पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर जिस रास्ते पर चल पड़े हैं, वह पाकिस्तान के इतिहास में पहले किसी फौजी ने नहीं चुना. वे न सिर्फ पाकिस्तान के ताउम्र सेना प्रमुख बने रहना चाहते हैं, बल्कि उन्होंने ये साफ कर दिया है कि रिटायरमेंट का ख्याल भी उनके एजेंडे में नहीं है. यह कदम उन्हें पाकिस्तान की सत्ता का सर्वेसर्वा तो बना सकता है, मगर उसी अनुपात में उनकी जान और पद दोनों पर खतरा भी बढ़ा देता है.
27वें संविधान संशोधन के बाद आसिम मुनीर को 'जनरल फॉर लाइफ' बना दिया गया है. और इस तरह पाकिस्तान की सिविल गर्वनमेंट ने बची खुची डेमोक्रेसी भी सेना मुख्यालय GHQ के सामने मुनीर की खिदमत में पेश कर दी है. देश में सिविल गवर्नेंस पहले ही नाममात्र रह गई थी. इमरान खान जेल में हैं, विपक्ष ना के बराबर है, और सेना ने न्यायपालिका व मीडिया पर भी अप्रत्यक्ष कंट्रोल कर लिया है. ऐसे में अगर आर्मी चीफ खुद को स्थायी शासक के रूप में स्थापित कर लेता है, तो यह शायद शरीफ बंधुओं और उन जैसे लीडरों को ज्यादा नहीं अखरेगा. लेकिन, आर्मी के वो जनरल जरूर असंतुष्ट होंगे, जो आगे चलकर मुनीर के रिटायर होने के बाद पाकिस्तान की हुक्मरानी करने का सपना देख रहे होंगे.
अब तक पाकिस्तान के इतिहास में यह परंपरा रही है कि सेना प्रमुख रिटायरमेंट के बाद विदेश चले जाते हैं. वे यूरोप, सऊदी अरब, ब्रिटेन या अमीरात में आराम की जिंदगी बिताते हैं. वहां उन्हें किसी तरह की राजनीतिक हलचल से दूर, सुरक्षित माहौल में रखा जाता है. जनरल अशफाक परवेज कियानी, जनरल राहील शरीफ, कमर जावेद बाजवा ने ड्यूटी पर रहते हुए विदेश में ठिकाने बनाए और अब कहा जाता है कि वे पाकिस्तान आते-जाते रहते हैं. परवेज मुशर्रफ ने भी अपने जीवन के अंतिम साल देश से बाहर ही काटे. लेकिन आसिम मुनीर ने यह तय करके सबको चौंका दिया है कि वे न तो पाकिस्तान छोड़ेंगे और न ही रिटायर होंगे.
पाकिस्तान आर्मी में हर तीन साल बाद कमांडरों के बदलने की प्रोसेस है. जिस पर सेना का पूरा ढांचा एक पिरामिड की तरह काम करता है, जहां हर अधिकारी जानता है कि उसकी बारी कब आएगी. लेकिन अगर शीर्ष पर बैठा व्यक्ति कभी हटे ही नहीं, तो नीचे के अधिकारी कब तक वफादारी निभाते रहेंगे? जिन कमांडरों ने अपने करियर के आखिरी साल इस उम्मीद में बिताए हैं कि एक दिन उन्हें भी शीर्ष पद मिलेगा, अब वे जानते हैं कि उनका यह सपना कभी पूरा नहीं होगा. जब तक आसिम मुनीर जीवित रहेंगे, उन्हें उनका मातहत ही रहना है. ऐसे में पाकिस्तान की सेना में पहली बार खुली बगावत का माहौल बनना तय है. ये कब होगा इसके बारे में अभी कहा नहीं जा सकता. लेकिन, होगा जरूर. अब तक पाकिस्तान में सिर्फ सिविल सरकारों का तख्तापलट हुआ है, लेकिन इस बार यह खेल खुद सेना के अंदर हो सकता है.
जनरल आसिम मुनीर की स्थिति अब एक ऐसे राजा की तरह हो गई है जिसने अपनी ही तलवार की धार पर बैठने का फैसला किया हो. पाकिस्तान का इतिहास लंबे समय तक सत्तानशीन रहे दो जनरलों के दर्दनाक अंत की गवाही देता है. दस साल राष्ट्रपति रहे जनरल जिया-उल-हक जैसे तानाशाह, जिन्होंने इस्लामीकरण के नाम पर पूरे देश की सियासत को हिला दिया था, एक विमान दुर्घटना में मारे गए. वह हादसा अब तक रहस्य बना हुआ है. वहीं, परवेज मुशर्रफ, जिन्होंने खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ कर सत्ता हथियाई थी और आठ साल तक सत्ता पर काबिज रहे, लेकिन अंत में दुबई में गुमनामी और बीमारियों के बीच मौत के हवाले हो गए. इन दोनों जनरलों का अंजाम पाकिस्तान के हर सैनिक को याद है. वे जानते हैं कि जिस कुर्सी ने उन्हें ताकत दी, वही उनके पतन की वजह बनी. लेकिन, मुनीर फिलहाल इससे बेपरवाह हैं.
इतिहास गवाह है कि जब-जब पाकिस्तान की सेना के भीतर शक्तियों का असंतुलन बढ़ा है, उसने सत्ता के सर्वोच्च शिखर बैठे शख्स की 'कुर्बानी' ली है. फिर वो कुर्बानी जिया के हश्र वाली हो, या मुशर्रफ के अंत जैसी. और अब वही दोहराव आसिम मुनीर के दौर में होता दिख रहा है. कुलमिलाकर, सेना के भीतर बढ़ती खींचतान, देश की कमजोर अर्थव्यवस्था और पाकिस्तानियों के असंतोष का कॉकटेल किसी भी वक्त आसिम मुनीर के लिए विस्फोटक साबित हो सकता है.
पाकिस्तान के इतिहास की किताब में यह चैप्टर सबसे खतरनाक मोड़ पर लिखा जा रहा है जहां एक जनरल, अमर होने की चाह में खुद अपनी कब्र तैयार कर रहा है.