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जानें क्या है सी-सैट जिसपर मचा है बवाल

सी-सैट को लेकर जहां एक छात्रों के प्रदर्शन हो रहे हैं वहीं संसद में भी इसे लेकर काफी हंगामा चल रहा है. छात्र संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के परीक्षा पैटर्न (पाठ्यक्रम और प्रारूप) में बदलाव की मांग कर रहे हैं.

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UPSC
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सी-सैट को लेकर जहां एक छात्रों के प्रदर्शन हो रहे हैं वहीं संसद में भी इसे लेकर काफी हंगामा चल रहा है. छात्र संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के परीक्षा पैटर्न (पाठ्यक्रम और प्रारूप) में बदलाव की मांग कर रहे हैं. दरअसल, प्रशासनिक सेवाओं के लिए यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षाएं तीन चरणों में ली जाती है. पहले चरण में प्रारंभिक परीक्षा, दूसरे में मुख्य परीक्षा जबकि अंत में उम्मीदवारों का इंटरव्यू लिया जाता है.

सी-सैट का पहला प्रारूप
सी-सैट से पहले के प्रारूप के अनुसार इसके दो पेपर होते थे. पहला भाग ऑप्शनल होता था जिसमें छात्र अपने पंसद का विषय चुनकर परीक्षा देते थे जबकि दूसरे भाग में जनरल स्टडीज होता था. दोनों का योग करके ही टोटल निकाला जाता था. इसमें भारतीय भाषाओं के छात्रों को फायदा मिलता था.

क्या है सी-सैट?
दरअसल, यूपीएससी ने 2011 में प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट यानी कॉमन सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट को शामिल किया. इसे शामिल करने से 400 अंकों का जनरल स्टडीज और 200 अंकों का सी-सैट होता है. हिंदी माध्यम के छात्र अंग्रेजी कंप्रीहेंशन के सवालों में फंस जाते हैं क्योंकि इन सवालों का हिंदी अनुवाद काफी जटिल रहता है. इसे समझने में काफी समय गुजर जाने के कारण हिंदी मीडियम के छात्र पिछड़ जाते हैं.

सी-सैट के लागू होने के बाद भी दो ही पेपर होते हैं लेकिन पहला भाग ऑप्शनल नहीं रहा. अब इसमें ताजा घटनाक्रम, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, विज्ञान के अलावा कई अन्य विषयों को भी शामिल कर दिया गया है. दूसरे शब्दों में कहें तो पहला पार्ट करंट अफेयर्स और रीजनिंग आधारित हो गया है. जबकि दूसरे भाग में अंग्रेजी कंप्रीहेंशन, संचार कौशल (कंम्यूनिकेशन स्किल), तार्कित तर्क (लॉजिकल रिजनिंग), विश्लेषणात्मक क्षमता (एनालिटिकल एबिलिटी), निर्णय लेने की क्षमता (डिसिजन मेकिंग और प्रॉब्लम-सॉल्विंग), सामान्य मानसिक योग्यता (जनरल मेंटल एबिलिटी), अंग्रेजी भाषा समझ सहित कई विषयों को शामिल किया गया है.

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पार्ट-टू में होने वाले अंग्रेजी के प्रश्नों और एप्टीट्यूड टेस्ट का ही छात्र विरोध कर रहे हैं. भारतीय भाषी छात्र पार्ट-टू में फंस जाते हैं. प्रश्न का जवाब गलत लिखने पर निगेटिव मार्किंग का नुकसान भी छात्रों को उठाना पड़ता है. दोनों पेपर अनिवार्य होने के कारण अंग्रेजी भाषा के छात्र आगे निकल जाते हैं.

इतिहास
1989 तक यूपीएससी का माध्यम अंग्रेजी ही था, लेकिन आंदोलन के बाद सिविल सेवाओं की परीक्षा में अन्य भाषाओं को भी जगह मिल सकी. इसका परिणाम यह हुआ कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के छात्र बड़ी संख्या में प्रशासनिक सेवाओं में आने लगे. इसके बाद 2008 से मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी और हिंदी दोनों के प्रश्नपत्रों को अनिवार्य कर दिया. इससे हिंदी भाषी छात्रों की परेशानी बढ़ गई. हद तो तब हो गई जब 2011 में सी-सैट परीक्षा पैटर्न में अंग्रेजी के अंकों को मेरिट में जोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी.

यूपीएससी के आंकड़ों के मुताबिक, यूपीएससी परीक्षा में अंग्रेजी से सफल होने वाले छात्रों की संख्या 2008 में 50.57 फीसदी थी जो 2009 में बढ़कर 54.50, 2010 में 62.23, 2011 में 82.93 फीसदी हो गई. जबकि हिन्दी भाषा से परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट आई. 2008 में 5082 छात्रों ने हिन्दी भाषा में सिविल सेवा परीक्षा दी थी जो 2011 में घटकर 1682 रह गयी. 2008 में तेलुगु भाषा में 117 छात्रों ने परीक्षा दी थी जो 2011 में घटकर 29 रह गयी. 2008 में तमिल भाषा में 98 छात्रों ने परीक्षा दी थी जो 2011 में घटकर 5 रह गयी.

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सरकार और विपक्ष का रुख
खबरों के मुताबिक सी-सैट की समीक्षा के लिए गठित वर्मा कमेटी ने सी-सैट को वैज्ञानिक दृष्टि से एकदम सही माना है. सरकार का कहना है कि 24 अगस्त की तारीख के हिसाब से तमाम तैयारियां की जा चुकी हैं. इसलिए परीक्षा की तिथि में बदलाव संभव नहीं है. इसके एवज में असफल रहे छात्रों को एक और मौका दिया जा सकता है. सरकार ने यह भी ऐलान किया कि प्री परीक्षा की मेरिट में अंग्रेजी के अंक नहीं जोड़े जाएंगे.

हालांकि इसे लेकर विपक्षी दल अब भी सरकार के खिलाफ हमलावर हैं. कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि जब तक सरकार न्याय नहीं करती हमारा विरोध जारी रहेगा. वहीं सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि देश की राष्ट्रीय भाषा की उपेक्षा हो रही है. वहीं जेडीयू नेता शरद यादव ने कहा कि अब तो ऐसा लग रहा है सरकार को घोषित कर देना चाहिए कि हिंदी भाषियों और भारतीय भाषाओं के लिए ये देश है ही नहीं. आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि सी-सैट अंग्रेजी के बीस नंबर तक सीमित नहीं है. मूल समस्या कॉप्रिहेंशन के अस्सी नंबरों के साथ है, जिस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया है. द्रमुक की कनीमोझी, तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन, अन्नाद्रमुक के वी मैत्रीयन और आंध्र प्रदेश से कांग्रेस के अनेक सदस्यों ने मांग की कि सिविल सेवा के प्रश्न पत्र सभी भारतीय भाषाओं में दिए जाने चाहिए.

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छात्रों का पक्ष
छात्रों का कहना है कि उनकी मांग परीक्षा से सी-सैट को पूरी तरह से हटाने को लेकर है, जिसे सरकार ने पूरा नहीं किया. छात्रों का कहना है कि सीसैट मैंनेजमेंट और टेक्निकल स्टूडेंट्स के पक्ष में झुका है. यही वजह है कि हम लोग सीसैट को हटाने का विरोध कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि जीएस (सामान्य अध्ययन) में जहां एक प्रश्न के 2 अंक मिलते हैं वहीं सी-सैट के एक प्रश्न का सही उत्तर लिखने पर 2.5 अंक दिया जाता हैं. इसके अलावा सी-सैट प्रश्नपत्र में कंप्रीहंशन से संबंधित सवालों की ज्यादा होती है जिनके हिंदी अनुवाद को समझने में खासी समस्या आती है. दूसरी ओर यह फॉर्मेट साइंस स्ट्रीम और इंजीनियरिंग-मैनेजमेंट से संबंधित छात्रों के लिए लाभकारी साबित होता है. जाहिर है जीएस और सी-सैट में मूल्यांक का अंतर भी अंग्रेजी माध्यम और साइंस स्ट्रीम के छात्रों के ही पक्ष में जाता है.

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