इस साल 7 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा तिथि के साथ ही पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है. यह 15 दिन पूर्वजों को समर्पित माने जाते हैं. मान्यता है कि इस दौरान पितृ भूलोक पर निवास करते हैं और तर्पण-पिंडदान से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. ऐसा माना जाता है कि जिन पितरों को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है, वे प्रेतयोनि में भटकते रहते हैं.
इसीलिए पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है. खासकर बिहार के गया जी में फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से तीन पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन अकसर अकाल मृत्यु वाले पितरों का पिंडदान को लेकर सभी में कंफ्यूजन बन रहता है. ऐसे में आइए जानते है कि अकाल मृत्यु वालें पितरों का श्राद्ध कैसे किया जाता?
कौन होते हैं अकाल मृत्यु पितृ?
अकाल मृत्यु पितृ वे लोग होते हैं जिनकी मृत्यु उम्र से पहले ही किसी दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, आग से जलकर, जहर खाकर या किसी अन्य कारण से हो जाती है. गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसे पितृ कष्ट झेलते हैं और उनके परिवार को दुख क्लेश का सामना करना पड़ता है.
कहां करें अकाल मृत्यु वाले पितरों का पिंडदान?
धार्मिक मान्यता है कि अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध और पिंडदान गया जी स्थित प्रेतशिला पर्वत पर किया जाता है. यह प्रेतशिला पर्वत पितृ तर्पण और पिंडदान के लिए पवित्र स्थल है, जहाँ पिंड चढ़ाने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. यहां अकाल मृत्यु वाले पितरों का सत्तू से पिंडदान करने की परंपरा है. यहां पर सूर्यास्त के बाद कोई श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है और न ही संध्याकाल के बाद रुकने की अनुमति होती है. इस पर्वत पर संध्याकाल के बाद ठहरने की सख्त मनाही है. इसके लिए सूर्यास्त के बाद पिंडदान और श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है.
आज होगा अकाल मृत्यु पितरों का श्राद्ध
धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. इसे घायल चतुर्दशी
के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन प्रेतशिला वेदी पर विधि-विधान से पिंडदान करना फलदायी माना गया है.