उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक प्राइवेट होटल में बीएसपी सांसद अफजाल अंसारी की सबसे छोटी बेटी नूरिया अंसारी का शादी समारोह उत्तर प्रदेश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. ये शादी समारोह उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नए समीकरण की इबारत गढ़ रहा है. बीएसपी के सांसद के घर शादी में खुद बीएसपी प्रमुख मायावती नहीं पहुंची पर उनके धुर विरोधी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लाव-लश्कर के साथ पहुंचे. अखिलेश के साथ न केवल उनके महासचिव शिवपाल यादव थे बल्कि पार्टी के कई विधायक और नेताओं ने भी हिस्सा लिया. करीब एक दर्जन विधानसभा सीटों और 4 के करीब लोकसभा सीटों पर प्रभावी अंसारी परिवार से सपा की बढ़ती नजदीकी न केवल बीएसपी बल्कि बीजेपी के लिए भी चिंता का विषय हो सकती है.
दरअसल अंसारी परिवार की दबंगई पूर्वांचल में किसी से छिपी नहीं है.आज करीब 3 दशक से इस परिवार की तूती पूर्वांचल के कई जिलों में बोलती रही है. हालांकि अफजाल अंसारी की राजनीतिक यात्रा अपने कुख्यात भाई से अलग रही है. पर मुख्तार के उत्थान के बाद पूरा परिवार उसकी छाया में ही पल रहा था. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद कुख्यात डॉन मुख्तार अंसारी के बुरे दिन आ गए. योगी सरकार ने स्टेप बाई स्टेप पूरे गैंग को तहस-नहस कर दिया. मुख्तार की अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चलाकर यूपी सरकार ने कब्जे ले लिये. अंसारी परिवार की अवैध कमाई को खत्म करके परिवार के रुतबे की कमर तोड़ दी. ऐसे समय में जब अंसारी परिवार इतना कमजोर हो गया है और साथ ही मुख्तार अंसारी कई मामलों में दोषी भी करार दिया जा चुका है अखिलेश यादव इस परिवार से समर्थन लेकर क्या आग से नहीं खेल रहे हैं. कभी इस परिवार से अखिलेश ने केवल इसलिए दूरी बना लिए थी क्योंकि वो समाजवादी पार्टी को अपने पिता की तरह नहीं चलाना चाहते थे. उनका सपना था कि समाजवादी पार्टी में कुख्यात माफिया का क्या काम है.
कभी पिता के रास्ते से बना ली थी दूरी
दरअसल, साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के समय मुख्तार अंसारी खुद तो बहुजन समाजवादी पार्टी में थे पर चाहते थे कि कम से कम अफजाल अंसारी और सिबगतुल्लाह को समाजवादी पार्टी अपनी सदस्यता दे दे.. लेकिन तब अखिलेश यादव अपने पिता के पदचिह्नों पर न चलकर एक अलग तरह की समाजवादी पार्टी बनाना चाहते थे. अखिलेश ने समाजवादी पार्टी पर लगे माफियाओं की पार्टी के ठप्पे को मिटाना चाहते थे. इस क्रम में उन्होंने कई माफिया नेताओं के टिकट काट दिए. अंसारी परिवार से भी उन्होंने दूरी बना ली. अखिलेश यादव उस समय उत्तर प्रदेश के सीएम होते थे. अंसारी भाइयों को पार्टी में शामिल कराने को लेकर अखिलेश और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच तलवारें भी खिंच गई थीं. पार्टी की इमेज को साफ सुथरा बनाने के लिए अखिलेश ने इलाहाबाद के बाहुबली अतीक अहमद, भदोही के विजय मिश्र और एमएलसी चुनावों में क्रॉस वोटिंग करने वाले बुलंदशहर के गुड्डू पंडित व उसके भाई मुकेश शर्मा और अमनमणि का टिकट भी काट दिया था. पर इसके बावजूद समाजवादी पार्टी सत्ता में नहीं बचा सकी. इसके बाद 2022 में भी अखिलेश ने पार्टी को माफिया नेताओं से दूरी बनाए रखने में थोडी बहुत ढील जरूर दी पर एक निश्चित दूरी बनाए रखी.
मुसलमानों को लुभाने में हिंदू समर्थकों से धो बैठेंगे हाथ
हालांकि अंसारी बंधुओं की अभी सपा में जॉइनिंग नहीं हो पाई है पर राजनीतिक हलकों में यह मानकर चला जा रहा है कि अफजाल को गाजीपुर लोकसभा से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार बनाएगी. वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार का मानना है कि अखिलेश को अंसारी परिवार को साथ लाने से आजमगढ़-मऊ और गाजीपुर की सीटों पर निश्चित फायदा हो सकता है.दरअसल मुख्तार अंसारी की छवि पूर्वांचल में पहले रॉबिनहुड वाली रही है.जो गरीबों को मदद करता रहा है, भले ही अमीरों से वसूली करता हो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि मुख्तार अंसारी की लोकप्रियता मुसलमानों ही नहीं हिंदुओं में भी रही है. कृष्णानंद राय हत्याकांड में उनका नाम आने के बाद भी अंसारी बंधुओं की भूमिहार वोटों पर पकड़ बरकरार रही.
पर क्या अब भी वही स्थिति है? कृष्णानंद राय हत्या कांड और अजीत सिंह हत्याकांड आदि सहित कुछ 6 मामलों में मुख्तार दोषी साबित हो चुके हैं. मुख्तार अंसारी की इमेज पर अब बट्टा लग चुका है उससे समाजवादी पार्टी को नुकसान नहीं होगा? मुख्तार और अफजाल दोनों भाइयों की सांसदी और विधायिकी भी जा चुकी है. बीजेपी सरकार में मुख्तार परिवार की काली कमाई का पर्दाफाश ही नहीं बल्कि उन स्रोतों को भी तहस नहस किया जा चुका है. योगी सरकार के मजबूत रहने के चलते अब बहुत से लोगों ने अंसारी परिवार से दूरी भी बना ली है. अब केवल इस परिवार के साथ हमदर्दी वाले ही वोट रह गए हैं. वो भी केवल मऊ, मुहम्दाबाद और गाजीपुर के कुछ इलाकों के मुस्लिम वोटों के बारे में ही ऐसा कह सकते हैं.
क्या राजभर का डैमेज कंट्रोल बनेगा अंसारी परिवार
गाजीपुर, मऊ, घोसी और वाराणसी में राजभर वोट किसी भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं. सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर विधानसभा चुनावों के दौरान अखिलेश यादव के साथ थे. यही कारण रहा कि बीजेपी का मऊ -घोसी और गाजीपुर में सूपड़ा साफ हो गया. सुभासपा के सिंबल पर चुनाव जीते मुख्तार के बेटे अब्बास को ओम प्रकाश राजभर ने सपा विधायक बता दिया है.यानी कि ओपी राजभर ने अपना रास्ता बिल्कुल साफ कर लिया है. ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में जाने के बाद उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी परिवार समाजवादी पार्टी का सहारा बन सकता है. अभी कुछ दिनों पहले हुए घोसी उपचुनाव में दारासिंह बीजेपी के साथ थे पर अंसारी भाई खुलकर समाजवादी पार्टी के साथ थे. नतीजा यही रहा कि बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा.
पूर्वांचल की 4 लोकसभा सीटों के लिए जरूरी
अंसारी परिवार का घोसी,वाराणसी और गाजीपुर की लोकसभा सीटों दबदबा रहा है. 2009 में वाराणसी सीट पर मुख्तार अंसारी को 1.85 लाख वोट मिले थे.मुख्तार 2014 में घोसी लोकसभा सीट से 1.66 लाख वोट मिले थे और वे तीसरे नंबर पर रहे थे. घोसी लोकसभा में 4 विधानसभा सीटें मऊ की हैं और एक सीट बलिया की है. गाजीपुर सीट से 2019 में मुख्तार के भाई अफजाल ने जीत दर्ज की थी. अफजाल गाजीपुर सीट से 2004 से 2009 तक भी सांसद रह चुके हैं. 2019 में उन्होंने मोदी सरकार में मंत्री रहे मनोज सिन्हा को चुनाव हराया था.मुख्तार परिवार की सीट मोहम्मदाबाद बलिया लोकसभा के अंदर है इसलिए इस सीट पर भी अंसारी परिवार का बेनिफिट समाजवादी पार्टी को मिल सकता है.
अंसारी परिवार के 4 नेता
मुख्तार अंसारी मऊ से विधायक रहे हैं.जिसका सदस्यता कैंसल हो चुकी है. अफजाल अंसारी- गाजीपुर से सांसद रह चुके हैं. गैंगस्टर केस में सजा मिलने के बाद सांसदी की सदस्यता रद्द हो चुकी है ( हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 गैंगस्टर एक्ट मामले में पूर्व बसपा सांसद अफजाल अंसारी की सजा को सशर्त निलंबित कर दिया है) .अब्बास अंसारी- मुख्तार अंसारी के बेटे हैं और मऊ से विधायक हैं. अभी अब्बास भी जेल में बंद हैं. सुहैब अंसारी- मुख्तार के भतीजे हैं सुहैब अभी मोहम्मदाबाद सीट से विधायक हैं. सुहैब वर्तमान में समाजवादी पार्टी के सदस्य हैं. 2022 में सपा ने ही उन्हें मोहम्मदाबाद से टिकट दिया था.