राज्यसभा में मंगलवार को सपा और कांग्रेस के सदस्यों ने शून्यकाल और प्रश्नकाल का समय बदले जाने के बारे में मीडिया में आई खबरों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यह बदलाव किया जाना सदन के नियमों और संविधान के प्रावधानों के विरूद्ध होगा. प्रश्नकाल के तुरंत बाद सपा के नरेश अग्रवाल ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि मीडिया में ऐसी खबरें आई हैं कि शून्यकाल को सुबह 11 बजे करने और प्रश्नकाल को दोपहर 12 बजे करने का निर्णय लिया गया है.
उन्होंने कहा कि हमारी संसदीय व्यवस्था ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था पर आधारित है और वहां भी शून्यकाल दोपहर बारह बजे होता है. अग्रवाल ने कहा कि संविधान के प्रावधानों और सदन की नियम पुस्तिका में शून्यकाल के लिए कोई प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा कि प्रश्नकाल 11 बजे ही होना चाहिए और यदि प्रश्नकाल से कोई मुद्दा बच गया तो उसे सभापति की अनुमति से प्रश्नकाल के बाद उठाया जाता है.
सपा नेता ने कहा कि यदि प्रश्नकाल और शून्यकाल के समय को बदलने का कोई निर्णय लिया गया है तो उस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए क्योंकि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों और सदन की नियम पुस्तिका के अनुसार अमान्य है. कांग्रेस के डॉ टी सुब्बीरामी रेड्डी ने भी उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि मौजूदा व्यवस्था में प्रश्नकाल के बाद सभापति की अनुमति से लोक महत्व के विषयों को आधे घंटे तक उठाया जाता है. लेकिन अब जिस नयी व्यवस्था की बात की जा रही है उसमें शून्यकाल का समय बढ़ा कर एक घंटे कर दिया जाएगा जो उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि प्रश्नकाल का समय नहीं बदला जाना चाहिए.
उप सभापति पी जे कुरियन ने कहा कि उन्होंने कभी भी सदन में यह नहीं कहा कि शून्यकाल होता है. उन्होंने कहा कि सदन में प्रश्नकाल के बाद सभापति की अनुमति से लोक महत्व के विषय उठाए जाते हैं. कुरियन ने कहा कि सदन नियमों के अनुसार चलता हैं नियमों में संशोधन करने के लिए एक समिति होती है. समिति यदि कोई निर्णय करती है तो उस निर्णय को सदन के समक्ष लाया जाता है और उसे स्वीकार करना सदन पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा जब भी सदन में आएगा तो इस पर निर्णय करने के लिए वह स्वतंत्र है.