कर्नाटक के हुक्केरी में एक मुस्लिम महिला ने लिंगायत धर्म को अपनाया है. विरक्ता मठ के शिवाबसवा स्वामीजी ने महिला के लिंगायत धर्म अपनाने के दौरान सभी औपचारिकताएं पूरी कीं. दरअसल, एक लिंगायत युवक को मुस्लिम युवती से प्यार हो गया था. हाल ही में दोनों ने शादी भी कर ली. दोनों की शादी बेलगाम जिले में पंजीकृत है.
युवक और युवती दोनों के परिवार वाले इस शादी के खिलाफ भी नहीं थे. हालांकि, शादी के बाद दोनों शिवाबसवा स्वामीजी से मिले और युवक ने स्वामी जी से अपनी पत्नी के लिंगायत धर्म अपनाने की बात कही. स्वामीजी की स्वीकृति के बाद मुस्लिम महिला ने लिंगायत धर्म की दीक्षा ली. दीक्षा लेने के बाद महिला को इष्टलिंग, एक चौका और एक केसरिया शॉल भेंट की गई. युवती ने लिंगा को गले में बांधा हुआ था.
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स्वामी जी के अनुसार, युवक उनके पास आया और कहा कि उसे एक मुस्लिम युवती से प्यार हो गया है और वे उसे लिंगायत धर्म में परिवर्तित करना चाहते हैं. युवती के लिंगायत धर्म अपनाने के दौरान वहां तीन लोग मौजूद थे. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह ध्यान रखा गया था. बता दें कि कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें सोशल डिस्टेंसिंग पर खास जोर दे रही हैं.
लिंगायत के बारे में-
बता दें कि लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी हिस्सा लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है. लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं.
इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ. इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था. बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. उन्होंने ब्राह्मणों की वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया था.
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बसवन्ना जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे. लिंगायत समाज पहले हिंदू वैदिक धर्म का ही पालन करता था, लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए संप्रदाय की स्थापना की गई.
लिंगायत संप्रदाय के लोग ना तो वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में. लिंगायत हिंदुओं के भगवान शिव की पूजा नहीं करते, लेकिन भगवान को उचित आकार "इष्टलिंग" के रूप में पूजा करने का तरीका प्रदान करता है. इष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं. लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं.
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