जय हिंद. एक शब्द जिसे फौजी अभिवादन के तौर पर गढ़ा मेजल आबिद हसन जाफरानी ने. आबिद आजाद हिंद फौज में थे. और जब इस फौज के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जय हिंद का नारा बुलंद किया, तो ये आजादी की आवाज बन गया. लेकिन क्या आज की तारीख में हिंदुस्तान में ये शब्द बोलने पर किसी को सजा दी जा सकती है. इस सवाल को एक घटना के जरिए समझिए, जो हाल ही में हिंदुस्तान की फौज में एक मुस्लिम सिपाही के साथ घटी.
भारतीय फौज में कई मजहबों के सिपाही और अधिकारी होते हैं. उनकी धार्मिक मान्यताओं का पालन होता रहे, इसलिए हर धर्म के गुरुओं की फौज नियुक्ति करता है. ऐसे ही एक शख्स हैं सूबेदार इशरत अली. उनको फौज में बतौर मौलवी भर्ती किया गया. आजकल वह जिस बटालियन में हैं, उसका मान्य अभिवादन है 'राम राम' या 'जय माता दी'. मगर सूबेदार इशरत अली इसके बजाय 'जय हिंद' कहते हैं. उनका तर्क है कि प्रचलित अभिवादन हिंदू धर्म और मूर्ति पूजा से जुड़े हैं. वह इस्लाम में यकीन करते हैं, जो मूर्ति पूजा को नहीं मानता. साथ में वह मौलवी भी हैं, यानी इस्लामिक शिक्षाएं देते हैं. ऐसे में वह यह अभिवादन कैसे कर सकते हैं. मगर अली के बटालियन की रवायत न मानने पर उन्हें अधिकारियों ने एक नोटिस भेज दिया. इसमें कहा गया कि अपनी छोटी सोच से उबरिए. आपसी अभिवादन में 'राम राम' या 'जय माता दी' कहिए. क्योंकि यही इस बटालियन का नियम है.
अब इसके खिलाफ अली की बीवी ने तमाम जगहों पर शिकायत की है. फौज के ऊंचे अधिकारी, देश के राष्ट्रपति, अल्पसंख्यक आयोग और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक उन्होंने बात पहुंचाई है. उन्होंने आरोप लगाया है कि फौज के अधिकारियों ने उन्हें यह कहते हुए 'जय हिंद' न बोलने को कहा कि 'इससे धार्मिक द्वेष और कट्टरता का संदेश जाता है'. उधर फौज कह रही है कि हम पूरी तरह से सेकुलर हैं, जबरन मुद्दा बनाया जा रहा है.