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Exclusive: कोई मूक तो कोई बधिर बनकर कर रहा नौकरी... राजस्थान में फर्जी दिव्यांग शिक्षक भर्ती का चौंकाने वाला खुलासा

राजस्थान में गहलोत सरकार में पेपरलीक से नौकरी चोरी के खुलासों के बाद अब दिव्यांग कोटे के दो फीसदी आरक्षण से नौकरी चोरी का सच सामने आ रहा है. अभी सरकार नें पांच सालों में दिव्यांग कोटे में नौकरी पर लगे लोगों की जांच शुरू की तो अबतक की जांच में सामने आया है कि 90 फीसदी फर्जी मूक बधिर और दृष्टिबाधित दिव्यांग कोटे से नौकरी पाकर काम कर रहे हैं.

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राजस्थान में फर्जी दिव्यांग शिक्षक भर्ती का खुलासा हुआ है (Photo- ITG)
राजस्थान में फर्जी दिव्यांग शिक्षक भर्ती का खुलासा हुआ है (Photo- ITG)

एक फिल्म आई थी वेलकम, जिसमें नाना पाटेकर ने नकली दिव्यांग कैरेक्टर को अपने साथ रखा था. वह हर बात पर कहता था, 'मेरी एक टांग नकली है, मैं हॉकी का अच्छा प्लेयर था...' फिर वो लंबी कहानी सुनाता था. लेकिन असल में वो नकली दिव्यांग था. ऐसा ही कुछ राजस्थान में भी सामने आया है, जहां नकली दिव्यांग नौकरी चोर बनकर आए हैं.

दरअसल, राजस्थान में गहलोत सरकार में पेपरलीक से नौकरी चोरी के खुलासों के बाद अब दिव्यांग कोटे के दो फीसदी आरक्षण से नौकरी चोरी का सच सामने आ रहा है. अभी सरकार नें पांच सालों में दिव्यांग कोटे में नौकरी पर लगे लोगों की जांच शुरू की तो अबतक की जांच में सामने आया है कि 90 फीसदी फर्जी मूक बधिर और दृष्टिबाधित दिव्यांग कोटे से नौकरी पाकर काम कर रहे हैं. यानी जो पूरी तरह देख सकते हैं, सुन सकते हैं, बोल सकते हैं. वो फर्जी दिव्यांग बनकर नौकरी चुराए बैठे हैं.

ऐसा ही एक केस जैसलमेर के राजकीय प्राथमिक विधालय मोहनगढ़ में दिखा. यहां बच्चों को EAR ईयर मतलब कान का अंग्रेजी वर्ड पढ़ा रहीं दामिनी कंवर कागजों में पूरी तरह से बधिर हैं. यानी इन्हें कुछ सुनाई नहीं देता है. 2022 में रीट परीक्षा से टीचर बनीं मोहिनी से आजतक की टीम ने बात करनी शुरू की तो बहुत अच्छे से सब कुछ बता रही थीं. पर जैसे ही उनसे सवाल किया कि आप किस कोटे से नौकरी पाई हैं? तो उन्होंने कहा कि वो तो याद नहीं और तुंरत उनका हाथ कान पर गया. उन्होंने कहा कि बस हो गया अब आगे नहीं.

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भरतपुर में भी सामने आया ऐसा मामला

वहीं भरतपुर के सरकारी कॉलेज बयाना में नैरेशन पढ़ा रहे अंग्रेज़ी के लेक्चरर सवाई सिंह गुर्जर तो प्रमाण पत्र में मूक और बधिर दोनों है. पकड़े गए तो कान पर मशीन लगाकर पढ़ाने लगे और कहने लगे कि गलत प्रमाण पत्र बन गया है. मैं बधिर हूं. उधर, इनके प्रमाणपत्र के फर्ज़ी पाए जाने पर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने जयपुर बुलाकर सवाईमान सिंह अस्पताल में मेडिकल बोर्ड से जांच करवाई तो ये सुनने लायक निकले और नौकरी के अयोग्य निकले. इसके बाद वह दावा करने लगे कि वो तो गलती से मूक-बधिर दोनों हो गया था.

सीएम ऑफिस में काम करने वाले का भी खुला राज

ऐसा ही एक और मामला सामने आया. 2018 लिपिक परीक्षा में दिव्यांग कोटे से क्लर्क बना जोधपुर का अशोक सीधे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दफ़्तर में नौकरी पर लगा और 2020 में मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रमोशन भी पा गया. लेकिन सत्ता बदली और पता चला कि ये बधिर का प्रमाण लगा कर नौकरी पाया है तो इसे जांच के लिए एसएमएस अस्पताल भेजा गया, जहां उसने खुद ना जाकर जोधपुर के ही सही में मूक बधिर अशोक को भेज दिया. मेडिकल बोर्ड ने फोटो से पकड़ लिया तो अस्पताल के बाहर खड़ा अशोक भाग गया और ये मूक बधिर बेचारा जेल चला गया है.

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जांच में 90 फीसदी लोगों के सर्टिफिकेट जाली

बता दें कि राजस्थान में सभी नौकरियों में दो फीसदी आरक्षण दिव्यांगों को मिलता है, जिसमें ये दिव्यांगता के जाली प्रमाणपत्र बना कर नौकरियों पर लगे हैं. एसओजी ने अबतक 66 दिव्यांग कोटे से नौकरी पाए लोगों को जांच के लिए बुलाया जिसमें से केवल 43 आए और 23 भाग गए. 43 में से 37 जाली दिव्यांग निकले. केवल 6 सही निकले. सरकार के दूसरे विभागों की हुई आठ जांचों में सभी फर्जी निकले हैं जो नौकरी छोड़कर भाग गए. अब तक की जांच के ट्रेंड के अनुसार 90 फ़ीसदी सही सलामत लोग मूक-बधिर और अंधापन का जाली सर्टिफिकेट बनाकर नौकरी कर रहे है.

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