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ISRO ने दिखाया भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का मॉडल: 2028 में पहला मॉड्यूल, 2035 तक बनेगा पूरा स्टेशन

इसरो ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस 2025 पर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का मॉडल पेश किया. 2028 में पहला मॉड्यूल और 2035 तक पूरा स्टेशन बनेगा. BAS-01 का वजन 10 टन होगा. यह 450 किमी ऊपर होगा. यह स्वदेशी तकनीक, वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा देगा. भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल होगा, जो अंतरिक्ष स्टेशन चलाते हैं.

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ये है भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल का मॉडल. (Photo: ISRO)
ये है भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल का मॉडल. (Photo: ISRO)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 22 अगस्त 2025 को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के दो दिवसीय समारोह के दौरान भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के मॉडल को पहली बार दुनिया के सामने पेश किया. यह समारोह नई दिल्ली के भारत मंडपम में शुरू हुआ.

भारत का लक्ष्य है कि 2028 तक BAS-01 यानी पहला मॉड्यूल, अंतरिक्ष में स्थापित हो और 2035 तक पूरा अंतरिक्ष स्टेशन तैयार हो. यह भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करेगा, जो अपने अंतरिक्ष स्टेशन चलाते हैं.

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भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) भारत का स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन होगा, जो पृथ्वी से 450 किलोमीटर ऊपर लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित होगा. अभी दुनिया में सिर्फ दो अंतरिक्ष स्टेशन हैं..

  • अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS): इसे अमेरिका, रूस, यूरोप, जापान और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसियां मिलकर चलाती हैं.
  • तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन: यह चीन का है.

भारत का BAS इनसे अलग होगा, क्योंकि यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा. इसरो का लक्ष्य है कि 2035 तक BAS के पांच मॉड्यूल अंतरिक्ष में स्थापित हों, जो इसे एक पूर्ण अंतरिक्ष प्रयोगशाला बनाएंगे.

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BAS-01 मॉड्यूल: पहला कदम

BAS-01 भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉड्यूल होगा, जिसे 2028 में लॉन्च किया जाएगा. इसकी खासियतें हैं...

  • वजन: 10 टन
  • आकार: 3.8 मीटर चौड़ा और 8 मीटर लंबा
  • ऑर्बिट: पृथ्वी से 450 किमी ऊपर
  • स्वदेशी तकनीक: इसमें भारत डॉकिंग सिस्टम, भारत बर्थिंग मैकेनिज्म और स्वचालित हैच सिस्टम होगा.
  • पर्यावरण नियंत्रण और जीवन रक्षा प्रणाली (ECLSS): यह अंतरिक्ष यात्रियों को सांस लेने योग्य हवा, पानी और तापमान प्रदान करेगा.
  • व्यूपोर्ट्स: वैज्ञानिक तस्वीरें लेने और अंतरिक्ष यात्रियों के मनोरंजन के लिए खिड़कियां.
  • सुरक्षा: रेडिएशन, गर्मी और माइक्रो मेटियोरॉइड ऑर्बिटल डेब्रिस (MMOD) से बचाव.
  • अंतरिक्ष सूट और एयरलॉक: अंतरिक्ष में बाहर निकलने (EVA) के लिए उपकरण.
  • प्लग एंड प्ले एवियोनिक्स: आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम, जो आसानी से अपग्रेड हो सकते हैं.

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BAS का मकसद

BAS सिर्फ एक अंतरिक्ष स्टेशन नहीं होगा, बल्कि एक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र होगा. इसके मुख्य उद्देश्य हैं...

  • माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान: अंतरिक्ष में कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को समझना, जैसे मानव शरीर, दवाइयां और सामग्री पर इसका असर.
  • जीवन विज्ञान और चिकित्सा: अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के लिए जरूरी तकनीकों का परीक्षण, जैसे भोजन, पानी और ऑक्सीजन की आपूर्ति.
  • अंतरग्रहीय खोज: मंगल और चंद्रमा जैसे मिशनों के लिए तकनीक विकसित करना.
  • अंतरिक्ष पर्यटन: BAS का इस्तेमाल वाणिज्यिक अंतरिक्ष पर्यटन के लिए हो सकता है, जिससे भारत अंतरिक्ष व्यापार में हिस्सा लेगा.
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: BAS वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की भागीदारी बढ़ाएगा.
  • युवाओं को प्रेरणा: यह नई पीढ़ी को अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा.

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस का उत्सव

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23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के बाद भारत ने हर साल 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया. इस साल 22-23 अगस्त 2025 को भारत मंडपम में ये समारोह हो रहा है. इस दौरान BAS-01 का 3.8 मीटर x 8 मीटर का मॉडल मुख्य आकर्षण रहा. 

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भारत का अंतरिक्ष भविष्य

BAS भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम का हिस्सा है. इसके अलावा, भारत के पास कई और योजनाएं हैं..

  1. गगनयान मिशन: 2026 तक भारत अपने पहले मानव मिशन को अंतरिक्ष में भेजेगा.
  2. चंद्रयान-4: 2028 तक चंद्रमा से नमूने लाने का मिशन.
  3. शुक्रयान: 2025-26 में शुक्र ग्रह का अध्ययन करने वाला मिशन.
  4. अंतरिक्ष पर्यटन: BAS के जरिए भारत अंतरिक्ष पर्यटन के बाजार में उतरेगा, जिसका मूल्य 2030 तक 13 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है.

BAS के पहले मॉड्यूल को LVM-3 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा, जो भारत का सबसे ताकतवर रॉकेट है. इसके बाद चार और मॉड्यूल जोड़े जाएंगे, जो 2035 तक पूरे स्टेशन को तैयार करेंगे.

चुनौतियां और अवसर

  • चुनौतियां: BAS को बनाने में उच्च लागत (लगभग 20,000 करोड़ रुपये), तकनीकी जटिलता और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करना होगा. अंतरिक्ष में कचरा (स्पेस डेब्रिस) और रेडिएशन भी बड़ी चुनौती हैं.
  • अवसर: BAS भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में वैश्विक नेता बनाएगा. यह मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगा और निजी कंपनियों, जैसे HAL, BEL और Tata Advanced Systems को अंतरिक्ष क्षेत्र में लाएगा.
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