वरिष्ठ पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने ट्वीट किया है कि 'यह तीसरी बार है जब राज्यसभा की सीट सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को आवंटित कर दी गई है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना सिर्फ नाम के लिए था...'. स्वाति ने अपने ट्वीट में किसी पार्टी और नेता का जिक्र नहीं किया है, लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को लेकर टिप्पणी से पट गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि आम आदमी पार्टी (AAP) ने पंजाब से राज्यसभा उपचुनाव (24 अक्टूबर 2025) के लिए उद्योगपति राजिंदर गुप्ता को उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है.
पहले कयास लगाए गए थे कि अरविंद केजरीवाल खुद पंजाब के रास्ते राज्य सभा में जाने की योजना बना रहे हैं. लेकिन पिछले दिनों जिस तरह उन्होंने अपने राज्यसभा में जाने वाली अटकलों को खारिज किया उससे लगने लगा था कि दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम और उनके पुराने साथी मनीष सिसोदिया की किस्मत खुलने वाली है. पर आम आदमी पार्टी ने अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए एक बार फिर एक धनपति को संसद की राह दिखाई है.
पंजाब के एक प्रमुख उद्योगपति राजिंदर गुप्ता राज्यसभा में आप का नया चेहरा होंगे. वे ट्राइडेंट ग्रुप के चेयरमैन एमिरेट्स और कई हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं. गुप्ता बीजेपी और कांग्रेस के लिए भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. जाहिर है इस फैसले ने AAP की आम आदमी की छवि पर सवाल उठाए हैं. कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल का मनीष सिसोदिया जैसे पुराने सहयोगी को नजरअंदाज कर गुप्ता को चुनना यह दिखाता है कि उनकी रणनीति में दोस्ती पर तिजोरी (आर्थिक पक्ष) भारी पड़ रही है. ऐसा पहली बार नहीं, बार-बार हो रहा है.
मनीष सिसोदिया के पहले भी कई दोस्तों पर भारी पड़े अमीर कैंडिडेट
अरविंद केजरीवाल ने AAP की स्थापना से ही अपने पुराने मित्रों को दरकिनार कर अमीर या अपेक्षाकृत धनी उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी है, जो पार्टी की आम आदमी वाली छवि को तिलांजलि देने जैसा ही था. यह पैटर्न 2017-18 के राज्यसभा नामांकनों से शुरू होकर हाल के फैसलों तक जारी है. मनीष सिसोदिया को पंजाब राज्यसभा उपचुनाव के लिए नामित न करके कई हजार करोड़ के मालिक उद्योगपति राजिंदर गुप्ता पर भरोसा जताना आम आदमी पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है.
इससे पहले कुमार विश्वास और आशुतोष जैसे संस्थापक सदस्यों को नजरअंदाज कर अमीर उम्मीदवारों को राज्यसभा भेजा गया. ये फैसले केजरीवाल की रणनीति को उजागर करते हैं, जहां राजनीतिक स्थिरता और संसाधन पुराने साथियों पर भारी पड़ते हैं. 2018 में दिल्ली से तीन राज्यसभा सीटों के लिए AAP ने कुमार विश्वास और आशुतोष को न चुनकर सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता जैसे धनी व्यवसायियों को प्राथमिकता दी.
कुमार विश्वास, IAC (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) आंदोलन के संस्थापक सदस्य और केजरीवाल के पुराने मित्र और आशुतोष, पूर्व पत्रकार और AAP प्रवक्ता, ने भी राज्यसभा टिकट की उम्मीद की थी. लेकिन नामांकन से वंचित रहने पर 2018 में इस्तीफा दे दिया.
सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता, जो AAP के वित्तीय प्रबंधकों के रूप में जाने जाते थे, अमीर पृष्ठभूमि से थे. विश्वास ने इन्हें महान क्रांतिकारी कहकर तंज कसा था. इस फैसले ने दिखा दिया था कि आम आदमी पार्टी भी दूसरी पार्टियों के तरीके से सोचती है.जहां पार्टी के सर्वे सर्वा बन चुके केजरीवाल ने पुराने मित्रों को दरकिनार कर वफादार लेकिन धनी सदस्यों को बढ़ावा दिया.
2015 दिल्ली चुनाव भी अरविंद के खास दोस्तों के लिए भारी पड़ गए थे. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित कर दिया गया. यादव ने पार्टी में लोकतंत्र की कमी का आरोप लगाया, जबकि भूषण ने केजरीवाल की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को दोषी ठहराया था.
2022 में AAP ने पंजाब से उद्योगपति संजीव अरोड़ा को राज्यसभा भेजा, जो अभी लुधियाना वेस्ट विधानसभा उपचुनाव जीतकर मंत्री बने हैं. राजिंदर गुप्ता को इन्हीं के इस्तीफे से खाली हुई जगह पर भेजा जा रहा है.
केजरीवाल की दोस्ती पर तिजोरी क्यों भारी?
अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की दोस्ती AAP की नींव रही है. सिसोदिया 2013 से दिल्ली सरकार में नंबर दो रहे और शिक्षा सुधारों के लिए जाने जाते हैं. लेकिन जब राज्यसभा में भेजने की बात आई तो राजिंदर गुप्ता का चयन दिखाता है कि केजरीवाल ने दोस्ती पर आर्थिक और राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी.
गुप्ता जैसे उद्योगपति का समर्थन AAP को आर्थिक संसाधन और कॉरपोरेट नेटवर्क प्रदान करता है. आम आदमी पार्टी को लगता है कि पंजाब में AAP सरकार को निवेश और रोजगार सृजन की जरूरत है, जहां गुप्ता की पृष्ठभूमि मददगार होगी.
समझा जा रहा है कि सिसोदिया को राज्यसभा भेजने से दिल्ली का दबदबा बढ़ता, जो पंजाब में कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में असंतोष पैदा करता. राघव चड्ढा को पहले ही पंजाब से राज्यसभा भेजे जा चुके हैं. पंजाब में माना जाता है कि पूरी सरकार का नियंत्रण दिल्ली वालों के हाथ है. गुप्ता का चयन स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देता है और पंजाब में AAP की सरकार को औद्योगिक समर्थन देता है.
तीसरी बात यह भी है कि दिल्ली में 2025 की हार के बाद AAP का संगठन कमजोर हुआ. सिसोदिया की भूमिका दिल्ली में संगठन के पुनर्गठन और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में महत्वपूर्ण हैं. शराब नीति घोटाले में उनकी जेल यात्रा ने उन्हें जनता में सहानुभूति दिलाई, जो दिल्ली में AAP की वापसी के लिए उपयोगी है. तीसरी बात यह भी थी कि सिसोदिया को भेजने से कार्यकर्ताओं और जनता में यह धारणा बनती कि केजरीवाल पुराने दोस्तों को प्राथमिकता दे रहे हैं. गुप्ता का चयन तटस्थ और विकास-केंद्रित दिखता है, जो पार्टी के भीतर असंतोष को कम करता है.
AAP के इस फैसले के निहितार्थ
आम आदमी पार्टी के लिए यह फैसला गले की फांस बन सकता है. दिल्ली में 2025 की हार का सबसे बड़ा कारण पार्टी की अपनी मूल छवि से हटना ही समझा गया था. केजरीवाल का आवास और उनकी लैविश लाइफ स्टाइल दिल्ली के लोगों के बीच सबसे बड़ी चर्चा बनी थी. लोगों के बीच ऐसा संदेश गया कि आम आदमी की बात करने वाला शख्स आम लोगों को गुमराह किया. कार्यकर्ताओं में पहले से असंतोष है, और गुप्ता का चयन इसे और बढ़ा सकता है. सोशल मीडिया पर AAP अब अमीरों की पार्टी जैसे कमेंट्स इस जोखिम को दर्शाते हैं.
सिसोदिया जैसे वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों में असंतोष भी पार्टी के लिए खतरनाक हो सकता है. सिसोदिया ने AAP के लिए कई बलिदान दिए. एक साल से ऊपर जेल में रहे पर कभी पार्टी के प्रति वफादारी नहीं छोड़ी. उन्हें नजरअंदाज करना पार्टी के भीतर दरार पैदा कर सकता है. पहले भी कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव जैसे नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है. अगर पार्टी की आम आदमी वाली छवि और कमजोर हुई, तो दिल्ली और अन्य राज्यों (जैसे गोवा, गुजरात) में AAP की अपील घट सकती है.