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12 साल तक हुआ था यज्ञ, बलराम ने मिलाया था सभी तीर्थों का जल... पितरों को मोक्ष दिलाता है यूपी का ये तीर्थ

नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश में स्थित एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल है, जो अपनी पौराणिक कथाओं और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है. यह स्थान 88,000 ऋषियों की तपस्या स्थली माना जाता है और यहां का चक्रतीर्थ विशेष रूप से प्रसिद्ध है, वाराह पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में नैमिषारण्य का उल्लेख मिलता है.

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नैमिषारण्य तीर्थ का महत्व अलग-अलग पुराणों में बताया गया है
नैमिषारण्य तीर्थ का महत्व अलग-अलग पुराणों में बताया गया है

श्राद्ध पक्ष अब अपनी समाप्ति की ओर है. इसके बाद दुर्गा पूजा का उत्सव प्रारंभ होने वाला है. पुराणों में गंगा, गयाजी और चारधाम को मनुष्यों के पापनाशक, मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला बताया गया है. लेकिन पुराणों में गोमती नदी को भी गंगा के समान ही पवित्र बताया गया है. इसी के किनारे स्थित है, नैमिषारण्य तीर्थ. यहां भी पितरों के लिए विशेष कर्म किए जाते हैं और उन्हें मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है. ऐसा माना जाता है.


नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश के लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर दूर, सीतापुर जिले में गोमती नदी के बाएँ तट पर बसा एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है. यह स्थान अपनी पौराणिक और धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है. मार्कण्डेय पुराण में इसे 88,000 ऋषियों की तपस्या स्थली के रूप में बार-बार उल्लेखित किया गया है. वायु पुराण के माघ माहात्म्य और बृहद्धर्म पुराण के अनुसार, इस स्थान के किसी गुप्त क्षेत्र में आज भी ऋषि स्वाध्याय और तपस्या में लीन हैं. यहाँ लोमहर्षण के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने ऋषियों को पौराणिक कथाएँ सुनाई थीं, जिससे इस स्थान का महत्व और बढ़ गया.

नैमिषारण्य का नाम 'निमिष' शब्द से निकला है. वाराह पुराण के अनुसार, यहाँ भगवान ने एक पल (निमिष) में दानवों का संहार किया था, इसलिए इसे नैमिषारण्य कहा गया. वायु और कूर्म पुराणों में बताया गया है कि भगवान विष्णु के चक्र की नेमि (बाहरी किनारा) यहीं टूटी और गिरी थी, जिसके कारण इस स्थान का नाम नैमिषारण्य पड़ा. एक श्लोक में कहा गया है:

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प्रययुस्तस्य चक्रस्य यत्र नेमिर्व्यशीर्यत.  
तद् वनं तेन विख्यातं नैमिषं मुनिपूजितम्॥

इसके अलावा, एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान गौरमुख (विष्णुजी का एक नाम) ने एक निमिष (समय की एक छोटी मात्रा, सेकेंड से भी कम, जितनी देर में पलक झपकती है उसे एक निमिष कहते हैं) में असुरों की सेना का नाश किया था. हालांकि यहां नीम के पेड़ अधिक पाए जाते हैं, और नीम के फल निंबोरी को भी निमिष कहते हैं. इस क्षेत्र में निमिष फल बहुतायत में पाए जाते थे, जिससे इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा. नीम के पेड़ के जंगल के कारण भी इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा. 

51 पितृतीर्थ में से एक है नैमिषारण्य
चक्रतीर्थ नैमिषारण्य का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ है. यह एक षट्कोणीय सरोवर है, जिसका व्यास 120 फुट है. इस सरोवर का जल नीचे के स्रोतों से आता है और यह 'गोदावरी नदी तक जाता है. गोमती नदी में भी इस सरोवर से जल जाता है. पुराणों में उल्लेख है कि एक बार 88,000 ऋषियों ने ब्रह्माजी से विश्व में सबसे पवित्र और शांत तपोभूमि का पता पूछा. तब ब्रह्मा ने अपने मन से चक्र उत्पन्न किया और कहा, "इसके पीछे चलो. जहां इसकी नेमि गिरे, वही सबसे पवित्र भूमि होगी." ऋषियों ने ऐसा ही किया, और गोमती नदी के किनारे इस तपोवन में चक्र की नेमि गिरी. यही स्थान चक्रतीर्थ कहलाया. यह तीर्थ गोमती नदी के बाएं तट पर है और इसे 51 पितृस्थानों में से एक माना जाता है. यहां हर साल सोमवती अमावस्या पर बड़ा मेला लगता है.

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वाल्मीकि रामायण में भी है उल्लेख
नैमिषारण्य का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है. युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में लिखा है कि लव और कुश ने गोमती नदी के तट पर राम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान सात दिनों तक वाल्मीकि रचित रामायण का गायन किया था. इसके अलावा, महर्षि शौनक को लंबे समय तक ज्ञान सत्र आयोजित करने की इच्छा थी. ब्रह्मा ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें एक चक्र दिया और कहा कि जहाँ इसकी नेमि गिरे, वहाँ आश्रम बनाकर ज्ञान सत्र करें. शौनक और सहस्रों ऋषियों ने चक्र के पीछे चलकर नैमिषारण्य पहुँचे, जहाँ चक्र भूमि में समा गया. यही स्थान चक्रतीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुआ.

द्वापर युग में भगवान बलराम भी यहां आए थे. एक भूल के कारण उनके हाथों लोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गई. बलराम ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता बनेंगे. उन्होंने राक्षस बल्वल का वध भी किया और भारत के तीर्थों की यात्रा के बाद यहाँ यज्ञ किया. शौनक को यहीं सूतजी ने अठारह पुराणों की कथाएँ सुनाई थीं.

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