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कर्नल और महिला आईजी... सेना- पुलिस की कमान संभाल चुके दो अफसर बने उत्तराखंड के गांव में 'प्रधान जी'

रिटायर्ड कर्नल यशपाल नेगी बीरोंखाल ब्लॉक (पौड़ी गढ़वाल) के बिरगण गांव में निर्विरोध ग्राम प्रधान चुन लिए गए हैं. वहीं, रिटायर्ड आईपीएस (आईजी) विमला गुंज्याल को भारत-चीन सीमा पर बसे गांव गुंजी (धारचूला, पिथौरागढ़) का प्रधान चुना गया है.

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रिटायर्ड कर्नल यशपाल नेगी और आईपीएस विमला गुंज्याल
रिटायर्ड कर्नल यशपाल नेगी और आईपीएस विमला गुंज्याल

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से अक्सर पलायन की कहानियां सुनने को मिलती हैं, जहां रोजगार, शिक्षा या जीवन की बेहतर सुविधाओं की तलाश में लोग अपने गांव छोड़ शहरों का रुख करते हैं. लेकिन इस बार बिल्कुल उलट कहानी सामने आई है, जो न सिर्फ सुखद अनुभूति प्रदान करती है बल्कि लोकतंत्र में भरोसा और मजबूत करती है.

दरअसल, उत्तराखंड में इन दिनों पंचायत चुनाव का प्रचार अभियान जोरों पर है. जगह-जगह पोस्टर, प्रचार, जनसभाएं और चुनावी रणनीतियां देखने को मिल रही हैं और कुर्सी के लिए खूब जद्दोजेहद चल रही है. लेकिन इस भीड़-भाड़, होड़ और सत्ता की चाह से दूर दो ऐसे नाम सामने आए हैं, जिन्होंने सादगी, सेवा और सच्चे नेतृत्व की मिसाल पेश की है. पहला नाम है- रिटायर्ड कर्नल यशपाल नेगी का और दूसरा नाम है रिटायर आईजी (IPS) विमला गुंज्याल का. दोनों ही रिटायर अफसर अब गांव में निर्विरोध प्रधान चुन लिए गए हैं.

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कर्नल नेगी ने बताई क्यों लौटे पहाड़

रिटायर्ड कर्नल नेगी ने 'Aajtak.in से बातचीत की है. उन्होंने बताया कि वे पौड़ी गढ़वाल ज़िले के बीरोंखाल ब्लॉक स्थित अपने पैतृक गांव बिरगण में रह रहे हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान देश के कई हिस्सों में सेवाएं दी हैं, लेकिन गांव हमेशा उनके दिल में रहा. दिल्ली में तैनाती के दौरान वे हर माह अपने गांव की बैठक में शामिल होते थे ताकि लोगों से मुलाकात हो सके. कर्नल नेगी बताते हैं, 'पहाड़ का अपनाअपन, लोगों का प्यार तो उन्हें अपनी तरफ खींच ही लाया, साथ में पलायन एक मुद्दा था जो मुझे कचोटता था.' 

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गांव में वापस आने के फैसले का श्रेय वो अपनी पत्नी को भी देते हैं और कहते हैं कि उनकी वजह से ही आज मैं यहां खाली पड़ी जमीन को आबाद कर सका. कर्नल नेगी बताते हैं कि जब हम गांव आए तो पहले हमने मिर्च की खेती की जिससे हमें पहले ही साल 70-80 हजार रुपये मिल गए. इससे हौसला बढ़ गया. कर्नल नेगी ने गांव की खाली पड़ी 45 नाली जमीन (करीब ढ़ाई एकड़) को जैविक खेती में बदल दिया. कई युवा किसानों के लिए एक मॉडल खड़ा कर दिया.

कर्नल नेगी ने लोगों से की गांव लौटने की अपील

गांव वालों द्वारा निर्विरोध चुने जाने के फैसले पर कर्नल नेगी बताते हैं, 'प्रधान चुना है तो कुछ काम देखकर ही चुना होगा. मैंने इतने साल फौज में नौकरी की तो काम का अनुभव तो है ही. मैं आर्मी ऑर्डिनेंस कोर में था जो आर्मी के लिए मैटेरियल मैनेज्ड करती है. गांव में छोटी-छोटी समस्याएं होती हैं और जो मुखिया होता है वो इन्हें हल करने की एक अहम कड़ी है. अगर गांव समृ्द्ध होगा तो राज्य समृद्ध होगा और फिर देश समृद्ध होगा. हमारे यहां अधिकांश जमीन बंजर हो गई है. जल और जमीन दोनों ही छूट रहे हैं जो चिंता का विषय हैं. बाकी सफर तो अब शुरू हुआ है, आगे देखते हैं.'

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कर्नल नेगी चाहते हैं कि पहाड़ में उन लोगों की वापसी हो जो जिम्मेदार पदों पर रह चुके हैं और जिनके बच्चे अब सैटल हो चुके हैं, खासकर फौजी भाई. कर्नल नेगी कहते हैं कि 'वोकल फॉर लोकल' बोलना बड़ा आसान है लेकिन उसे धरातल पर उतारना उतनी ही मुश्किल हैं. 

आईजी रहीं विमला गुंज्याल बनेंगी बॉर्डर से सटे गांव की प्रधान

दूसरी कहानी है रिटायर्ड IPS अधिकारी (आईजी रैंक) विमला गुंज्याल की. पुलिस महानिरीक्षक (आईजी विजिलेंस) रह चुकीं विमला गुंज्याल ने तीन दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस विभाग में सेवाएं दी और अब रिटायर होने के बाद अपने गांव लौटने का फैसला किया. गुंजी गांव पिथौरागढ़ जिले में धारचूला में भारत-चीन सीमा पर बसा है जो सामरिक दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील इलाका माना जाता है.

राष्ट्रपति पदक से सम्मानित विमला गुंज्याल ने दिल्ली-देहरादून की कोई हाई-प्रोफाइल ज़िंदगी नहीं चुनी, बल्कि गांव में जाकर बसने और गांव की कमान संभालने का निर्णय लिया. अब गांव वालों ने भी उन्हें पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निर्विरोध ग्राम प्रधान चुन लिया.

कहां हैं गुंजी गांव

गुंजी गांव पिथौरागढ़ जिले की व्यास वैली में आता है जो कभी भारत चीन व्यापार की व्यापारिक मंडी भी हुआ करता था. लेखक अशोक पांडे अपनी पुस्तक 'जितनी मिट्टी, उतना सोना' में लिखते हैं, 'कोई चार दशकों के अंतराल के बाद 1992 में भारत और चीन की सरकारों ने व्यांस घाटी से होकर तिब्बत जाने वाले लिपूलेख दर्रे को व्यापार के लिए पुनः खोल दिया था. सीमा के दोनों तरफ़ मंडियां स्थापित की गईं. तिब्बत में यह मंडी तकलाकोट में बनाई गई जबकि भारत में इसे गुंजी में स्थापित किया गया.'

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समुद्र तल से करीब 10 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित गुंजी 'आदि कैलास' और 'ओम पर्वत यात्रा' का प्रमुख पड़ाव है. चीन सीमा पर मौजूद इस गांव को 2024 में केंद्र सरकार द्वारा बेस्ट वाइब्रेंट विलेज का भी अवॉर्ड मिल चुका है.  

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