जगत की भौतिक प्रकृति दो विपरीत गुणों के बीच घटित होती है, और इन गुणों का एक आयाम पुरुषत्व और नारीत्व है. जब मैं पुरुषत्व और नारीत्व कहता हूं तो मैं नर और मादा की बात नहीं कर रहा हूं. ये दो गुण हैं. पुरुषत्व की प्रकृति ऐसी है कि वह किसी चीज को जीतना चाहता है, मुकाबला करना और जीतकर अपनी छाती ठोकना चाहता है. नारीत्व गले लगाना और शामिल करना चाहता है. जब ये दो गुण किसी इंसान में संतुलन में होते हैं, सिर्फ तभी वह एक तृप्त जीवन जी सकता है.
अतीत में, समाज नारीत्व के महत्व को जानता था. देवी पूजा धरती पर पूजा का सबसे प्राचीन तरीका है, और वह भारत, यूरोप, अरब, और अफ्रीका के बड़े भाग में फला-फूला. दुर्भाग्य से, पिछले 2000 साल में, हमने जिस तरह के धर्म अपनाए हैं, वे पूरे पुरुषत्व के बारे में हैं, उस कारण दुनिया मुख्यतया पौरुष बन गई है. आज, एकमात्र संस्कृति जहां नारीत्व की पूजा अभी भी प्रचलित और कायम है, वह भारतीय संस्कृति है.
कोई घर, कोई सामाजिक ढांचा, कोई देश, या पूरी मानवता संपूर्ण नहीं होगी जब तक स्त्रैण गुण भी पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं पाता. अगर आप नारीत्व का सम्मान नहीं करते, तो दुनिया से सारी कोमलता चली जाएगी. धरती को जीतने की कोशिश से ही वह सारी आपदाएं आई हैं, जिन्हें हम आज देखते हैं. अगर स्त्रैण और पौरुष बराबर से संतुलित होते, तो मुझे नहीं लगता कि पर्यावरण की आपदा आई होती क्योंकि स्त्रैण और धरती माता की पूजा हमेशा साथ होती थी. अभी, धरती को हुई इस पूरी क्षति के बाद भी, आधी आबादी ठीक से भोजन नहीं कर पाती है, हालांकि धरती पर पर्याप्त अन्न मौजूद है. अगर स्त्रैण गुण प्रधान होता, तो आबादी निश्चित रूप से भोजन करती, और करुणा, प्रेम, और सौंदर्य बोध प्रधान होते.
आज की दुनिया में, जब हम संकट के विभिन्न स्तरों से, खासकर पर्यावरण संकट से गुजर रहे हैं, तब दिव्यता के स्त्रैण रूप के बारे में जागरूकता लाना बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसे मोड़ पर, जब हमारी क्षमताएं, विज्ञान, टेक्नोलॉजी और उद्यम हमारे जीवन के आधार को ही नष्ट कर दे रहे हैं, तब स्त्रैण-दिव्यता बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. एक बहुत शक्तिशाली और तीव्र नारीत्व शक्ति, लिंग भैरवी को स्थापित करने का हमारा यही एक कारण है.
स्त्रैण-दिव्यता को पुनर्जीवित करना
लिंग भैरवी स्त्रैण-दिव्यता की एक अनोखी, उल्लासमय और दुर्लभ अभिव्यक्ति हैं, जिनकी प्राण-प्रतिष्ठा एक लिंग के रूप में की गई है. वे प्रचंड, उग्र, किंतु पूर्णतः करुणामयी हैं. ये किसी प्राणी के विपरीत गुण नहीं हैं. ये सारी चीजें साथ आती हैं. उनकी उग्रता निर्दयता या जीवन के प्रति नकारात्मक रुख के बारे में नहीं है. वे अपने जुनून के साथ प्रचंड हैं. वे अपनी करुणा के साथ प्रचंड हैं. जीवन इसी तरह आता है और लिंग भैरवी बस विशुद्ध जीवन हैं. जीवन अपनी प्रचंडता में, उच्चतम संभावना, पर अदम्य. अगर आप अपने जीवन में भैरवी को सर्वोच्च सत्ता के रूप में लेते हैं, तो वे स्वास्थ्य, खुशहाली, समृद्धि और सफलता के संदर्भ में ऐसी चीजें करेंगी, जिनके संभव होने का आपने सोचा नहीं था. उनके आपके साथ होने पर जीवन का एक चुनौती होना जरूरी नहीं है. जो देवी की कृपा अर्जित कर लेता है, उसे कभी चिंता, या जीवन या मृत्यु का डर, या गरीबी या असफलता में नहीं जीना पड़ता, क्योंकि वे व्यक्ति के जीवन को सांसारिक और आध्यात्मिक आयामों में उन्नत कर देंगी.
ज्यामित के संदर्भ में, लिंग भैरवी में साढ़े तीन चक्र हैं. तीन पूरे चक्र - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, और मनिपूरक - जो मुख्य रूप से खुशहाली, स्वास्थ्य और समृद्धि के बारे में हैं. अनाहत का आधा चक्र परे जाने के बारे में है. अगर आप खुद को उस पहलू में शरीक करते हैं, तो आप भौतिक से परे की ओर बढ़ते हैं.
भैरवी के निवास के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे बस पूजा के स्थान के रूप में लेना जरूरी नहीं है. यह एक ऐसा स्थान है जहां किसी मनुष्य के लिए वैज्ञानिक तरीके से रचित ऊर्जा प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं, जो जन्म से मृत्यु तक, और उसके बीच में हर दूसरी चीज के लिए बनी हैं, और यह सुनिश्चित करती हैं कि शैशवकाल, बचपन, यौवन, शादी, संन्यास, ब्रह्मचर्य, बुढ़ापा या मृत्यु रुकावटें न बनें, बल्कि व्यक्ति के कल्याण और मुक्ति के लिए संभावनाएं बन जाएं.