उन्होंने तंज भरे लहजे में कहा कि राजनीति में भी लोग मृदुल बनना चाहते हैं. मनोज तिवारी मृदुल नाम को लेकर उन्होंने कहा कि 1996 में मैंने संगीत में करियर शुरू किया. तभी मृदुल नाम पड़ा. एक तरह से कह सकते हैं कि ये मेरा निक नेम हैं. वहीं, रिंकिया के पापा गीत पर कहा कि मैं कटाक्ष से घबराता नहीं हूं. ये सोशल चेंज सॉन्ग है.
उन्होंने क्रिकेट से लेकर कंपीटिशन तक में अपने सफल न होने की कहानी सुनाई और कहा कि असफल होने का दंश उसे ही पता होता है, जो असफल होता है. असफलता से सबक भी मिलता है. पहले की असफलता से राजनीति में बहुत कुछ सीखने को मिला है.
भागते-भागते कटे लॉकडाउन के दिन
मनोज तिवारी ने कहा कि लॉकडाउन का वक्त भागने-भागने में कटा. रोज 4 से 5 घंटे भागना होता है. पार्टी ने साफ कहा है कि जरूरतमंदों की मदद के लिए हर कार्यकर्ता को आगे रहना है. लॉकडाउन में लोगों की मदद का काम जारी है. उन्होंने कहा कि इस लॉकडाउन में मैं बैडमिंटन और क्रिकेट भी खूब खेला. क्रिकेट मानसिक रूप से एकदम फ्रेश कर देता है. साथ ही मेरी फिटनेस के लिए भी क्रिकेट जरूरी है.
e-Sahitya Aaj Tak 2020 Day 3 Live Updates: मनोज तिवारी साहित्य से जुड़ कर बने मृदुल