7 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो गया है, जो 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या तक चलेगा. पितृपक्ष में मृत पूर्वजों को याद किया जाता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करने की परंपरा है. शास्त्रों में तीन पीढ़ी तक श्राद्ध करने का नियम है. यानी किसी भी परिवार में पिता, दादा और परदादा तक का श्राद्ध करने का विधान है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करने के लिए सबसे अच्छा समय क्या होता है. आइए जानते हैं.
श्राद्ध का सही समय क्या है?
पितृपक्ष में सभी दिन कुतप वेला में श्राद्ध संपन्न करना उत्तम माना गया है. दिन का आठवां मुहूर्त कुतप काल कहलाता है और ये दोपहर के समय पड़ता है. सामान्य तौर पर कुतप वेला सुबह साढ़े 11 बजे से लेकर दोपहर साढ़े 12 बजे के बीच होती है. इसलिए आप अगर 12 बजे के आस-पास पितरों का श्राद्ध करेंगे तो ज्यादा उत्तम होगा. इस दौरान श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करना सबसे अच्छा माना जाता है.
कहते हैं कि कुतुप काल में श्राद्ध करना ज्यादा फलदायी और पुण्यकारी माना जाता है. यह पितरों के लिए दान-धर्म करने का सबसे श्रेष्ठ और शुभ समय माना जाता है. सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए. जबकि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण दोपहर के कुतुप काल में करना ही उत्तम होता है.
तर्पण और श्राद्ध क्यों है जरूरी?
श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से हम अपने दिवंगत पूर्वजों का सम्मान करते हैं. उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. यह उनके प्रति कृतज्ञता और आदर प्रकट करने का भी एक पवित्र तरीका है. मान्यता है कि जब हम श्राद्ध और तर्पण करते हैं तो पितरों की आत्मा को शांति और संतुष्टि मिलती है. इससे उनके आत्मा का कल्याण होता है.
मार्कंडेय पुराण के अनुसार, तर्पण और पिंडदान से संतुष्ट होकर पितृ अपने वंशजों को दीर्घायु, संतान, धनधान्य, सुख-संपन्नता और मरणोपरांत स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं. जो लोग अपने पितरों को नियमित विधिवत श्राद्ध करते हैं, उनका निश्चित ही कल्याण होता है. उनके जीवन में कभी कोई बाधा नहीं आती है.