के लिए असली गेमचेंजर बन सकता है.
E-BAR मशीन से ज्यादा एक भरोसेमंद साथी होने का दावा
MIT यानी मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के इंजीनियरों ने E-BAR को खासतौर पर बुजुर्गों की रोजमर्रा की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया है। सोचिए, एक ऐसा रोबोट जो न सिर्फ बिस्तर से उठने में मदद कर सकता है, बल्कि अगर गिरने वाले हों तो संभाल भी सकता है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि इसमें लगे एडवांस सेंसर, कैमरा और फॉल-प्रिवेंशन टेक्नोलॉजी इसे कुछ सेकंड्स में एक्टिव कर देती है. चाहे बाथरूम में फिसलने की नौबत हो या सीढ़ियों से उतरते वक्त बैलेंस बिगड़ जाए. ऐसे में E-BAR तुरंत रेस्क्यू मोड में आ जाता है. और हां, ये सिर्फ फिज़िकल हेल्प तक सीमित नहीं है. वॉकिंग, स्ट्रेचिंग जैसी हल्की एक्सरसाइज़ कराने से लेकर कुछ मॉडलों में वॉयस कमांड लेने तक यह रोबोट बुजुर्गों के साथ खड़ा नज़र आता है.
क्या इंडिया के लिए भी हो सकता है फायदेमंद
आंकड़ों को देखें तो भारत में 60+ उम्र की आबादी लगातार बढ़ रही है. 2021 में ये आंकड़ा 13.8 करोड़ था और 2030 तक ये आंकड़ा 19 करोड़ पार कर सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हमारे पास इतने केयरगिवर्स हैं? सच यह है कि बहुत से बुजुर्ग आज गांवों या कस्बों में अकेले रह जाते हैं क्योंकि उनके बच्चे या तो नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहरों में हैं या अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं. वो बुजुर्ग अगर शहरों में रहने भी जाते हैं तो वर्किंग कपल उन्हें पूरा टाइम नहीं दे सकते. ऐसे में E-BAR जैसा सहारा संस्कृति के खिलाफ न होकर उसी सेवा-भाव को टेक्नोलॉजी से सपोर्ट करने की एक कोशिश माना जा सकता है.
साइंटिस्ट दीपक शर्मा कहते हैं कि भविष्य में अगर इसे भारत में लोकलाइज किया जाए, जैसे हिंदी या रीजनल लैंग्वेज वॉयस कमांड, किफायती मॉडल्स और भारतीय घरों के हिसाब से डिजाइन तो यह हमारे लिए सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, एक सोशल इनोवेशन बन सकता है.
करना होगा लंबा इंतजार
बता दें कि MIT का रोबोट फिलहाल रिसर्च स्टेज में है और हाई-एंड टेक्नोलॉजी की वजह से सस्ता तो नहीं होगा. अभी इसे आम आदमी तक पहुंच बनाने में कई साल लग सकते हैं. साथ ही हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि बुजुर्गों को सिर्फ सहारा नहीं, सुनने वाला भी चाहिए. MIT फिलहाल इसी दिशा में काम कर रहा है कि कैसे रोबोट बुजुर्गों की भावनात्मक जरूरतों को भी समझ सके. मूड डिटेक्शन, बातचीत और अकेलेपन को कम करने वाले फंक्शन्स आगे जोड़े जा सकते हैं.