Chandra Grahan 2025: 7 सितंबर यानी आज साल का आखिरी चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. चंद्र ग्रहण जब भी लगता है तो उसे वैज्ञानिक नजरिए से बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि लोग तरह-तरह की मान्यताओं और अंधविश्वासों को ग्रहण के साथ जोड़ देते हैं. हिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं, लोग मानते हैं कि इसके नकारात्मक असर से बचने के लिए कुछ खास उपाय जरूरी होते हैं लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि चंद्र ग्रहण का जिक्र सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि इस्लाम धर्म में भी मिलता है.
इस्लामिक मामलों के जानकार स्कॉलर एडवोकेट मुफ्ती उसामा नदवी ने Aajtak.in को बताया कि, 'इस्लाम धर्म में चंद्र ग्रहण को चांद ग्रहण के नाम से जाना जाता है. ग्रहण का संबंध किसी शकुन-अपशकुन से नहीं है. बल्कि, ये समय अल्लाह से दुआ करने का होता है ताकी जल्द से जल्द चांद या सूरज पर से ग्रहण हट जाए. इसको लेकर नबी-ए-पाक यानी मोहम्मद साहब ने कई हिदायतें भी दी हैं, जिसमें इन बातों का जिक्र किया गया है कि ग्रहण के दौरान मुसलमानों को क्या करना चाहिए और कौन सी नमाज पढ़नी चाहिए.'
ग्रहण के बारे में क्या कहता है इस्लाम धर्म?
स्कॉलर मुफ्ती उसामा नदवी ने कहा कि इस्लाम से पहले अरब के लोगों का मानना था कि सूरज या चांद का ग्रहण किसी बड़े आदमी की मौत या किसी की पैदाइश की वजह से होता है. लेकिन, मोहम्मद साहब ने इस गलत सोच को हमेशा के लिए मिटा दिया था. उन्होंने लोगों को बताया था कि सूरज और चांद ग्रहण अल्लाह की दो निशानियां हैं. इनका ग्रहण ने किसी की मौत से होता है और न किसी की पैदाइश से. यानी इस्लाम धर्म ये बताता है कि ग्रहण अल्लाह की कुदरत की निशानी है और इसे इंसानी हादसों या अंधविश्वासों से जोड़ना गलत है.
क्या होती है नमाज-ए-ग्रहण?
स्कॉलर मुफ्ती उसामा के अनुसार, 'मोहम्मद साहब ने यह भी सिखाया था कि जब ग्रहण हो तो मुसलमानों को डरने की जरूरत नहीं, बल्कि इस दौरान अल्लाह की तरफ रुख करना चाहिए. इसके लिए एक खास नमाज पढ़ी जाती है.
जब सूरज ग्रहण लगता है तो उस वक्त एक विशेष नमाज सलात-अल-कुसूफ पढ़ी जाती है. वहीं, चांद ग्रहण के वक्त की नमाज को सलात-अल-खुसूफ कहा जाता है. मोहम्मद साहब ने फरमाया था कि जब तुम सूरज या चांद का ग्रहण देखो तो नमाज पढ़ो और अल्लाह से दुआ करो कि जब तक कि ग्रहण खत्म न हो जाए.
सलात-अल-कुसूफ या कहें सलात-अल-खुसूफ, ये दोनों दो रकाअत नमाज होती हैं. इनको आम नमाज से एकदम अलग तरीके तरीके से पढ़ा जाता है, हर रकाअत में दो रुकू और दो सजदे होते हैं. इस नमाज में लंबी किरात, लंबा रुकू और लंबा सजदा किया जाता है ताकि लोग अल्लाह के सामने ज्यादा देर तक झुकें और दुआ करें.
नमाज-ए-ग्रहण में करें दुआ
स्कॉलर मुफ्ती उसामा बताते हैं कि, 'ग्रहण का वक़्त सिर्फ नमाज पढ़ने तक ही सीमित नहीं है. बल्कि, लोगों को इस समय अल्लाह को ज्यादा से ज्यादा याद करना चाहिए. तौबा और इस्तगफ़ार (इस्लाम में अल्लाह से माफी मांगना) करना चाहिए. जरूरतमंदों की मदद के लिए सदका-खैरात करना चाहिए. यह सब इंसान को अल्लाह की कुदरत का एहसास दिलाता है और उसके ईमान को ओर मजबूत बनाता है.
इस्लाम धर्म में ग्रहण से जुड़ा ज्ञान
स्कॉलर मुफ्ती उसामा के अनुसार, 'असल में सूरज और चांद का ग्रहण इंसान के लिए एक बड़ी सीख है. जब इतनी विशाल और ताकतवर दुनिया अल्लाह के हुक्म से बदल सकती हैं तो यह इस बात का सबूत है कि मालिक एक ही है, वही हर चीज पर काबू भी रखता है. अल्लाह की तालीमात (शिक्षा) हमें याद दिलाती हैं कि ग्रहण कोई डरने या अंधविश्वास पालने की घटना नहीं है, बल्कि यह अल्लाह की महानता का पैगाम है.'