काशी के पांच दृश्य
दृश्य-1
गोदौलिया चौराहे के पास बीजेपी समर्थकों का हुजूम. भगवा रंग की छतरी, पर्चे, पैम्फलेट. झंडे और तमाम चुनाव समाग्री, चौराहे से लोग किसी तरह निकल रहे. भीड़ बढती जा रही है. मोदी के समर्थन में लगातार नारे उछाले जा रहे हैं. एक तरह सड़क के दाहिने कोने में आम आदमी पार्टी का एक समर्थक अपने चार पांच आदमियों के साथ हाथों में झाड़ू लिए मोर्चा संभाले हुए. लेकिन उसकी आवाज बीजेपी के नारों से दब जा रही है. हालांकि वह लगातार हवा में झाड़ू लहरा रहा है. इस बीच अमित शाह कार में चढ़कर आते है और गोदौलिया भगवा रंग में डूब जाता है.
दृश्य-2
दशाश्वमेध घाट, अगर बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को मंजूरी मिल गई होती, तो वे आज गंगा आरती में शरीक हो रहे होते, और ये आरती रोज की तरह ना होकर हाईप्रोफाइल होती. सुरक्षा के तमाम उपाय होते और साधारण लोग चौक के पास ना जा पाते.. बहरहाल नावों पर सवार होकर लोग आरती में शामिल हुए और रोज की तरह गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा दर्शाई.
दृश्य-3
कुमार स्वामी घाट, सीढ़ियों से ठीक नीचे एक युवक गंगा में डुबकी लगाने उतरा, उसने दोनों हाथ फैलाए और पानी में हिलोंरे (आप इसे लहरें भी पढ़ सकते हैं) पैदा करने लगा. पानी में प्रदूषण बढ़ गया है इसलिए झाग पैदा होती है लेकिन युवक डुबकी मारता है. ये प्रक्रिया चलती रहती है. युवक का पानी में अपनी दोनों बाहों के व्यास भर की दूरी में हिलोंरे पैदा करना काशी के चुनावी कुरूक्षेत्र में चल रही लहर का प्रतीक है.
दृश्य-4
शिवाला घाट, बंद करअ दिल्ली के नाका, लेलअ..लेलअ ललका पताका. वृत के आकार में बैठे पचासों लोग भोजपुरी में कोरस गा रहे हैं. लेकिन इनमें से ज्यादातर बनारस के बाहर के हैं. कोई गुजरात से हैं, कोई ओड़िशा से तो कोई बिहार से. इनका काम है बनारस के रिमोट इलाकों में घूमकर वोटरों को सही निर्णय लेने के लिए आगाह करना.
दृश्य-5
आम आदमी पार्टी के समर्थक पूरे उत्साह के साथ लगे हुए है. धीरे धीरे संख्या बढ़ती है. लेकिन ज्यादातर लोग बाहर के है. कोई भींड से आया है. तो दिल्ली और अमेठी से. मीडिया के लोग पीटूसी कर रहे है. गुल पनाग, रघु और डडलानी भी है. लेकिन बनारसी गायब है. रैली 3 बजे शुरू होनी होती है लेकिन सवा चार होने लगता है. बाहरी लोग बीएचयू के गेट पर जमा होते जाते है. तभी केजरीवाल का पदार्पण होता है. लोग दौड़ते हुए आते हैं. केजरीवाल के समर्थन में नारे लगाते हुए. मुस्लिम युवक भी आम आदमी की टोपी में दिखते है. लगभग एक किलोमीटर की दूरी में जनसमूह पैदल मार्च करने लगता है.
ये प्रसंग
काशी के चुनावी कुरूक्षेत्र के रुझानों का खाका खींचते हैं. बनारस में मोदी लहर का प्रभाव डुबकी लगाने के समय पैदा होने वाली झाग की तरह है. शहर में रैली और सभा है तो दिखता है नहीं तो दोपहर में घाटों पर पसरे सन्नाटे की तरह होता है. ये गंगा को भी मालूम है कि पूरे देश में लहर की बात हो रही है उसे केन्द्र में रखकर. लेकिन उसकी लहरों की नहीं. किसी और की लहर की, जो बनारस आ गया है. गंगा के दरिया में उतना पानी नहीं है कि डुबो देने वाली लहरें पैदा हो सके. एक अजीब सी कश्मकश में डूबी है गंगा और बनारस भी.
इस शहर की पहचान ही मंदिर, मठ, घंट और महंतों से है और भारतीय राजनीति में मंदिर की एंट्री बहुत पहले ही हो चुकी है. यहीं वजह है कि 92 के बाद बनारस में मेयर, पार्षद, विधायक और सांसद ज्यादातर बीजेपी के ही रहे हैं. ऐसे में मोदी को एडवांटेज है दूसरे दलों के मुकाबले. पेशे से ऑटो ड्राइवर भरत लाल कहते हैं कि मोदी दूसरे नेताओं से अलग है इसलिए हम उन्हें वोट देंगे. हालांकि पिछला सांसद बेकार निकला.
आम तौर पर बनारस की पहचान सद्भाव और गंगा जमुनी तहजीब वाले शहर की रही है. लेकिन यहां की सत्ता पर बीजेपी का कब्जा लंबे समय से है. इस सवाल के जवाब में काशी विद्यापीठ में सांख्यिकी विभाग के प्रोफेसर रमन पंत कहते है कि हिंदुत्व, गंगा जमुनी तहजीब में क्यों डूबेगा. सेकुलर और बुद्धिजीवी लोग गंगा जमीन तहजीब को जगाए रखते हैं. वो कहते हैं कि इस देश में माइनॉरिटी पॉलिटिक्स को स्वीकार कर लिया गया. लोग अल्पसंख्यकों के यहां जाकर सांप्रदायिकता की बात करते हैं लेकिन हिंदुओं को सांप्रदायिकता के बारे में कौन समझाएगा.
मोदी या बीजेपी की रैलियों में जुटने वाली भीड़ को इकट्ठा नहीं करना पड़ता. वह स्वतः आती है और जुट जाती है. उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उसने मोदी से हाथ मिलाया या नहीं. उनका यहीं कहना है कि मोदी आए गुजरात की तरह देश का विकास होगा. पूरे बनारस को मोदी केंद्रित पोस्टरों से पाट दिया गया है. कच्छ की कसीदाकारी और गुजरात ऑर्ट फेयर के पोस्टर भी दिखने लगे हैं. शायद ये आने वाले विकास की झलक है.
बीजेपी के मुकाबले केजरीवाल को अपनी रैली ऑर्गनाइज करनी पड़ती है. इससे पता चलता है कि केजरीवाल लोकल सपोर्ट के मामले में पिछड़ रहे हैं. हालांकि मुस्लिमों की एक संख्या केजरीवाल की रैलियों में दिखती है. ऑटो ड्राइवर भरत लाल बताते हैं कि यहां मुकाबला केजरीवाल और मोदी में ही है. अजय राय तो वोट के मामले में बच्चा है. दोनों माफिया मिल गए हैं और जीतने के बाद वसूली शुरू कर देंगे. बनारस की जनता अब समझ गई है.
अजय राय और मुख्तार अंसारी का हाथ मिलाना केजरीवाल को बढ़त दिला सकता है. जिस तरह हिंदू वोटर मुख्तार को पसंद नहीं करते हैं ठीक उसी तरह मुस्लिम वोटर भी अजय राय को. ऐसे में मुस्लिम वोट टूट कर केजरीवाल के पाले में जा सकते हैं. केजरीवाल के रोड शो में मुस्लिमों की भीड़ इस फैक्टर की ओर इशारा करती है. लेकिन इसमें एक पेंच भी है पिछली बार शिया मुसलमानों के वोट बीजेपी को गए थे. जिसके दम पर जोशी जीत हासिल कर सके. इस बार भी शिया वोट बीजेपी को जा सकते हैं. कल्बे जव्वाद और बीजेपी का रिश्ता पहले से ही मधुर दिख रहा है.
केजरीवाल के सामने एक बड़ी समस्या स्थानीय समर्थन को लेकर ही है. मोदी के मुकाबले उन्हें स्थानीय कमजोर दिख रहा है. हालांकि शहर के बाहर उनके लोग अपनी पहुंच बनाए हुए हैं. लेकिन वो वोट में कितना तब्दील हो पाएंगे ये कोई नहीं कह रहा है. हालांकि आईआईटी बीएचयू के छात्र केजरीवाल के समर्थन में पूरे जोर शोर से जुटे हुए हैं.
शहर के बाहर गांव और बस्तियों में सपा और बसपा का जोर है. उनका वोट बमुश्किल ही इधर-उधर जाए. पूर्वांचल में एक कहावत है बसपा वालों को कितना भी समझाओगे. उसे हाथी के आगे कुछ नहीं दिखता. रही बात कांग्रेस की तो राहुल गांधी कितना भी जोर लगा लें, पूर्वांचल में माफिया राज एक बड़ा फैक्टर है जो उनके खिलाफ ही जाएगा.
बनारस में गुजरात से मोदी और उनकी टीम ही आई है. ऐसा नहीं है. ऑल इंडिया ट्राइबल मूवमेंट-गुजरात और आदिवासी वन जन श्रमजीवी यूनियन जैसे संगठन पिछले एक महीने से साझा संस्कति मंच और संघर्ष 2014 के बैनर तले बनारस में सक्रिय है जो लोगों को 'सही' उम्मीदवार चुनने के लिए आगाह कर रहे हैं. इन्हीं लोगों में से एक भार्गवी कहती है कि हर गांव में एक दलित बस्ती है यहां. लेकिन ज्यादातर लोगों ने मोदी का नाम भी नहीं सुना है. वे कहते हैं हम तो स्थानीय उम्मीदवार को वोट करेंगे.
बनारस सहित पूर्वांचल में पारा तेजी से चढ़ रहा है. चुनावी सरगर्मी आखिरी चरण में है और सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक रखी है. लेकिन बनारस के लोग अभी थाह रहे हैं. कुछ लोग मोदी और केजरीवाल का नाम ले रहे हैं. लेकिन बाजी अभी खुली नहीं है. मोदी समर्थक से पूछो तो कहते हैं कि केजरीवाल दिल्ली छोड़कर भाग गए ये देश क्या चलाएंगे.. लेकिन इस बात को मानते हैं कि मोदी को टक्कर देने कोई आया है और मुकाबला फंसा हुआ है.