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सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, ताज नष्ट हो गया तो फिर दूसरा अवसर नहीं मिलेगा

ताजमहल के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट बेहद सख्त रवैया अपना रहा है और उसने कहा कि अगर यह नष्ट हो गया तो फिर से चांस नहीं मिलेगा.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

ताजमहल के रखरखाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद तल्ख लहजे में सरकार से कहा कि ताजमहल को सैकड़ों सालों तक सुरक्षित और संरक्षित रखने के उपाय करने में कोताही बरती जा रही है और इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.

देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि इसे देखने के दो नजरिए हैं. पहला तो यह कि ताजमहल को कैसे सुरक्षित रखा जाए और दूसरा यह कि प्रदूषण से यमुना और ताज को कैसे मुक्त रखा जाए, यानी कारखानों से वायु और यमुना को बचाना आदि. ताज की सुरक्षा और संरक्षा के लिए प्रदूषण और हरित क्षेत्र जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए व्यापक परिप्रेक्ष्य में दृष्टिपत्र तैयार करना चाहिए क्योंकि इस धरोहर के संरक्षण के लिए दूसरा अवसर नहीं मिलेगा.

शीर्ष अदालत ने कहा कि निश्चित ही इस मामले में ताजमहल को केंद्र में रखते हुए ही विचार करना होगा, लेकिन इसके साथ ही दृष्टिपत्र तैयार करते समय वाहनों के आवागमन, ताज ट्राइपेजियम जोन में काम कर रहे उद्योगों से होने वाला प्रदूषण और यमुना नदी के जल स्तर जैसे मुद्दों पर भी गौर करना चाहिए.

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ताज ट्राइपेजियम जोन करीब 10,400 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है जिसके दायरे में उत्तर प्रदेश का आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, हाथरस और एटा तथा राजस्थान का भरतपुर जिला आता है. जस्टिस न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने दृष्टिपत्र तैयार करने की प्रक्रिया में शामिल परियोजना समन्वयक से कहा, 'यदि ताजमहल खत्म हो गया तो आपको दुबारा अवसर नहीं मिलेगा.'

पीठ ने कहा कि ताजमहल को संरक्षित करने के लिए प्राधिकारियों को अनेक बिंदुओं पर विचार करना होगा. पीठ ने हरित क्षेत्र के साथ ही इस इलाके में कार्यरत उद्योगों तथा होटल और रेस्तरां की संख्या के बारे में जानकारी चाही.

तैयार कर रही योजना

यूपी सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि दिल्ली में नियोजन एवं वास्तुकला विद्यालय एक दृष्टिपत्र तैयार कर रहा है. ताजमहल के संरक्षण के अलावा वह इन सभी बिन्दुओं से निबटने के लिये भी एक व्यापक योजना पर विचार कर रहा है.

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि न्यायालय के आदेश के बाद उसे आगा खान फाउंडेशन, इंटैक और अंतरराष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद जैसी विशेष दक्षता वाली संस्थाओं से भी इस बारे में सुझाव मिले हैं.

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नाडकर्णी ने कहा कि केंद्र ने आगरा ‘धरोहर शहर’ घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव भेजने के लिए केंद्र को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भी ताज के लिये धरोहर योजना तैयार करने की प्रक्रिया में है जिसे तीन महीने के भीतर यूनेस्को के पास भेज दिया जायेगा.

यूपी सरकार ने कहा कि आगरा को ‘धरोहर शहर’ घोषित करने के बारे में एक महीने के भीतर केंद्र के पत्र का जवाब दिया जाएगा.

शीर्ष अदालत के 1996 के आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस इलाके में अनेक उद्योग शुरू हो गए हैं जिनमें से अनेक अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि न्यायालय के इस आदेश के अनुसार इलाके में 511 उद्योग थे. न्यायालय ने कहा था कि इनमें से 292 के मामले में अलग से विचार किया जाएगा.

NRC पर SC बेहद सख्त

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने असम में हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के मसौदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवालों की झड़ी लगा दी और इसमें शामिल किए गए व्यक्तियों में से 10 फीसदी के पुन:सत्यापन पर विचार कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने NRC के संयोजक प्रतीक हजेला से पूछा कि इस प्रक्रिया में आपको कितना समय लगेगा? कोर्ट ने पूछा इसको कब शुरू किया जाएगा? इसको लेकर क्या कोई साफ्टवेयर डवलप करने की जरूरत है? क्या सैम्पल स्तर पर भी रिवेरीफिकेशन करेंगे?

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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स की याचिका पर नोटिस जारी किया. कोर्ट ने कहा कि हरेक जिले में 10 फीसदी सैम्पल टेस्ट किए जाएं. कोर्ट ने साफ किया कि वो सरकार के फैमिली ट्री के सुझाव से संतुष्ट नहीं है. अगर आप पिता की जगह दादा या माता के फैमली ट्री के हिसाब से चलते हैं तो सब कुछ बदल जाएगा. इसीलिए हम कह रहे हैं कि दूसरा मौका होगा देना उचित होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मामले की सुनवाई अलगे 5 सितंबर को करेंगे. इस बीच रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराने के लिए दावा करने या आपत्ति दर्ज करने का समय 30 अगस्त से 7 सितंबर किया जाए.

एनआरी का दूसरा मसौदा 30 जुलाई को प्रकाशित किया गया था जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे. इस मसौदे में 40,70,707 लोगों के नाम नहीं थे. इनमें से 37,59,630 लोगों के नाम अस्वीकार कर दिए गए थे जबकि 2,48,077 नाम लंबित रखे गए थे.

शीर्ष अदालत ने 31 जुलाई को स्पष्ट किया था कि जिन लोगों के नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे में शामिल नहीं हैं, उनके खिलाफ प्राधिकारी किसी प्रकार की दण्डात्मक कार्रवाई नहीं करेंगे क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा ही है.

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शेल्टर होम मामला

शेल्टर होम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण परिषद यानी NCPCR की सोशल ऑडिट रिपोर्ट को शेल्टरहोम मामले की सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड पर लिया. NCPCR ने अपनी सोशल ऑडिट रिपोर्ट में कहा है कि देश में इस वक्त 3540 जुवेनाइल इंस्टीट्यूट हैं, इनमें से 2874 चिल्ड्रेन होम हैं. इसमें केवल 54 होम का पॉज़िटिव रेस्पॉन्स है. बाकी का मामला लचर है.

देश भर में 185 शेल्टर होम जिनका अभी ऑडिट हुआ है उसमें 19 ने ही रिकॉर्ड मेंटेन किया हुआ है, बाकी के रिकॉर्ड राम भरोसे. NCPCR ने कोर्ट को बताया कि सोशल ऑडिट अभी भी चल रहा है जो अक्तूबर 2018 तक चलेगा. सुनवाई के दौरान केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कोर्ट में कहा कि सभी राज्य के मुख्य सचिवों के साथ शेल्टर होम के निरीक्षण को लेकर 15 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट तलब की गई है. इसके बाद 18 सितंबर को मीटिंग करेंगे.

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