सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित वक्फ कानून पर बहस के दौरान वक्फ बाय यूजर शब्द को हटाने को लेकर अपनी चिंता जताई है. CJI संजीव खन्ना कहते हैं कि कई ऐसी मस्जिदें हैं जो 14वीं-15वीं शताब्दी में बनी हुई हैं, ऐसे में वो दस्तावेज कहां से दिखाएंगे क्योंकि अंग्रेजी राज से पहले रजिस्ट्रेशन की कोई प्रक्रिया ही नहीं थी. उनके इस तर्क पर मुस्लिम पक्ष में जहां खुशी की लहर है वहीं हिंदुओं की दुखती रग पर कोर्ट ने हाथ रख दिया है. जाहिर है कि हिंदू पक्ष को लग रहा है कि जब मंदिरों की बात आती है तो यही कोर्ट उनसे कागजात मांगता है. और आज इसी कोर्ट में जब वक्फ की बात हो रही है तो उसे यह लग रहा है कि उस दौरान के दस्तावेज कहां मिलेंगे?
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वक्फ बाय यूजर शब्द को हटाने से कुछ संपत्तियों पर से वक्फ बोर्ड को हाथ धोना पड़ सकता है, पर इस शब्द के दुरुपयोग के चलते ही तो यह कानून आया है. याद करिए देश में पिछले कुछ सालों में किस तरह अंधाधुंध वक्फ बोर्ड ने कब्जे किए है. कुछ समय पहले कर्नाटक में किसानों की 15 सौ एकड़ जमीन और केरल में छह सौ ईसाइयों की संपत्ति पर वक्फ बोर्डों के दावे को खारिज करने और पीड़ितों के हितों की रक्षा करने का आश्वासन देने के लिए वहां के मुख्यमंत्रियों को आगे आने पड़ा था. इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें नहीं हैं. जाहिर है कि वक्फ बाय यूजर शब्द ने सरकारों को मुश्किल में तो डाल ही दिया है. सवाल और भी हैं जिसका जवाब जनता जानना चाहती है. आइये देखते हैं...
1-क्या हिंदुओं और मुस्लिमों से जुड़े कानूनों को लेकर अदालत की संवेदनशीलता अलग अलग है
गुरुवार 17 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले विष्णु शंकर जैन ने मीडिया के समक्ष सवाल उठाया कि आख़िर AIMIM, अमानतुल्लाह ख़ान, जमीयत और कई विपक्षी राजनीतिक दलों की याचिकाएं सीधे सुप्रीम कोर्ट में कैसे स्वीकार कर ली जाती हैं, जबकि हिन्दुओं को अयोध्या से लेकर काशी-मथुरा तक के लिए जिले की कचहरी से होकर गुजरना पड़ता है और सदियों लग जाते हैं. जाहिर है कि जैन की बात में दम है.
अब वक्फ बोर्ड मामले को ही देखिए कि तक इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लगातार दो दिन सुनवाई की है. काशी में ज्ञानवापी के सर्वे में भी निकला कि ये हिन्दू मंदिर है, मस्जिद की दीवारों पर, ऐतिहासिक किताबों पर तमाम साक्ष्य होने के बाद आज तक कोई स्टे नहीं आया. मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और मध्य प्रदेश स्थित भोजशाला मंदिर को लेकर भी कभी स्टे नहीं आया.
विष्णु शंकर जैन ने पूछा कि आखिर क्या कारण है कि एक पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाता है तो तुरंत उसकी याचिका स्वीकार कर ली जाती है और अंतरिम राहत देने की बात भी की जाती है, जबकि दूसरे पक्ष के लिए ये क़ानून लागू नहीं होता. अधिवक्ता ने कहा कि पिछले 13 वर्षों से 4 राज्यों में एंडोमेंट एक्ट के जरिए मंदिरों पर कब्ज़ा किए जाने के विरुद्ध सुनवाई चल रही है, हाल ही में फ़ैसला भी आया है जिसमें सारे मुद्दों को हाईकोर्ट में भेज दिया गया है. विष्णु शंकर जैन ने कहा कि ये सारे सवाल इस मामले में क्यों नहीं किए जा रहे हैं?
2-वक्फ बाय यूजर है तो मंदिर या गुरुद्वारा बाय यूजर क्यों नहीं
वक्फ संपत्ति को लेकर जिस तरह की चिंता की जा रही है क्या उस तरह की चिंता कभी राम मंदिर के लिए की गई. वक़्फ़ संपत्ति के लिए डॉक्युमेंट्स को लेकर जो तर्क दिए जा रहे हैं क्या वहीं बातें राम जन्मभूमि के लिए की गई थीं? विष्णु शंकर जैन आज तक के एक कार्यक्रम में सवाल पूछते हैं कि अगर ‘वक़्फ़ बाय यूजर’ नामक कोई प्रावधान हो सकता है, फिर ‘मंदिर बाय यूजर’ और ‘गुरुद्वारा बाय यूजर’ जैसा कोई प्रावधान क्यों नहीं हो सकता?
जैन कहते हैं कि यह संविधान के आर्टिकल 14 और 301 का उल्लंघन है. राम जन्मभूमि और ज्ञानवापी विवाद में कोई डाक्युमेंट नहीं था क्या वक्फ बाय यूजर का यहां आया, बेंगलोर के ईदगाह मैदान के लिए कोई वक्फ बाय यूजर की बात की गई. जैन कहते हैं कि जब श्रीराम को कोर्ट में सबूत कोर्ट में देने पड़े . दिल्ली में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक शिव मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया और कहा कि भगवा शिव को हमारे प्रोटेक्शन की जरूरत नहीं. जैन सवाल उठाते हैं कि अगर ऐसा है तो वक्फ बाई यूजर को कोर्ट के प्रोटेक्शन की जरूरत क्यों पड़ गई?
3-क्या वक्फ की तरह विवादित मंदिरों के प्रमाण भी नहीं मांगे जाएंगे
जाहिर है कि वक्फ बाय यूजर को लेकर जिस विवाद को उठाया जा रहा है कम से कम ये बात हिंदुओं को तो नहीं ही हजम होने वाली है. आखिर अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि के कागज के लिए ही तो 134 वर्षों तक कोर्ट में लड़ाई लड़नी पड़ी.जाहिर है कि जिस तरह पूजा स्थल अधिनियम में 1947 वाला ब्रेकेट लगा दिया गया कि हिंदू भविष्य में काशी, मथुरा, भद्रकाली, भोजशाला और अटाला की बात नहीं करेंगे. उसी तरह क्या वक्फ अधिनियम में व्यवस्था नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के पास मौका है कि पूजा स्थल अधिनियम की तरह ऐसी व्यवस्था के लिए आदेश जारी कर दे.
4-पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर वक्फ कानून की तरह त्वरित सुनवाई क्यों नहीं?
जैन कहते हैं कि वक्फ बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, तो कोर्ट ने हमसे पूछा था कि हम सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आए और सुझाव दिया था कि हमें हाई कोर्ट जाना चाहिए, और हमें कोई अंतरिम राहत नहीं मिली, जबकि अलग-अलग हाई कोर्ट में 140 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं. अब क्या मापदंड है कि कोई दूसरा पक्ष सुप्रीम कोर्ट आए और उनकी न सिर्फ सुनवाई हो बल्कि अंतरिम आदेश से जुड़ी बातें भी कही जाएं? पिछले 13 सालों से - हिंदू मंदिरों के अधिग्रहण से संबंधित 4 राज्यों के हिंदू बंदोबस्ती अधिनियम की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामले हाई कोर्ट में होने चाहिए और पूछा कि हम (सुप्रीम कोर्ट) ऐसे मामलों की सुनवाई क्यों करें. मेरा सुझाव है कि (वक्फ संशोधन अधिनियम के संबंध में) सभी मामलों को एक ही हाई कोर्ट में ले जाया जाना चाहिए और 6 महीने के भीतर मामलों की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक पीठ का गठन किया जाना चाहिए.
5-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति दिलाने की याचिकाओं की तरह वक्फ कानून मामले को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट क्यों नहीं भेजा?
काशी-मथुरा से लेकर हिन्दुओं से जुड़े तमाम विषयों पर विभिन्न अदालतों में हिन्दुओं का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट के इस दोहरे रवैये पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने बताया है कि वक़्फ़ बोर्ड को लेकर जब वो सुप्रीम कोर्ट में याचिका लेकर गए थे तब उनसे पूछा गया था कि सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आ गए, हाईकोर्ट्स में जाना चाहिए था. उन्होंने बताया कि 7 साल से समाज 140 से अधिक याचिकाओं के साथ अलग-अलग अदालतों में संघर्ष कर रहा है, आज तक कोई अंतरिम राहत नहीं मिली.
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को चुनौती देने वाली याचिकाओं को विभिन्न हाई कोर्ट्स को भेज दिया, जैसे कि तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, और आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट्स को. ऐसा करने के पीछे सुप्रीम कोर्ट का तर्क था कि संबंधित राज्य के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियमों के प्रावधानों को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट्स बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि वे स्थानीय संदर्भ और कानूनी आयामों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि यह मुद्दा कई राज्यों से संबंधित है, और प्रत्येक राज्य के कानून की विशिष्टताएँ अलग-अलग हैं, इसलिए हाई कोर्ट्स में सुनवाई अधिक उपयुक्त होगी.
तमिलनाडु में अभी हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ दान बंदोबस्त कानून, 1959 के तहत करीब 45 हजार मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में संचालित किया जा रहा है. इनमें 17 जैन मंदिर भी शामिल हैं. इसके खिलाफ साधु-संतों से लेकर सामाजिक-धार्मिक संगठन तक आवाज उठाते रहे हैं.