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लद्दाख हमेशा से चाहता था स्वायत्तता, लड़ता रहा आजादी के लिए...

लद्दाख कभी भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं बनना चाहता था. ऐतिहासिक तथ्यों को खंगाले तो पता चलता है कि सिल्क रूट का यह प्रमुख मार्ग हमेशा से स्वायत्तता चाहता था. लद्दाखी लोग आतंक से परेशान कश्मीर से आजादी की मांग लंबे समय से कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें कश्मीर की सरकारों पर कभी भरोसा नहीं रहा.

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लंबे समय से लद्दाख को जम्मू- कश्मीर से अलग करने की हो रही थी मांग
लंबे समय से लद्दाख को जम्मू- कश्मीर से अलग करने की हो रही थी मांग

लद्दाख कभी भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं बनना चाहता था. ऐतिहासिक तथ्यों को खंगाले तो पता चलता है कि सिल्क रूट का यह प्रमुख मार्ग हमेशा से स्वायत्तता चाहता था. आप कभी लद्दाख घूमने गए हो तो आपको अलग-अलग पोस्टर मिलते थे कि लद्दाख को कश्मीर से अलग करो. लद्दाखी लोग आतंक से परेशान कश्मीर से आजादी की मांग लंबे समय से कर रहे थे. क्योंकि उन्हें कश्मीर की सरकारों पर कभी भरोसा नहीं रहा.

लद्दाखी लोगों का मानना है कि अगर लद्दाख को अलग राज्य बना दें तो उन्हें कश्मीर से आजादी मिलेगी. भारत का चीन से विवाद भी थम सकेगा. कश्मीर से जुड़ा होने की वजह से नौकरियों में भी पक्षपात होता है. राज्य सरकार के तीन लाख कर्मचारियों में कुल 5900 बौद्ध हैं. जम्मू-कश्मीर के सचिवालय में केवल दो लोग लद्दाख से हैं. पढ़ाई के मामले में भी वे लगातर पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं.

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लद्दाख सदियों से लड़ता रहा आजादी की लड़ाई

लद्दाख कभी भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा रहा ही नहीं. सन 842 में यहां तिब्बती राजवंश के शासन की शुरुआत हुई. नए लद्दाखी राजवंश की स्थापना की गई. इसे बनाया था न्यिमागोन नाम के तिब्बती शाही प्रतिनिधि ने. इसके बाद तिब्बत से आने वाले लोगों ने यहां बौद्ध धर्म को खूब आगे बढ़ाया.

तिब्बती और लद्दाखी शासन कई दशकों तक चलता रहा. 13वीं सदी में जब दक्षिण एशिया में इस्लामी प्रभाव बढ़ रहा था, तब भी लद्दाख का धार्मिक शासन तिब्बत से ही चलता रहा. करीब 2 दशकों तक ऐसा ही रहा. 1600 के आसपास पड़ोसी मुस्लिम राज्यों के हमलों से यहां आंशिक असर आया लेकिन राजा लोचन भगान ने लद्दाख को फिर से एक किया और नामग्याल वंश की स्थापना की. यह वंश आज भी मौजूद है.

नामग्याल वंश ने लद्दाख को नेपाल तक बढ़ा दिया

नामग्याल वंश ने राज्य को नेपाल तक बढ़ा लिया. इस बीच मुगलों ने कश्मीर और बाल्टिस्तान पर कब्जा कर लिया था. मुगलों ने लद्दाख पर भी हमला बोला. नामग्याल हार गए. लेकिन लद्दाख की सशर्त आजादी बरकरार रही. शर्त थी कि लद्दाख के राजा हर साल कुछ धनराशि मुगलों को भेंट करेंगे.

1834 में जम्मू के डोगरा राजा ने लद्दाख पर किया था कब्जा

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1834 में डोगरा राजा गुलाब सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण कर उसे जीत लिया. हालांकि, इस इलाके की आजादी सशर्त बरकरार थी. 1842 में लद्दाख में डोगरा साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह हुआ, लेकिन उसे कुचल दिया गया. इसके बाद लद्दाख को जम्मू-कश्मीर के डोगरा राज्य में मिला दिया गया. नामग्याल परिवार को स्टोक नाम की छोटी सी जागीर दी गई. 1850 में लद्दाख में यूरोपीय लोग आने लगे. 1885 में लेह में मोरावियन चर्च एक ईसाई मिशन का मुख्यालय बन गया.

1947 में पाकिस्तान ने लद्दाख पर हमला किया तो भारतीय सेना ने भगाया

1947 में देश के बंटवारे के वक्त डोगरा राजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय की मंजूरी दे दी. पाकिस्तानी घुसपैठी लद्दाख पहुंचे तो भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ भगाया. सेना से सोनमर्ग से जोजीला दर्रा तक टैंकों की सहायता से कब्जा किया. सेना आगे बढ़ी और द्रास, कारगिल व लद्दाख को घुसपैठियों से आजाद करा लिया गया.

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