राजस्थान सरकार की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) के तहत मरीजों की सेहत के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है. अलवर जिले से आई ताजा रिपोर्ट न सिर्फ हैरान करने वाली है, मरीजों के भरोसा भी तोड़ने वाली है.
आरोप है कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने सामान्य सर्दी-जुकाम, सिर दर्द या हल्की बुखार जैसी शिकायत लेकर आए मरीजों की पर्ची पर कैंसर, किडनी फेल्योर और हार्ट डिजीज जैसी गंभीर बीमारियों की महंगी दवाइयां लिखीं. वहीं गर्भवती महिलाओं को बांझपन दूर करने वाली दवाइयां देने तक की बात सामने आई है. पूरे मामले में सरकारी डॉक्टरों, मेडिकल स्टोर संचालकों और लैब मालिकों के बीच कमीशन के खेल का गहरा गठजोड़ होने के प्रमाण मिले हैं.
डॉक्टरों को नोटिस, अस्पतालों में हड़कंप
स्वास्थ्य विभाग की जांच में इस गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद अलवर जिले के 11 डॉक्टरों और कई मेडिकल स्टोर संचालकों को नोटिस थमाए गए हैं. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि राजगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के सभी डॉक्टरों पर कार्रवाई की जा रही है. इन्हीं में एक डॉक्टर ने सामान्य, स्वस्थ महिलाओं की पर्ची पर बांझपन की दवा लिख दी, जबकि हल्के बुखार वाले मरीज की पर्ची पर कैंसर और हार्ट संबंधी दवाएं दी गईं. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. योगेंद्र शर्मा ने जानकारी दी कि RGHS योजना में लंबे समय से गड़बड़ियों की शिकायतें आ रही थीं, जिसके बाद सघन जांच अभियान चलाया गया. शुरुआती रिपोर्ट में ही कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ चुके हैं.
कुछ डॉक्टरों ने मरीज देखे बिना ही पर्चियां बना दीं
जांच में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि कई डॉक्टरों ने मरीज को देखे बिना ही दवा पर्चियां बना दीं. यहां तक कि कुछ मामलों में मरीजों को जानकारी दिए बिना ही उनके नाम से दवा खरीदी गई और रिकॉर्ड में चढ़ा दी गई. इस खेल में फर्जी पर्चियां, डॉक्टरों की नकली मोहर, और मेडिकल स्टोर संचालकों की मिलीभगत के ठोस प्रमाण सामने आए हैं. शिवाजी पार्क प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पहाड़गंज पीएचसी और राजगढ़ अस्पताल जैसे कई सरकारी अस्पताल इस संदिग्ध नेटवर्क में शामिल पाए गए हैं.
AI सिस्टम ने खोली पोल, जयपुर तक फैला जाल
इस घोटाले की शुरुआत एआई तकनीक से की गई डेटा एनालिसिस के बाद हुई थी. खैरथल के बीबीरानी ब्लॉक में एक महिला डॉक्टर की संदिग्ध पर्चियों को सिस्टम ने फ्लैग किया था. इसके बाद जयपुर, गंगानगर और अब अलवर में यह मामला बड़े पैमाने पर उजागर हो चुका है.
डॉक्टरों की सैलरी से होगी वसूली, होगी सख्त कार्रवाई
डॉ. योगेंद्र शर्मा ने बताया कि दोषी पाए गए डॉक्टरों से सरकारी राजस्व की वसूली उनकी सैलरी से की जाएगी. साथ ही निर्देश जारी किए गए हैं कि सभी चिकित्सक अस्पताल में उपलब्ध जेनेरिक दवाइयां ही लिखें और मरीजों को बिना जरूरत जांचों से दूर रखा जाए. स्वास्थ्य विभाग ने यह भी तय किया है कि अब हर सरकारी अस्पताल की पर्चियों और दवाओं की निगरानी नियमित रूप से की जाएगी. मेडिकल स्टोरों की रजिस्टर और बिलिंग प्रक्रिया की जांच के लिए ड्रग विभाग को भी सक्रिय कर दिया गया है.
बड़े पैमाने पर कार्रवाई की तैयारी
राज्य सरकार के स्वास्थ्य मुख्यालय से निर्देश के बाद पूरे मामले की जांच अलग-अलग स्तर पर चल रही है. ड्रग विभाग दवाओं की दुकानों की निगरानी कर रहा है, तो वहीं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टरों से पूछताछ कर उनके बयान रिकॉर्ड कर रहे हैं. जांच रिपोर्ट को जल्द ही स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों को सौंपा जाएगा और फर्जीवाड़े में संलिप्त पाए जाने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. जरूरत पड़ने पर एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा रहा है.
कमीशन के लिए चल रहा 'नकली इलाज' का गोरखधंधा
रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरा खेल एक सुव्यवस्थित कमीशन मॉडल पर आधारित है. डॉक्टरों द्वारा मरीजों को गैर-जरूरी जांच लिखी जाती थी, जिन्हें वे खुद ही चुनिंदा निजी लैब में करवाने के लिए कहते थे. लैब से उन्हें जांच का कमीशन मिलता था. इसी तरह, अस्पताल की सूची में मौजूद जेनेरिक दवाओं की बजाय मरीजों को बाहरी मेडिकल स्टोर से खरीदने वाली ब्रांडेड और महंगी दवाइयां लिखी जाती थीं. मेडिकल स्टोर संचालकों से भी डॉक्टरों को कमीशन मिलता था. इसका खामियाजा गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों को उठाना पड़ा, जो सरकारी इलाज की आस में अस्पताल आया करते थे.