बिहार विधानसभा चुनावों में आज तीन दशकों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा केंद्र में रहे हैं. 2025 में अपने गिरते स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के बावजूद उनकी पूछ बनी हुई है. बीजेपी हो या आरजेडी सभी की कोशिश यही रहती है कि नीतीश उनके ही साथ रहें. पर इतना सब कुछ होने के बाद भी इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि नीतीश का जादू कम हुआ है. कभी कभी ऐसा लगता है कि बीजेपी , आरजेडी, जनसुराज और लोजपा सभी आगे बढ़ रही हैं जबकि इनके ठीक उलट जनता दल यू सिकुड़ रही है. जाहिर है कि ऐसा ही नीतीश कुमार भी महसूस कर रहे होंगे. शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार ऐन चुनावों के पहले ऐसी चाल चली है जो उन्हें और उनकी पार्टी एक बार फिर सबसे आगे रखने की कूवत रखता है.
नीतीश कुमार ने 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एक दशक पुरानी भूमि सुधार योजना को फिर से ले आए हैं. इस योजना के तहत, बिहार सरकार बटाईदारों और भूमिहीन किसानों को सरकारी जमीन पर खेती करने का अधिकार देगी, साथ ही उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान करेगी.यह योजना 2007 में शुरू हुई थी, लेकिन नौकरशाही बाधाओं और धन की कमी के कारण 2010 के बाद ठप हो गई थी.
नीतीश कुमार की लैंड अलॉटमेंट स्कीम बिहार में जनता दल यूनाइटेड के लिए 2025 के विधानसभा चुनाव में एक उम्मीद की किरण बन सकती है. यह योजना, जो भूमिहीन किसानों और बटाईदारों को सरकारी जमीन पर खेती का अधिकार और आर्थिक सहायता प्रदान करती है, ग्रामीण मतदाताओं, खासकर दलित और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को लुभाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
1-JDU के लिए उम्मीद की किरण क्यों?
बिहार की 70% से अधिक आबादी ग्रामीण है, और 60% से अधिक किसान भूमिहीन या बटाईंदार हैं. यह योजना इन समुदायों को सीधे लाभ पहुंचा सकती है, जिससे JDU का ग्रामीण वोट बैंक मजबूत हो सकता है. बिहार में दलित (लगभग 16%) और EBC (लगभग 30%) सबसे महत्वपूर्ण मतदाता समूह हैं. यह योजना इन समुदायों को ही ध्यान में रखकर बनाया गया है. जाहिर है कि यह स्कीम अगर सफल होती है तो JDU की स्वीकार्यता को एक बार फिर बढ़ा सकती है.
फिलहाल इस योजना के फिर से आने की बात सुनकर जिस तरह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस ने रिएक्शन दिया है वह अपने आप में काफी है यह बताने के लिए इसका कितना प्रभाव आम जनता पर पड़ सकता है. दरअसल कांग्रेस और आरजेडी नीतीश पर ग्रामीण विकास और किसान कल्याण पर सरकार की निष्क्रियता का आरोप लगाती रही है. जाहिर है कि इस योजना को फिर से लागू करके राज्य सरकार विपक्ष के जुमला और किसान विरोधी जैसे दावों को कमजोर कर सकती है. तेजस्वी यादव के युवा-किसान केंद्रित अभियान के जवाब में नीतीश कुमार ने एक ऐसी चाल चली है जिसकी विपक्ष को उम्मीद भी नहीं रही होगी.नीतीश कुमार इस स्कीम के जरिए बिहार में अपने वोटर्स को यह दिखा सकते हैं कि उनकी सरकार ग्रामीण और गरीब वर्गों के लिए कितनी प्रतिबद्ध है.
2-नीतीश की सुशासन छवि को बल
नीतीश कुमार की सुशासन छवि उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है. पर पिछले 5 वर्षों में उनकी यह छवि काफी डेंट हुई है. जाहिर है कि उनकी यह स्कीम उनकी विकासोन्मुखी और समावेशी छवि को और मजबूत कर सकती है. RJD नेता तेजस्वी यादव ने इस योजना को चुनावी जुमला करार दिया है और इसे लागू करने में नीतीश की नीयत पर सवाल उठाए हैं. RJD ने इस सर्वेक्षण को चुनाव पूर्व रेवड़ी करार देते हुए खारिज कर दिया. RJD प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, राज्य सरकार ने दो-तीन साल पहले यह क्यों नहीं किया? फिलहाल विरोध के बावजूद इस योजना का समय एनडीए के लिए चुनावी लाभ सुनिश्चित करने के लिए तय किया गया है. योजना के तहत कम ब्याज पर ऋण, बीज, और उर्वरक जैसे प्रावधान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे JDU को काम करने वाली सरकार के रूप में प्रचारित करने का मौका मिलेगा.
3-एनडीए गठबंधन में स्थिति मजबूत करना
जेडीयू के सामने सबसे बड़ा संकट यह भी है कि बीजेपी की महत्वाकांक्षाएं दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही हैं. इसे रोकने के लिए नीतीश कुमार इस स्कीम पर फुल फोकस्ड हो गए तो जाहिर है उनके लिए अधिक सीटों की डिमांड करना आसान हो जाएगा. बिहार में एनडीए गठबंधन (JDU, BJP, LJP, और HAM) में सीट बंटवारे को लेकर तनाव की खबरें हैं. यह योजना JDU को गठबंधन के भीतर और बिहार की जनता के बीच अपनी प्रासंगिकता साबित करने का अवसर दे सकती है.
नीतीश कुमार अपनी इस स्कीम से अपने सहयोगी दलों के नेता चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को भी कंट्रोल कर सकते हैं. क्योंकि लैंड एलॉमेंट स्कीम दलित वोट बैंक को भी प्रभावित कर सकती है. बिहार में जातिगत समीकरण राजनीति का आधार है. यह योजना दलित और EBC को लाभ पहुंचाएगी.
4-क्या यह योजना JDU को बचा सकती है?
नीतीश कुमा़र और जेडीयू के साथ मुश्किल यह हो गई है कि उनके अति पिछड़े और दलित वोटर्स पर कई लोगों की निगाहें हैं. यदि नीतीश इस योजना को पारदर्शी और तेजी से लागू कर पाए, तो यह ग्रामीण बिहार में JDU की स्थिति को मजबूत कर सकती है. खासकर, दलित और EBC मतदाताओं के बीच यह नीतीश की साख बढ़ा सकती है, जो पिछले कुछ वर्षों में RJD और BJP के दबाव में कमजोर हुई है.
JDU को 2020 के विधानसभा चुनाव में केवल 43 सीटें मिली थीं, जबकि RJD ने 75 सीटें जीती थीं. JDU के सर्वाइवल के लिए जरूरी है कि उसे अतिरिक्त 20-30 सीटों और मिलें. जाहि है कि यह खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और पूर्वी बिहार से आ सकती हैं. जाहिर है कि यह तभी संभव होगा जब गठबंधन में उन्हें सीटें भी ठीक ठाक मिलें.