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बीजेपी से बगावत के मूड में आरके सिंह, नई पार्टी बनाएंगे या जनसुराज जाएंगे?

पूर्व नौकरशाह और मोदी सरकार में मंत्री रह चुके आरके सिंह का बीजेपी से अब मन भर चुका है. वो लगातार जिस तरह के बयान दे रहे हैं, उससे साफ लगता है कि वो बहुत जल्दी कोई फैसला लेने वाले हैं. आइये देखते हैं कि उनकी नई मंजिल क्या हो सकती है?

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बीजेपी छोड़ कहां जाएंगे आरके सिंह
बीजेपी छोड़ कहां जाएंगे आरके सिंह

बिहार की सियासत में 2025 विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एनडीए के खेमे में एक नया तूफान खड़ा हो गया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता आरके सिंह ने पार्टी लाइन से इतर बोलना शुरू कर दिया है जो साफ जाहिर कराता है कि उन्होंने विद्रोह का रास्ता अख्तियार कर लिया है. 2024 लोकसभा चुनाव में आरा (भोजपुर) से अपनी सीट गंवाने के बाद वे खुद को साइडलाइन समझ रहे हैं. अब वे प्रशांत किशोर (जन सुराज पार्टी) के भ्रष्टाचार वाले आरोपों का खुला समर्थन कर रहे हैं. बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल जैसे नेताओं से इस्तीफा मांग रहे हैं. और राजपूतों को एनडीए सरकार में उपेक्षित बता रहे हैं. 

सिंह बार-बार ऐसे इशारे कर रहे हैं कि वो खुद की पार्टी बना सकते हैं. मंगलवार की रात आरा के बाबू बाजार स्थिति क्षत्रिय कल्याण संगठन के कार्यालय के उद्घाटन के मौके पर राजपूतों से एकजुटता की अपील की और पूछा कि क्या हम लोग अपनी अलग पार्टी बनाएं? उन्होंने राजपूत समुदाय से इस पर विचार करके उन्हें बताने की अपील भी की.

अब सवाल उठता है कि पिछला लोकसभा चुनाव न जीत पाने वाले आरके सिंह का राजनीतिक आधार क्या है, जो वे इतना उछल रहे हैं? क्या यह उनकी निजी हताशा है या बिहार में भाजपा को कमजोर करने की सुनियोजित रणनीति? आइए, उनकी पृष्ठभूमि और वर्तमान रुख की पड़ताल करते हैं.

पूर्व नौकरशाह ,जनता से कभी जुड़ नहीं पाए

आरके सिंह पूर्व नौकरशाह हैं. IAS अधिकारी के रूप में पटना के डीएम रहे. केन्द्र सरकार में गृह सचिव रहे. बिहार की राजनीति को वो कितनी गंभीरता से लेते हैं वो इससे समझा जा सकता है कि 2024 में बीजेपी से उनके टिकट की घोषणा होने के 23 दिन बाद वो आरा लोकसभा सीट के लोगों से मिलने पहुंचे थे. जबकि यहां से वे 2014 और 2019 में 2 बार सांसद रह चुके थे. इसलिए इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती कि जनता से जुड़ाव नहीं रखने के कारण वो चुनाव हारे थे. 

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इनके जैसे जितने नेता अफसरी छोड़कर आए हैं वो उनका भी दल की विचारधारा से शायद ही कुछ लेना-देना होता है. आरा में 2024 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने भाजपा की गुटबाजी को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था. अपनी ही पार्टी के खिलाफ काफी कुछ बोला था. पर भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट में आरके सिंह की हार का सबसे बड़ा कारण उनका क्षेत्र से गायब रहना था. एक तरफ पार्टी ने उन पर तीसरी बार भरोसा जताया, पर भाकपा माले लगातार क्षेत्र में उनसे ज्यादा मेहनत कर रही थी. 

राजपूत वोटर्स को नाराज बताने का नरेटिव सेट कर सकते हैं

आरके सिंह का जनता के बीच अपना कोई आधार नहीं है. बिहार में प्रशासनिक अफसर रहने के दौरान उन्होंने राज्य की सड़कों में सुधार के लिए कुछ प्रयास किए थे.वो बातें अब बहुत पुरानी हो चुकी हैं. केंद्र में ऊर्जा मंत्री रहने के दौरान उन्होंने जरूर कुछ सुधार किए पर बिहार की जनता को सीधी प्रभावित करने वाला कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिससे वहां की जनता उनके प्रति ऋणी महसूस करे.

ले देकर उनके पास केवल ठाकुर( राजपूत) बिरादरी में बीजेपी के प्रति असंतोष पैदा करने के अलावा और कोई आधार नजर नहीं आता. वो आजकल राजपूतों के सम्मेलनों में जाते हैं और ऐसी बातें करते हैं जिससे राजपूत उपेक्षित महसूस करें. वो राजपूतों को याद दिलातें हैं कि राज्य सरकार में आपकी कितनी भागीदारी है? वो खुलकर राजपूतों से अपील करते हैं कि आप लोग अपना वोट उसे दें जो आपको सम्मान दे और सत्ता में भागीदारी दे.

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मतलब साफ होता है कि ,बीजेपी आपको सत्ता में हिस्सेदारी नहीं देती इसलिए उसे वोट देने की जरूरत नहीं है. जाहिर है कि उनकी अपील पर तालियां बजती हैं. पर राजपूतों को पता है कि अगर आरजेडी की सरकार बनती है तो भी उन्हें कितनी हिस्सेदारी मिल जाएगी? जाहिर है कि उनकी बातों पर तालियां तो बजती हैं पर उनके कहने पर बीजेपी को वोट नहीं मिलेगा ऐसा शायद ही हो.

वो कई बार विक्टिम कार्ड भी खेलते हैं. वो अपने साथ साथ भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह के साथ भी अन्याय होने की बात करते हैं.जाहिर है कि गायक पवन सिंह के बहाने वे भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व पर सियासी हमला करते हैं. पवन सिंह भी राजपूत जाति से आते हैं. आरके सिंह कहते हैं कि चुनाव नतीजे के बाद पवन सिंह मुझसे मिले थे. उन्होंने सारी बात बतायी थी, कैसे उनके साथ गलत हुआ. पहले आसनसोल से लोकसभा का टिकट दिया गया और फिर कह दिया कि वहां से चुनाव मत लड़िये, आपको दूसरी जगह से टिकट मिलेगा पर नहीं दिया.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद आरके सिंह ने कहा था कि काराकाट से पवन सिंह के चुनाव लड़ने के चलते उनकी हार हुई. दरअसल काराकाट में ठाकुरों ने पवन सिंह का समर्थन किया जिसके चलते कुशवाहा जाति को लगा कि ठाकुर लोग उनके नेता उपेंद्र कुशवाहा को हराना चाहते हैं. इसलिए आरा के कुशवाहा मतदाताओं ने आरके सिंह को वोट नहीं दिया. 

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अभी हाल ही में आरके सिंह ने कहा कि पवन सिंह को चुनाव लड़वाने के लिए बीजेपी के ही एक सीएम कैंडिडेट ने पैसे खर्च किए थे. सिंह का कहना है कि उन्हें लगता था कि बिहार की राजनीति में आरके सिंह भविष्य के सीएम कैंडिडेट हैं. इसलिए मुझे रास्ते से हटाया गया.

आरएसएस के लोग भी पसंद नहीं करते

आरके सिंह सुपौल जिला के रहने वाले हैं. उनके रिटायरमेंट के बाद उन्हें सुपौल से बीजेपी प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा थी. पर कहा जाता है कि RSS ने उनका विरोध किया था. जब उनकी उम्मीदवारी की बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों को पता चली तो वे आरके सिंह का विरोध करने लगे. आरएसएस ने आरोप लगाया था कि जिस अधिकारी ने केन्द्रीय गृह सचिव रहते आरएसएस के लोगों के लिए ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग किया उसे भाजपा कैसे उम्मीदवार बना सकती है. 

 इस विरोध के चलते आरके सिंह को सुपौल से टिकट नहीं दिया गया. हालांकि बाद में वे आरा से टिकट पाने में सफल हुए और 2 बार लोकसभा भी पहुंचे. पर आरएसएस, जो बिहार में 2015 तक 1,421 शाखाओं के साथ बहुत मजबूत है. हालांकि सिंह के भगवा आतंकवाद वाले बयानों को आरएसएस पुरानी भूल मान सकता है .

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नई पार्टी बनाना आसान नहीं, बीजेपी के पास आरके सिंह का तोड़ है

आरके सिंह अगर बीजेपी से बगावत करके अलग नई पार्टी बनाते हैं या जनसुराज में जाते हैं तो भी बीजेपी के लिए कुछ मुश्किल नहीं होने वाली है. बीजेपी ऐसे समय में पवन सिंह को आगे ला सकती है. दूसरी बात अब बहुत देर हो चुकी है. पार्टी बनाने के लिए बहुत सारा फंड और समय की जरूरत होती है. प्रशांत किशोर कई साल से लगातार मेहनत कर रहे हैं तब जाकर कहीं वोट काटने की हैसियत में पहुंचे हैं. आरके सिंह अगर जाति के आधार पर पार्टी बनाते हैं तो जाहिर है कि उन्हें व्यापक समर्थन नहीं मिलने वाला है. हालांकि राजपूत वोटबैंक (भोजपुर में 10-15%) को नाराज कर  4-5 सीटों पर जरूर NDA को कुछ वोट्स का नुकसान पहुंचाने की हैसियत रखते हैं.

जनसुराज में जाने के चांसेस 

प्रशांत किशोर की 2022 में शुरू की गई पार्टी, 2025 में सभी 243 सीटों पर लड़ रही है. पार्टी का फोकस 'सुशासन, युवा रोजगार, जाति से ऊपर विकास' है. सिंह की नौकरशाही छवि से मेल खाता है. पार्टी ने पूर्व आईएएस आरसीपी सिंह , जेपी सिंह (पूर्व एडीजीपी), रितेश पांडेय (भोजपुरी स्टार) जैसे चेहरों को जोड़ा है. जाहिर है कि आरके सिंह के लिए भी जगह बन सकती है. 
आरसीपी को पीके ने कुर्मी वोटों को प्रभावित करने के लिए लाया जो नीतीश के वोटबैंक को चुनौती देता है. आरके सिंह का इस्तेमाल वो भोजपुर में राजपूतों के लिए कर सकते हैं. पर आरके सिंह जैसे कद के लिए अभी जनसुराज में जाना कोई फायदेमंद सौदा नहीं लगता है.

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