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प्रोफेशनल लाइफ में टॉप पर पहुंचने का गुरु मंत्र देती है ‘जीतने के रास्ते’

‘जीतने के रास्ते’ आपको अपनी किताब के टाइटल के अनुरूप ही एक एक बारीकियों को बताता है जो कामयाबी के लिए जरूरी है. इस किताब को पढ़ने के बाद आप निश्चित तौर पर अपनी सफलता की राह में आ रहे अड़चनों को पहचानने में कामयाब हो सकेंगे और उससे निजात पाने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगे.

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जीतने के रास्ते: अनिता और हर्षा भोगले की किताब
जीतने के रास्ते: अनिता और हर्षा भोगले की किताब

किताब का नामः जीतने के रास्ते (The Winning Ways)
लेखकः हर्षा भोगले व अनीता भोगले
अनुवादः नवेद अकबर
प्रकाशकः वेस्टलैंड लिमिटेड
कीमतः 195 (पेपरबैक)

‘जीतने के रास्ते’ आपको अपनी किताब के टाइटल के अनुरूप ही एक एक बारीकियों को बताता है जो कामयाबी के लिए जरूरी है. यह एक रसोइये (स्पेशलिस्ट) द्वारा पकाया गया बहुत ही लजीज पकवान है जिसमें हर उस बारीक पहलुओं का ख्याल रखा गया है जो आपके खाने के स्वाद को उत्कृष्ट बनाता है. यानी इस किताब को पढ़ने के बाद आप निश्चित तौर पर अपनी सफलता की राह में आ रहे अड़चनों को पहचानने में कामयाब हो सकेंगे और उससे निजात पाने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगे.

आमुख इंडिया के नंबर वन बिजनेस मैन मुकेश अंबानी ने लिखा हैः
किताब के बारे में अंबानी लिखते हैं कि हर्षा ने हमें क्रिकेट से प्रेम करना सिखाया है और जिस प्रकार उनकी कमेंट्री सुनना आनंददायक है उसी प्रकार बल्कि उससे भी ज्यादा इस किताब को पढ़ना. इस किताब के हर पन्ने पर उन्होंने खेल, बिजनेस, सिनेमा को जीवन से जोड़ते हुए ज्ञान की मोतियों को चुना है जिसे इस पुस्तक के लगभग प्रत्येक पन्ने पर पाया जा सकता है. इस किताब ने बहुत ही प्रभावी ढंग से जीतने के बुनियादी नियम तय किए हैं.

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किताब के बारे में:
यह किताब लगभग आठ सालों में विभिन्न क्षेत्र की 150 कंपनियों के लिए 300 सत्रों के काम से प्रेरित है.

किताब को 10 चैप्टर में बांटा गया है. 1. यह किताब क्यों? 2. जीतने का कारोबार 3. लक्ष्य 4. जीत का त्रिकोण- योग्यता, रवैया जुनून 5. जीतने का बोझ 6. हारते हुए सीखना 7. बदलाव 8. टीम निर्माण 9. नेतृत्व 10. आज की दुनिया में चुनौतियां. इन चैप्टर्स की शुरुआत अभिनव बिंद्रा, एमिल जैटोपेक, टाइगर वुड्स, माइकेल ओवेन, अजीम प्रेमजी, जे के राउलिंग, चार्ल्स डार्विन, रिचर्ड ब्रैंसन जैसे सफल लोगों के प्रेरणादायक कथनों से की गई है.

किताब के अंशः
- आज जीतने का मतलब है प्रोत्साहक होने और निर्मम होने के बीच सही संतुलन खोजना. अन्य क्षेत्रों की तुलना में खेलों में जीतने से न सिर्फ उन लोगों को खुशी हासिल होती है जो खेलते हैं, बल्कि हम जैसे लोगों को भी जो खेलों के शौकीन होते हैं. इस जीत का आनंद हम बहुत बाद तक भी लेते हैं और बातें करते हैं.

- विजेता टीमों के लक्षणः प्रसन्न, शांत लड़कों के झुंड का माहौल, गेंद को आगे बढ़ाने की योग्यता, वर्तमान में जीना, भविष्य की योजना बनाना, सबको साथ लेकर चलना, कम प्रदर्शन करने वालों को प्रोत्साहित करना, रवैया ‘कर सकते हैं’ वाला, मुकाबले पर फोकस होना, भूख, जुनून और ऊर्जा.

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- लक्ष्य पहुंच से दूर हो सकते हैं लेकिन नजरों से दूर नहीं. आप अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित करते हैं वहीं दुनिया को बताता है कि आप किस किस्म के इंसान हैं. गोल के लिए तैयारी कर देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि गोल करना. भूमिका और लक्ष्य की स्पष्टता जीतने के लिए महत्वपूर्ण है.

- जीत का त्रिकोण है- योग्यता, रवैया और जुनून. एक सुस्त खिलाड़ी और एक चुस्त खिलाड़ी के बीच फर्क रवैया है. जीतना एक मंजिल नहीं बल्कि मंजिलों की सीरीज है जिसमें नई चुनौतियों का सामना किया जाता है, और उन पर हावी हुआ जाता है. हम बोर्ग, सैंप्रास और फेडरर, तेंदुलकर और वॉर्न, निकलॉस और वुड्स, पेले और माराडोना, जॉर्डन और अली को याद करते हैं जिन्होंने जीतने को आदत बना लिया.

- महान खिलाड़ियों में अविश्वसनीय प्रतिभा होती है, लेकिन जरूरी नहीं है कि उनमें यही एक मात्र योग्यता है. सही रवैये के बिना एक प्रतिभाशाली व्यक्ति लंबी अवधि का स्थायी विजेता नहीं हो सकता. एक बार सचिन शेन वॉर्न की राउंड द विकेट लेग ब्रेक गेंद को खेलने के लिए प्रैक्टिस करने में घंटों बिता रहे थे और जब अभ्यास मैचों में वॉर्न ने उन्हें वैसी गेंद नहीं डाली तो वो और भी सतर्क हो गए कि वॉर्न उन्हें यह गेंद टेस्ट मैच में डालेंगे और हुआ भी ऐसा ही. जब टेस्ट मैच में वॉर्न ने उन्हें वह गेंद डाली तो सचिन ने उसे सीधे मिड-विकेट के ऊपर से निकाल दिया सारी दुनिया उनकी प्रतिभा की दाद देने लगी. ये सिर्फ प्रतिभा नहीं बल्कि धैर्य था. बगैर प्रयास योग्यता व्यर्थ हो जाती है. सफलता की रेसिपी है- प्रतिभा का एक बड़ा चम्मच लेकिन रवैये और कर्तव्यनिष्ठा के कई बड़े चम्मच. सचिन के दोस्त कांबली में भी भरपूर प्रतिभा थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आने के बाद वो अनुशासन नहीं दिखा सके. नतीजा सबके सामने है.

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- सफलता का विश्लेषण भी उसी गहनता से करना चाहिए जितनी असफलता का किया जाता है. जीत साइड-इफेक्ट्स के साथ मिलती हैः अहंकार, अति आत्मविश्वास और आत्मतुष्टि. 'मैं' का रोग 'हम' की पराजय की ओर ले जा सकता है. कठिन परिस्थितियां चैंपियन को चुनौती देने वालों से भिन्न साबित करती हैं. - हारने के लक्षणः देर से लिया गया फैसला, अहंकार, आंतरिक प्रतिस्पर्धा, गुटबाजी, काम पूरा करने से अधिक महत्व श्रेय पाने को देना, फोकस में अभाव, ऊर्जा में कमी, बैकअप योजनाओं का न होना, असफलता के लिए दूसरों पर आरोप लगाना, विचारों का न होना.

- कुछ लोग स्वाभाविक लीडर होते हैं. एक विचित्र बात देखी गई है कि अधिकांश सफल खिलाड़ी, अकसर, बहुत प्रभावशाली कप्तान नहीं रहे- जबकि माइक ब्रेयरली जैसे एक सफल कप्तान या जॉन बुकनन जैसे कोच इस काम के लिए बमुश्किल सबसे ज्यादा योग्य प्रतीत होते थे.

- नेतृत्व अकसर पेचीदा होता है. विंस्टन चर्चिल, जिन्हें दूसरे विश्वयुद्ध के दौर के बेहतरीन नेताओं में से एक के रूप में याद किया जाता है, युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद हुए चुनाव हार गए थे. युद्धकाल में जो महान नेता साबित हुए थे, उन्हें शांतिकालीन प्रबंधक के रूप में नकार दिया गया था!

- कप्तान या कोच यानी लीडर का काम टीम के खिलाड़ियों को अच्छा माहौल बना कर देना है जो विश्वास और सहयोग का प्रोत्साहन दे.

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- 2002 में नासिर हुसैन के नेतृत्व में भारत आई इंग्लिश टीम सचिन को आउट करने में नाकाम रहने पर उन्हें लेग स्टंप्स के बाहर गेंद फेंककर हताश किया और शतक से वंचित किया. बॉलर थे एश्ली जाइल्स. जाइल्स के लिए भी यह उबाऊ काम था लेकिन कप्तान ने उन्हें इसका अर्थ समझाया कि तेंदुलकर को शतक बनाने देने की अपेक्षा यह विकल्प बेहतर था! यानी अगर कोई खिलाड़ी अपनी भूमिका को जानता है और इसे बखूबी लागू करता है, तो एक छोटी प्रतीत होने वाली भूमिका भी महत्वपूर्ण बन सकती है.

- लीडर्स की एक अंतिम तिथि भी होती है. इयान चैपल का मानना है कि आप में एक आंतरिक आवाज होती है जो आपको बता देती है कि कब जाने का वक्त आ गया है. लेकिन अंतिम तिथि सुनिश्चित करने का कोई फॉर्मूला नहीं होता. गांगुली पांच साल तक कप्तान रहे जबकि द्रविड़ को लगा कि उनका समय दो साल में ही पूरा हो गया है. इसलिए नियोक्ताओं को नजर बनाकर रखनी चाहिए और खिलाड़ियों की तरह लीडरों को भी सही समय पर चुनना और निकालना जरूरी है.

- अच्छा लीडर वही है जो दूरंदेश हो, प्रेरित करने के लिए संवाद करता हो, माहौल को प्रबंधित करता हो, भरोसेमंद, सम्मानित हो, टीम का साथ देता हो, आसान पहुंच में हो, खुला, लचीला, ईमानदार और सुनने को तैयार हो, सकारात्मक, आशावादी हो, खुद को अपने से बेहतर लोगों से घिरा रखने का इच्छुक हो, जिम्मेदारी लेने और श्रेय देने को तैयार रहे और टीम के लिए गोंद का काम करे.

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किताब के उत्तरकथन में क्रिकेट के दिग्गज राहुल द्रविड़ ने लिखा है कि टीम का खिलाड़ी होने का क्या अर्थ है. वो लिखते हैं- अच्छे खिलाड़ी सफलता को बहुत अलग तरीके से देखते हैं और श्रेय की चिंता किए बगैर प्रेरित होते हैं. एक जीत के लिए टीम में प्रत्येक खिलाड़ी अलग अलग मेहनत करता है. जैसे- शॉर्ट लेग में खड़ा फील्डर न सिर्फ अपना शरीर खतरे में डालता बल्कि कभी-कभी अंत तक कुछ भी न हासिल करने वाला पोजिशन साबित होता है. ऐसे में कुछ प्लेयर इस पोजीशन को दिए जाने पर मेहनत से कतराते हैं जबकि कुछ पूरी मेहनत करते हैं और स्पेशलिस्ट बन जाते हैं.

क्यों पढ़ें यह किताबः
इस किताब में कैसे जीतें, हार रहे हैं तो कैसे सीखें, कैसे करें टीम का निर्माण, लीडर्स के गुण और आज की दुनिया में क्या-क्या चुनौतियां हैं, इस पर बहुत बारीकी से चर्चा की गयी है. कई प्रेरणादयक कथनों को जोड़ कर जीत, कामयाबी और सफलता पर बने रहने का नुस्खा बताया गया है.

लेखक परिचय
हर्षा भोगले ने अपनी पत्नी अनीता के साथ मिलकर इस किताब को लिखा है. हर्षा इससे पहले भी अपने ऑर्टिकल्स के कलेक्शन्स को ‘ऑउट ऑफ द बॉक्स’ नामक किताब की शक्ल दे चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन की बायोग्राफी ‘अजहर’ भी लिखी है.

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हर्षा उस्मानिया यूनिवर्सिटी से कैमिकल इंजीनियर और आईआईएम, अहमदाबाद से पीजी हैं. ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में उतरकर क्रिकेट की दुनिया में तहलका मचाने से पहले दो साल तक विज्ञापन और फिर अगले दो साल एक मैनेजमेंट फर्म में काम किया. जबकि अनीता आईआईटी मुंबई से स्टैटिसियन फिर आईआईएम अहमदाबाद से पीजी हैं. अनीता ने भी करियर की शुरुआत विज्ञापन फर्म से ही की थी फिर दस सालों तक एक विज्ञापन कंसल्टेंसी चलाई, टीवी विज्ञापन लिखे, प्रॉड्यूस किए और अभी बिज पंडित (ऑनलाइन कंटेंट लाइब्रेरी) में डायरेक्टर हैं. इसके अलावा पिछले 14 सालों से इस दंपति ने एक स्पोर्ट्स आधारित कंसल्टैंसी प्रोसर्च भी खोल रखा है.

अंत में मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि इस किताब को पढ़ना बहुत ही एनर्जेटिक है क्योंकि हममें से प्रत्येक व्यक्ति खेल के माध्यम से दुनिया को बहुत ही आसानी से समझ सकते हैं और हर्षा-अनीता ने इसे और भी आसान बना दिया है. यह एक नायाब तोहफा है प्रत्येक उनके लिए जो खेलों के माध्यम से छोटी-बड़ी हर उस चीज को समझना चाहते हैं जो उनके जीवन की सीढ़ियों पर आगे बढ़ने में काम आने वाली हैं. आप किसी भी फील्ड में वर्किंग क्यों न हों आपको यह किताब पढ़नी ही चाहिए क्योंकि यह स्पोर्ट्स के उदाहरणों से मैनेजमेंट और टॉप पर पहुंचने और वहां बने रहने के नुस्खों से भरा है. तो देर किस बात की है तुरंत ऑर्डर करें ‘जीतने के रास्ते’ और अपने लाइफ में तरक्की करने का कुछ गुर सीखें.

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